असरार ख़ान-
हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाइए या इसकी अर्थी उठाइए कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि यह एक विशुद्ध पेशा बन चुका है और आज मिशन एवं आंदोलन के खिलाफ खड़ा है …स्थित बहुत दुःखद है जो भी हो निजी तौर पर मुझे हिंदी पत्रकारिता से बहुत कुछ मिला लेकिन हक़ नहीं मिला क्योंकि हिंदी पत्रकारिता सामंती एवं साम्प्रदयिक तथा व्यक्तित्ववादी कुंठा से बुरी तरह ग्रसित है …इसके मुकाबले अंग्रेजी पत्रकारिता इस तरह की गंदी बीमारियों से किसी हद तक दूर है …
जब हम खुद छात्र राजनीति में सक्रीय रहे तब भी अंग्रेजी टॉप अखबारों ने बिना किसी भेदभाव के हमारी खबरें छापता था …
हिंदी पत्रकारिता में अभी भी गुरू चेला वाला प्राचीन खेल चल रहा है ….रवीश कुमार बहुत भाग्यशाली थे कि उन्हें NDTV जैसा मंच मिला और उन्होंने उसका बेहतरीन ऐतिहासिक उपयोग किया वर्ना उनसे ज्यादा प्रतिभावान पत्रकारों का आप नाम तक नहीं जान पाए ..
भारत का हिंदी प्रिंट मीडिया 90% से ज्यादा बिक चुका है इससे कोई उम्मीद मत कीजिए कहानी किस्से और कविताएं भी उन्हीं की छपती हैं जिनकी कोई सिफारिश हो आप का लेखन कोई मायने नहीं रखता …?