Navin Kumar : इन दिनों टीवी पर एक विज्ञापन ख़ूब चल रहा है। हीरो मोटर कॉर्प का। यह विज्ञापन बहुत परेशान करने वाला है। यह दिखाता है कि घर का लड़का देर रात तक घर नहीं लौटा है। सब इंतज़ार कर रहे हैं। मां, पिता, छोटे-छोटे बच्चे और एक कुत्ता। नई-नई बीवी इंतज़ार करते-करते खाने के टेबल पर सो गई है। तभी बाइक की हेडलाइट दरवाज़े पर चमकती है। कैमरा दिखाता है कि कुत्ता दौड़ पड़ा। पिता मुस्कुरा उठे। बच्चे भी भागे। फिर बीवी कहां गई? सोती हुई बीवी हलचल होते ही सबसे पहले आईने के सामने भागती है। अपने बाल-मेकअप ठीक करने लगती है। और पूरी तरह संवरकर ही पति के सामने जाती है। गौर कीजिए यह आधी रात के बाद का दृश्य है। आखिर में एक लाइन का संदेश आता है गाड़ी संभलकर चलाइए क्योंकि कोई आपका इंतज़ार कर रहा है।
यह कितना फूहड़ है कि ऐसे संदेश के लिए भी विज्ञापन को कंसीव करने वाले ने और हीरो मोटर कॉर्प ने औरत को सिर्फ एक सामान समझा। किसी गुलदस्ते की तरह। जिसका महत्त्व सिर्फ उसके ताज़े और खिले होने से तय होता है। इसीलिए किसी के सुरक्षित लौट आने का इत्मीनान भी वह अपनी स्वाभाविकता में नहीं जी सकती। उसे पति के सामने मनुष्य की तरह नहीं, फूलदान की तरह पेश होना है। हो सकता है बहुतों को इसमें प्रेम और समर्पण जैसा कुछ नज़र आए। लेकिन मुझे इसमें एक वीभत्स अश्लीलता नज़र आती है।
औरत के पूरे वजूद को सिंगारदान के सामने समेट देने की ऐसी भव्य अश्लीलताओं से हमारा सिनेमा, समाज और संस्कार भरा पड़ा है। करवाचौथ पर छलनी के पीछे से पति की सूरत देखने को तड़प उठने की रवायतें औरतों के पूरे वजूद को एक झटके में खा जाती हैं। अच्छा दिखना एक मानवीय स्वभाव है। लेकिन जब यह मर्दों की सेवा में स्त्री का अनिवार्य संस्कार बन जाए तो यह मान लेने में गुरेज़ नहीं होना चाहिए कि उस समाज के मर्द अभी मनुष्य नहीं हुए हैं। हीरो मोटर कॉर्प का विज्ञापन परंपरा के बाज़ार में मनुष्यता की उस क्रमिक मृत्यु का उत्सव गान है।
न्यूज24 में कार्यरत पत्रकार नवीन कुमार की एफबी वॉल से. इस पोस्ट पर आए कुछ प्रमुख कमेंट्स इस प्रकार हैं….
गौरव मिश्रा ये क्या भाई साहब कभी मूड्स और कामसूत्र का advt जरूर देखें इससे भी बुरा हाल है
Kamlesh Tiwari विज्ञापन का मक़सद शायद इससे बढ़कर है जितना आप इस पोस्ट में लिख पाये… अभी तक हीरो सबसे अच्छे और सामाजिक सन्देश देने वाले विज्ञापन देने वाली कंपनियों में से रही है… असली अश्लीलता दिखाने वाले और भी ब्रांड्स हैं… उनपर लिखिए सर
Rohit Singh Rajpoot फूलदान में फूल, उसकी पंखड़ियां और महक अपने आप को समर्पित कर देती है। क्योंकि उसका बगीचे से लेके बागबानी तक उसकी शोभा उसी फूलदान में आने के बाद होती है। जब वो दायरे में,करीने से महकती है। गुलदस्ता ही बेजान हो चुके फूलों को अपना गुलिस्तां बना के खुद महकता है, महकाता भी है। आपका अनुज् हूँ । क्षमा।
Tarun Vyas “मर्द अभी मनुष्य नहीं हुए हैं” बहुत सही
Naveen Kumar इस विज्ञापन में एक पिता औऱ मां भी है जो अपनी बेटी का इंतजार कर रहे होते है। उनकी बेटी स्कूटी से वापस आती है।
Neeraaj Choudhary हद तो तब हो जाती है जब टाइल्स और प्लाई के विज्ञापन में लड़कियों को दिखाया जाता है।और तो और मर्दों के मोज़े के विज्ञापन में भी लड़कियां दिखती हैं। जबकि बिना अश्लीलता के विज्ञापन सबसे ज़्यादा हिट होते हैं। फिर भी ये सब समझ से बाहर है।
Pandit Ayush Gaur One should not be so negative always. There is always a positive sign of every story.
Gaurav Kumar वाह सर…तथाकथित बेटी बचाओ..बेटी पढ़ाओ वालों के लिए कड़वी सच्चाई…उखाड़ कर रख दिया आपने तो…
Ila Joshi जो लोग इस तरह के विज्ञापनों में कुछ भी असहज नहीं देख पा रहे हैं दरअसल इन्हीं में से ज़्यादातर लोग सैनिटरी नैपकिन के विज्ञापन आने पर या तो बगलें झाँकने लगते हैं या फिर चैनल ही बदल देते हैं जबकि उसमें तो औरतों के लिए एक ज़रूरी चीज़ की उपयोगिता के बारे में बात होती है और किसी पुरुष को सामान की तरह भी नहीं दिखाया जाता।
Shashaank Shukla हा हा हा….आप वही देखते हैं जो आप देखना चाहता हैं…. बाप की बेटी के लिए चिंता नजर नहीं आई…एक कुत्ते का मालिक प्रति प्रेम नजर नहीं आया.. आपको वही नजर आया जो आप देखना चाहता थे…और वो था महिला का श्रृंगार….क्योंकि आपकी नजर वहीं टिक गई….आप वही दे…See more
Ila Joshi दरअसल दिक्कत यही है कि उस एक हिस्से को बड़ी चालाकी से पूरे विज्ञापन के बीच इस तरह रखा गया कि अगर कोई उसे चिन्हित करे तो बाकी लोग विज्ञापन के बचाव में आ जाएँ कि अरे तुमने वो क्यों नहीं देखा। या तो आप इस तरह के सेक्सिस्ट उदाहरणों को बड़ी सहुलियत से नज़रअंदाज़ कर देते हैं या आप इसे देखने के लिए conditioned हो चुके हैं या फिर आप भी उन विज्ञापन बनाने वालों जैसी ही सोच रखते हैं। अब चुनाव आप करिए कि आप ख़ुद को तीनों में से किस category में रखना चाहेंगे।
Shashaank Shukla तो ऐसे में किसी महिला का या किसी पुरुष का अपने पति या पत्नी या अपना प्रेमी प्रेमिका के प्रति प्रेम कैसे दिखाना चाहिए….फूल लड़ाकर ?….कभी ओवररिएक्शन नहीं करना चाहिए
Ila Joshi जो उदाहरण आपने दिया वो भी उतना ही फूहड़ है इसमें कोई दो राय नहीं, लेकिन लंबे समय से इन विज्ञापनों को देखने की वजह से हम इन फूहड़ उदाहरणों के अलावा कुछ सोच ही नहीं सकते। प्रेम जताने के लिए श्रृंगार की अहमियत भी बाज़ार की बनाई ही है। किसी का देर तक इंतज़ार करना ही प्रेम जताने के लिए बहुत नहीं है क्या?
Shashaank Shukla इला जी फिर तो आप कई महिलाएं सवाल उठा सकती हैं कि पत्नी ही देर रात जागकर इंतजार करके परेशान क्यों हो….ये भी गलत है….
Ila Joshi बिल्कुल
Navin Kumar हे Shashaank Shukla आपके मगज में नहीं घुसेगा। आपकी वैचारिक हैसियत से बाहर की बात है। नाम की स्पेलिंग में दो a लगा लेने से बुद्धि का विस्तार नहीं हो जाता। मस्त रहिये।
Amit Singh Virat जहां पर काम करना है…वहां करता कौन है… बस हल्ला मचाते रहते हैं जिम्मेदार लोग.. लगभग सभी विज्ञापनों में महिलाओं को उत्पाद की तरह परोसा जाता है… जबतक मदकत अंदाज में कोई महिला ना हो भला कौन सा विज्ञापन पूरा होता है… लेकिन इस पर किसी की नजर नहीं है..सब बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर फोकस कर रहे हैं…
विजय
August 9, 2016 at 3:41 pm
श्री मान टीवी पत्रकार नवीन कुमार की आपत्ति पर हंसी आती है। उनकी यह आपत्ति मुर्खता पूर्ण है। इसके अलावा इस बारे में और कुछ भी कहना सही नहीं होगा। फालतू की आपत्ति जता रहे हैं। अरे भावनाओं को समझों। फालतू ज्ञान मत बांटो