Rajeev Sharma-
मुझे नक़्शा देखना बहुत अच्छा लगता है। मैं तीसरी या चौथी कक्षा का विद्यार्थी था, जब मैंने दुनिया का नक़्शा ख़रीदा था। उस समय मेरे मन में ख़याल आता था, ‘क्या कोई व्यक्ति इतनी बड़ी दुनिया घूम सकता है?’ फिर मुझे पता चला कि ऐसे लोग हुए हैं, जिन्होंने दुनिया के बहुत देश घूमे हैं। कभी-कभी मैं सोचता था कि अगर मौक़ा मिला तो ज़रूर घूमने जाऊँगा।
मुझे सबसे ज़्यादा आश्चर्य उस समय हुआ, जब यह पता चला कि हमारे पूर्वजों में एक रिवाज यह भी था कि समुद्रयात्रा करना पाप है! हिंदू धर्म के महान विद्वान स्वामी विवेकानंदजी ने अपने कई पत्रों में इस रिवाज की आलोचना की है।
मेरा मानना है कि हम लोग विदेशी ताक़तों के ग़ुलाम हुए तो इसकी एक बड़ी वजह यह थी कि हमारे पूर्वजों ने दुनिया देखनी बंद कर दी थी। वे खोज करना भूल गए थे, जबकि अंग्रेज़ तथा अन्य ताक़तें समुद्री रास्ते खोजती हुईं विभिन्न देशों में गईं। उनके अच्छे-बुरे काम अपनी जगह हैं, लेकिन उनकी इस आदत से उनकी क़ौमों को बड़ा फ़ायदा हुआ।
अगर हम पिछले ढाई सौ-तीन सौ वर्षों का इतिहास देखें तो यह वो दौर था, जब पश्चिम के वैज्ञानिकों ने कई आविष्कार किए, उद्योग-धंधों में मशीनों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होने लगा था। इससे वे और ताक़तवर हो गए, अपने साम्राज्य स्थापित कर लिए।
इधर, हम इन्हीं चक्करों में फंसे रहे कि विदेश चले गए, समुद्र की यात्रा कर ली तो जाति से निकाल दिए जाओगे! इसलिए हम ‘घर-घुसिया’ (जो घर में ही घुसा रहे) बने रहे।
जब 1893 में स्वामी विवेकानंदजी अमेरिका में आयोजित होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन को संबोधित करने गए थे तो यहाँ (भारत में) कुछ रूढ़िवादियों ने उनका घोर विरोध किया था। स्वामीजी के पत्रों के संग्रह पर आधारित एक किताब ‘अग्निमंत्र’ में इसका विवरण मिलता है।
उस किताब में स्वामीजी ने यह भी बताया था कि तब का जापान कितनी तेज़ी से प्रगति कर रहा था। उन्होंने अमेरिका की वैज्ञानिक प्रगति, उसके सामाजिक उदारवाद की खुले दिल से तारीफ़ की थी।
कुरीतियों ने हमें कितना बर्बाद किया है, यह जानकर दु:ख होता है, लेकिन ख़ुशी की बात है कि आज ऐसी कोई मूर्खतापूर्ण पाबंदी नहीं है और यूट्यूब पर देश-दुनिया के कई यात्री अपने वीडियो पोस्ट कर रहे हैं। उनमें भारतीयों की बहुत बड़ी तादाद है। मैं उनके वीडियो देखता रहता हूँ।
वैसे एक और मज़ेदार बात बताऊँ! बहुत पहले मेरा सपना था (जब मैंने साइकिल चलाना सीखा था) कि साइकिल से दुनिया घूमने जाऊँगा। धीरे-धीरे समय बीता तो मुझे मेरे इस सपने या कहूँ कि मेरी नादानी पर हँसी आने लगी। फिर सोचा कि दुनिया न सही, अपना देश तो घूम ही लूँगा।
यह इच्छा मन में दबी थी कि पिछले दिनों राहुल भैया (कांग्रेस वाले) को ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकालते देख वह फिर जाग उठी। अब मैं सोचता हूँ कि भारत-यात्रा न सही, अगर भविष्य में कोई अनुकूल संयोग बना तो एक-दो राज्यों में ही घूमने चला जाऊँगा, चाहे वह यात्रा झुँझुनूँ से झुमरी तलैया की ही क्यों न हो!
एक और ख़ुशी की बात यह है कि नील मोहन (मैं उन्हें नीलू भैया कहूँगा) यूट्यूब के सीईओ बन गए हैं। अब तो घर की ही बात है। मैं नीलू भैया से अनुरोध करता हूँ कि वे मेरे मोबाइल फ़ोन पर घुमंतुओं के वीडियो ज़्यादा भेजते रहें, क्योंकि उनसे मुझ जैसे ‘घर-घुसियों’ को बहुत कुछ देखने-सीखने का मौक़ा मिलता है।
वैसे मेरी टेबल पर आज भी दुनिया का नक़्शा रखा है। यक़ीन न हो तो यह देखिए! क्या आपका भी कहीं घूमने का सपना रहा है?
.. राजीव शर्मा ..
कोलसिया, झुँझुनूँ, राजस्थान
[email protected]
अमित
April 23, 2023 at 11:47 pm
सोचिए न। घूमना शुरू कीजिए