Syed Mohd Irfan : अभी तीन घंटे पहले उन्होंने पीछे से आवाज़ लगाई- ‘इरफ़ान’। हम 10 मिनट में RML ले आये उन्हें। इलाज शुरू हो गया। बस घंटे भर में वो हमें छोड़ गए। पता नहीं कैसा रिश्ता था उनसे मैं कभी समझ नहीं पाया। महीनों न मिलें लेकिन हमेशा लगता था कि बस थोड़ी देर पहले ही छूट गई बातों का सिलसिला फिर से शुरू हो गया है। राज्य सभा टीवी ज्वाइन करने पर ही हमने एक दूसरे को जाना था और हमारे बीच नजदीकी की वजह ‘गुफ्तगू’ बना, जिसके वो इतने मुरीद थे कि हर मिलने जुलने वाले से गुफ्तगू की तारीफ़ और साथ मेरी ऐसी तारीफें कि कभी-कभी ऐसी महफिलों में मैं कोशिश करता कि उनकी नज़र मुझ पर न पड़े लेकिन वो आवाज़ लगा ही देते- ‘इरफ़ान’।
आज उनका पुकारा हुआ यह शब्द उनके जीवन का आखिरी शब्द होगा यह यकीन करना मुश्किल है। अस्पताल के लिए हमने जैसे ही उन्हें कार में बैठाया उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर जिस अपनेपन के साथ अपनी बगल में बैठा लिया था, उससे संयोगों की रहस्यमय दुनिया पर विशवास सा होने लगता है। गिरीश निकम एक निर्भीक पत्रकार और यारों के यार थे। आज उनकी ज़रूरत पहले किसी भी समय से ज्यादा थी और वो चल दिए। कितने कितने प्रसंग हैं जो याद रहेंगे गिरीशजी की साफगोई और साहस के। एक प्रेरणास्रोत और दिलचस्प इंसान गिरीश जी आप सदा याद आयेंगे।
Dilip Khan : साढ़े पांच साल पहले जब मैंने RSTV ज्वाइन किया तो Girish Nikam से मेरा परिचय पहले बॉस के तौर पर हुआ। ये उन दिनों की बात है जब चैनल ऑन एयर नहीं हुआ था। दूसरे ही दिन उनसे दोस्ती हो गई और ये लगातार बरकरार रही। अपने काम को लेकर इतना जुनूनी व्यक्ति मैंने बहुत कम देखा है। मैं किसी दूसरे एंकर को नहीं जानता जो एक शो के लिए पचास से लेकर पांच सौ पेज तक पढ़ने को तैयार दिखे। उन्हें ब्रीफ़ में चीज़ें पसंद नहीं थी। हमेशा कहते कि पूरा टेस्क्ट भी पढ़ने को दो। गेस्ट तय करने में रोज़ाना की खिचखिच Deepti के साथ उनकी होती रहती। वो रोज़ परफैक्शन के साथ शो करना चाहते थे।
मुझे याद है 2012 में हम मिलकर ईयर एंडर बना रहे थे। राज्य सभा की साल भर की बड़ी बहसों पर.. और सुबह आकर अगली सुबह तक हमने काम किया। वो अथक मेहनती थे। लेकिन मैं जब भी उन्हें याद करता हूं तो काम-काज दिमाग़ में आता ही नहीं। यारी-दोस्ती जैसी फीलिंग आती है। चुटकुलों पर साथ हंसना याद आता है। सिगरेट की कश याद आती है जो उन्होंने अब छोड़ दी थी। उनके पास महीनों से सिगरेट की कुछ डिब्बियां पड़ीं थीं, और वो हमेशा मुझे कहते रहते कि ले जाओ। नहीं पीना तो किसी को दे देना। जब भी मैं उन्हें उम्र का ताना मारता तो वो मुझे कहते कि वो मेरे से ज़्यादा जवान हैं। गिरीश कहते, “मैं तेरे से दो ही दिन बड़ा हूं। डेट ऑफ़ बर्थ चेक कर लो।”
वो ग्रेटर नोएडा के ब्रैंड एम्बेस्डर की तरह ख़ुद को पेश करते और हर किसी को वहां शिफ्ट करने को कनविंस करते रहते। वो गरियाते, पढ़ाते, प्यार करते और सीखते थे। उन्हें कभी भी जूनियर से पूछने और सीखने में हिचक नहीं होती। वो केयरिंग थे। तीन साल पहले जब मेरा एक्सिडेंट हुआ था तो पगलाए हुए फोन किए और अगले दिन हर तीन घंटे पर फोन करते रहे। गिरीश की राजनीतिक लाइन बिल्कुल क्लीयर थी। लेकिन, क्या मजाल कि कोई ये कह दे कि उनके शो में विरोधी लाइन वालों को जगह नहीं मिली! डिबेट में फोकस्ड और बैलेंस्ड रहना उनकी ख़ासियत थी। शोर-शराबा पसंद नहीं करने वाले लोगों के लिए “द बिग पिक्चर” पसंदीदा अड्डा रहा है।
अभी कह रहे थे कि महीने की आख़िर में पंजाब चलो, एक बार और हवा भांपकर आते हैं! अब क्या पंजाब, क्या दिल्ली!! उन्होंने आख़िरी शो NDTV बैन के मुद्दे पर किया। मैं आज शो नहीं देख पाया। मुझसे उन्होंने कहा था केबल रेगुलेशन एक्ट का एमेंडमेंट बताने को, मैं वो भी नहीं बता पाया। अचानक पता चला कि उन्हें सीने में दर्द उठा है और मैं परेशान हो गया। पता चला कि Syed Mohd Irfan और Anshuman उन्हें लेकर अस्पताल पहुंचे हैं। मैं शो कंप्लीट करके पहुंचने ही वाला था कि आख़िरी ख़बर मिली!! वो शानदार पत्रकार के अलावा शानदार व्यक्ति थे। उनसे जो मिला है, उनके लिए उनको भूल पाना कभी मुमकिन नहीं होगा।
राज्यसभा टीवी में कार्यरत पत्रकार मोहम्मद इरफान और दिलीप खान की एफबी वॉल से.