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मजीठिया पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हिंदी अनुवाद पढ़ें (पार्ट वन)

अखबार प्रतिष्ठानों में कार्यरत श्रमजीवी पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मियों को मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतनमान न दिए जाने और माननीय सुप्रीम कोर्ट का आदेश न मानने पर सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई 83 अवमानना याचिकाओं और तीन रिट पेटिशनों का निपटारा करते हुए 19 जून, 2017 को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्णय दिया है, उसे कुछ कर्मचारी साथी मालिकों के पक्ष में बताकर निराशा का माहौल पैदा करने में जुटे हुए हैं। हालांकि इस निर्णय में मालिकों के पक्ष में सिर्फ एक ही बात गई है, वो यह है कि कोर्ट ने इनके खिलाफ अवमानना को स्वीकार नहीं किया है और जिन अखबार मालिकों ने मजीठिया वेजबोर्ड अधूरा लागू किया है और जिनने नहीं लागू किया है उन्हें एक और मौका दिया गया है।

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अखबार प्रतिष्ठानों में कार्यरत श्रमजीवी पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मियों को मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतनमान न दिए जाने और माननीय सुप्रीम कोर्ट का आदेश न मानने पर सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई 83 अवमानना याचिकाओं और तीन रिट पेटिशनों का निपटारा करते हुए 19 जून, 2017 को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्णय दिया है, उसे कुछ कर्मचारी साथी मालिकों के पक्ष में बताकर निराशा का माहौल पैदा करने में जुटे हुए हैं। हालांकि इस निर्णय में मालिकों के पक्ष में सिर्फ एक ही बात गई है, वो यह है कि कोर्ट ने इनके खिलाफ अवमानना को स्वीकार नहीं किया है और जिन अखबार मालिकों ने मजीठिया वेजबोर्ड अधूरा लागू किया है और जिनने नहीं लागू किया है उन्हें एक और मौका दिया गया है।

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इसके अलावा कोर्ट ने अपने फैसले में अधिकतर बातें कर्मचारियों के हित में ही लिखी हैं। इनका जिक्र यहां करना मुनासीब नहीं होगा, क्योंकि इस पर अब तक सोशल मीडिया, साइटों और व्हाट्सएप ग्रुपों में बड़ी चरचा हो चुकी है। अफवाहों और निराशा के दौर में मेरा इतना ही कहना है कि अखबार मालिक भले ही अवमानना से बच गए हों, मगर वेजबोर्ड देने से नहीं बचे हैं। अब भी उन्हें  कानूनी शिकंजे में फंसाया जा सकता है। इसके लिए हमारे कुछ साथी जुट चुके हैं। अब सभी साथियों से एक ही अनुरोध रहेगा कि वे १९ जून की जजमेंट का हिंदी अनुवाद पढ़ कर स्वयं ही यह तय करें कि यह निर्णय हमारे पक्ष में है या नहीं। काफी लंबा और कानूनी मामला होने के कारण बड़ी कुशलता और मेहनत से अनुवाद करने की कोशिश की गई है। इसकी पहली किश्त प्रस्तुत है। बाकी का हिस्सा अगली किश्तों में जारी किया जाता रहेगा।

-रविंद्र अग्रवाल
मजीठिया क्रांतिकारी
हिमाचल प्रदेश
संपर्क नंबर : 9816103265

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जजमेंट का अनुवाद भाग-1

1. श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम, 1955 (यहां संक्षिप्त में अधिनियम) देश भर के श्रमजीवी पत्रकारों और समाचारपत्र स्थापनाओं में कार्यरत अन्य व्यक्तियों सेवा की शर्तों को विनियमित/रेगूलेट करने के लिए किया गया था। यह अधिनियम अन्य विषयों में(इंटर एलिया), ग्रेच्यूटी के लिए पात्रता,  काम के घंटे, छुट्टी के साथ-साथ श्रमजीवी पत्रकारों और गैर पत्रकार अखबार कर्मियों को देय वेतन/मजदूरी निर्धारण के निपटारे के लिए कानून की एक व्यापक रचना है, जैसा कि हो सकता है।  

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जहां तक कि वेतन/मजदूरी के निर्धारण और संशोधन का संबंध है, अधिनियम की धारा 9 के तहत गठित वेतन बोर्ड द्वारा श्रमजीवी पत्रकारों से जुड़े वेतनमान/मजदूरी के ऐसे निर्धारण या संशोधन का कार्य किया जाता है। वेतनबोर्ड की सिफारिशों को अगर स्वीकार किया जाता है, तो अधिनियम की धारा 12 के तहत केंद्र सरकार द्वारा इसे अधिसूचित किया जाता है। अधिनियम की धारा 12 के तहत जारी केंद्र सरकार के आदेश के संचालन में आने पर प्रत्येक श्रमजीवी पत्रकार को उस दर पर वेतन/मजदूरी दी जाएगी, जो इस आदेश में इस आदेश में निर्दिष्ट की गई दर से कम नहीं होगी, यह प्रावधान धारा 13 मुहैया करवाती है। अधिनियम का अध्याय 2 क (Chapter IIA) समाचारपत्र स्थापनाओं के गैरपत्रकार कर्मचारियों से  जुड़े एक समान((pari materia/श्रमजीवी पत्रकारों की तरह) प्रावधानों को समाहित किए हुए है।

इसके आगे पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें…

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