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(पार्ट थ्री) मजीठिया पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हिंदी अनुवाद पढ़ें

16. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि अधिनियम की धारा 12 के तहत केंद्र सरकार द्वारा सिफारिशों को स्वीकार करने और अधिसूचना जारी किए जाने के बाद श्रमजीवी पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारी मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड के तहत अपना वेतन/मजदूरी प्राप्त करने के हकदार हैं। यह, अवमानना याचिकाकर्ताओं के अनुसार, अधिनियम की धारा 16 के साथ धारा 13 के प्रावधानों से होता है, इन प्रावधानों के तहत वेजबोर्ड की सिफारिशें, अधिनियम की धारा 12 के तहत केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित होने पर, सभी मौजूदा अनंबधों के साथ श्रमजीवी पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारियों की सेवा की शर्तों को नियंत्रित करने वाले विशिष्ट अनुबंध/ठेका व्यवस्था को अधिलंघित  (Supersedes) करती है या इसकी जगह लेती है।

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18. अवमाना याचिकाओं का विरोध किया गया और सामाचारपत्र प्रतिष्ठानों द्वारा यह तर्क दिया गया है कि अवमानना याचिकाकर्ताओं के जरिये उठाए गए, ऊपर पहचाने गए, चार मुद्दे, किसी भी तरह से, रिट पेटिशन नंबर 246 आफ 2011 में दिनांक 07.02.2014 को घोषित मुख्य फैसले में नहीं निपटे गए हैं। इसलिए, यह मान लिया गया है कि अवमानना क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करते हुए, मुख्य रिट पेटिशन में दिनांक 07.02.2014 को पारित किए फैसले को विस्तारित, स्पष्ट नहीं किया जा सकता है या कुछ जोड़ा नहीं जा सकता है, ताकि आरोपित गैर-अनुपालना को सीमित अवमानना क्षेत्राधिकार के चारों कोनों के भीतर लाया जा सके। चूंकि चार मुद्दे, ऊपर क्रस्टिलीकृत/स्पष्ट हैं, रिट पेटिशन नंबर 246 आफ 2011 में दिनांक 07.02.2014 को घोषित फैसले का हिस्सा नहीं बनते हैं, इसलिए यह आग्रह नहीं किया जा सकता कि सामाचारपत्र संस्थानों को ऐसे नियमों/आवश्यकताओं के कथिततौर पर उल्लनंघन या अव्हेलना करके अवमानना करने का दोषी माना जाए, जिसे कि अब मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड का हिस्सा होने के लिए जिम्मेदार ठहराने की मांग की जा ही है और इसलिए इसे दिनांक 07.02.2014 को रिट पेटिशन नंबर 246 आफ 2011 में दिए गए फैसले का हिस्सा होने का दावा किया जा रहा है, जिसको लागू ना किए जाने का आरोप है।

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19. अब तक, सिविल अवमानना होने पर न्यायालय की शक्ति के रूपों का संबंध, इस न्यायालय के कई फैसलों में विस्तार से बताया गया है। उदाहरणत्या, निम्रलिखित विचारों/कथनों के लिए कपिल देव प्रसाद साह बनाम बिहार राज्य के मामले को संदर्भ बनाया जा सकता है। …इस संदर्भ के अंडरलाइन बिंदूओं का ही अनुवाद किया जा रहा है।

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…अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति का उपयोग तभी किया जाता है, जब न्यायालय के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन हुआ हो। क्योंकि अवमानना का नोटिस और अवमानना की सजा बहुत दूर के परिणाम हैं और इन शक्तियों को सिर्फ तभी लागू किया जाना चाहिए, जब आदालत के आदेश का जानबूझ कर उल्लंघन करने का स्पष्ट मामला बनाता हो। …यहां तक कि लापरवाही और लापरवाही के कारण अवज्ञा हो सकती है, खासकर जब व्यक्ति का ध्यान न्यायालय के आदेशों और उसके निहितार्थ के लिए खींचा जाता है।

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अदालत के आदेश का अनुपालन करने से इनकार करने वाले या लगातार आदेश की अव्हेलना करने वाले व्यक्ति के खिलाफ अवमानना के लिए दंडित करने का क्षेत्राधिकार मौजूद है।

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कोई व्यक्ति कोर्ट के आदेश को खारिज नहीं कर सकता. आकस्मिक, दुर्घटनात्मक, वास्तविक या अनजाने में कार्य करने या आदेश की शर्तों का अनुपालन करने के लिए वास्तविक अक्षमता को जानबूझकर/विलफुल से बाहर रखना होगा। न्यायालय के आदेशों की अवज्ञा की शिकायत करने वाले याचिकाकर्ता को न्यायालय के आदेश की जानबूझकर या तिरस्कारपूर्ण अवज्ञा का आरोप लगाना चाहिए। 
(हमारे द्वारा जोर दिया गया है )

इसी तरह पैरा नंबर 20 और 21 में अवमानना साबित करने और अवमानना के दौरान याचिकाकर्ताओं द्वारा मुख्य मुद्दे से हटकर अन्य बातें उठाने और न्यायालय की सीमा को लेकर विभिन्न मुकद्दमों के संदर्भ दिए गए हैं। इनका अनुवाद बाकी जरूरी पैराग्राफ के अनुवाद के बाद किया जाएगा।

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….बाकी अगले भाग में पढ़ें ……

द्वारा: रविंद्र अग्रवाल, धर्मशाला
संपर्क: 9816103265

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इसके पहले का पार्ट वन और पार्ट टू पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें…

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