देश में इन दिनों एक सवाल सबके पास है कि प्रवीण तोगड़िया और बीजेपी सरकार के बीच आखिर तकरार है क्या? क्या वजह है कि तोगड़िया ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और क्या वजह है कि वो ये कह रहे हैं कि एनकाउंटर की साजिश रची जा रही है। तो जरा लौटिए 2017 दिसंबर के महीने में, क्यों कि संघ से जुड़े सूत्र कहते हैं कि विश्व हिंदू परिषद जो कि संघ की अनुषांगिक शाखा है, इसके इतिहास में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव करवाए गए। इसकी सबसे बड़ी वजह ये थी कि संघ के भीतर ही दो खेमे बन गए थे। एक खेमा चंपत राय को अध्यक्ष के रूप में देखना चाहता है तो दूसरा खेमा प्रवीण तोगड़िया को अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में देखना चाहता था। लिहाजा तय किया गया कि इसके लिए चुनाव करवाए जाएंगे।
विश्व हिंदू परिषद में ज्यादातर प्रचारक हैं। इनमें 40 फीसदी प्रचारक प्रवीण तोगड़िया के साथ हैं। इसके साथ ही सुब्रमण्यम स्वामी, आचार्य धर्मेंद्र, गोविंदाचार्य, रासबिहारी और महावीर जी भी तोगड़िया के पक्षधर हैं। दरअसल हमेशा नरेंद्र मोदी के साथ रहने वाले तोगड़िया पिछले कुछ समय से सरकार से खफा हैं, क्योंकि पिछले कुछ समय से तोगड़िया राम मंदिर, किसान और बेरोजगारी के मसले पर लगातार सरकार को अपने निशाने पर ले रहे हैं। सूत्र कहते हैं कि सत्ता और संघ के कई नेता नहीं चाहते थे कि प्रवीण तोगड़िया विश्व हिंदू परिषद की कमान संभालें। इसी विरोधाभास को खत्म करने के लिए चुनाव का रास्ता निकाला गया लेकिन इस चुनाव में कुछ ऐसा हुआ जिसकी कल्पना भी शायद संघ और मोदी सरकार ने कभी नहीं की थी।
सूत्र कहते हैं कि जब भुवनेश्वर में वोटिंग हुई तो करीब 60 फीसदी वोट प्रवीण तोगड़िया को मिले, जबकि संघ और मोदी सरकार चंपत राय को अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में देखना चाहते थे, जो मौजूदा समय में अंतरराष्ट्रीय महामंत्री हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद प्रवीण तोगड़िया को सबसे ज्यादा वोट मिले। संघ के भीतर हुई इस घटना ने सबको सकते में डाल दिया था क्योंकि ये कोई छोटी बात नहीं थी, जब सरकार ने अपने ही संगठन में मुंह की खायी थी। इसी के बाद प्रवीण तोगड़िया के बेहोश मिलने वाली घटना होती है, जिस पर प्रवीण तोड़िया कहते हैं- ‘मैं सुबह अपने कार्यालय में पूजा कर रहा था तभी वहां मेरा एक परिचित आता है जो मुझसे कहता है कि आप यहां से तुरंत निकल जाइए क्यों कि कुछ लोग आपके एनकाउंटर के लिए निकले हैं’।
Z+ सिक्यूरिटी वाले प्रवीण तोगड़िया वहां से समय रहते निकल जाते हैं, जिसके बाद वो बेहोशी की हालत में मिलते हैं।
इसी समय राहुल गांधी देश भर के मंदिरों में हिंदू वोटबैंक खंगाल रहे हैं।
11 घंटे बाद बेहोशी की हालत में मिले प्रवीण तोगड़िया से मिलने के लिए हार्दिक पटेल पहुंचते हैं और ये इल्जाम लगाते हैं कि ‘इस पूरी घटना के पीछे मोदी और शाह का हाथ है’। यहां एक अहम तस्वीर देखने को मिली क्योंकि विरोधी खेमे के हार्दिक पटेल तो अस्पताल में हालचाल जानने पहुंचे लेकिन पुराने साथी नरेंद्र मोदी और बीजेपी का कोई भी नेता प्रवीण तोगड़िया से मिलने अस्पताल नहीं पहुंचा। अलबत्ता तोगड़िया के इतने बड़े आरोपों पर बीजेपी एकदम खामोश है। वैसे ये वही बीजेपी है जिसने राम मंदिर का सपना अशोक सिंघल और प्रवीण तोगड़िया के कंधे पर बैठकर देखा था और ये वही प्रवीण तोगड़िया हैं जिन्हें 1979 में महज 22 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों का मुख्य मार्गदर्शक बनाया गया था।
इसी घटना के ठीक 24 घंटे पहले सर संघ चालक मोहन भागवत ने ये कहा था कि ‘सत्ता कृत्रम चीज है, वो बदलती रहती है’। आप इस बात का क्या मतलब निकालते हैं। जरा जोर देंगे दिमाग पर तो तस्वीर साफ हो जाएगी कि ये शब्द किसके लिए कहे गए थे और इसका आशय क्या था। अब जरा एक और तस्वीर देख लीजिए। राम मंदिर का संकल्प लेने वाले प्रवीण तोगड़िया पिछले 22 सालों से अपने घर नहीं गए हैं। बेटी की शादी में भी वो इसलिए नहीं पहुंच पाए थे क्योंकि उस दिन वो धर्म जागरण कार्यक्रम में थे। डॉ. प्रवीण तोगड़िया देश के सबसे बड़े कैंसर सर्जन में शुमार होते हैं। उन्होंने अपने पैसे से एक कैंसर इंस्टीट्यूट खोला है, जहां के मुनाफे के रुपयों में से 1 लाख रुपए उनके घर खर्च को जाता है। बाकी पूरा पैसा सेवा के काम में इस्तेमाल होता है। इतना ही नहीं, जब भी पैसे की कमी होती है तो विदेश जाकर सर्जरी करते हैं और उससे कमाए पैसे को संघ और सेवा कार्यों में खर्च करते हैं।
इसी तस्वीर के समानांतर एक और तस्वीर देखिए। देश में स्वर्गीय अशोक सिंघल और स्वर्गीय बालाजी साहब ठाकरे के बाद अगर किसी नेता की छवि हिंदू नेता के तौर पर सबसे प्रभावशाली थी तो वो नाम डॉ. प्रवीण तोगड़िया का है। संघ से जुड़े सूत्र खुद इस बात का दावा करते हैंं कि गुजरात हिंसा के समय सबसे प्रभावशाली हिंदू नेता प्रवीण तोगड़िया ही थे। उस दौर में तोगड़िया ने ही लाल कृष्ण आडवाणी से बात की थी और हालातों की जानकारी दी थी। लेकिन इसके बाद जो कुछ भी हुआ उसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। यही वो दौर था जब देश के हिंदू वोटबैंक ने एक चेहरे पर अपनी मुहर लगाई थी। ये चेहरा था गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी का। लेकिन हकीकत कुछ और ही थी जिससे आज भी पर्दा नहीं उठा है। देश जिस हिंदू चेहरे को स्वीकार रहा था उसके पीछे सबसे बड़ा योगदान तो प्रवीण तोगड़िया का था। काम तोगड़िया कर रहे थे और नाम मोदी का हो रहा था। कई बार ये क्रेडिट था तो कई मायनों में इसे डिसक्रेडिट भी कहा गया, क्यों कि जिस रीयल हिंदू नेता की छवि को देश देख रहा था असल में उसका जमीन पर कुछ भी आधार था ही नहीं। करते तोगड़िया जा रहे थे लेकिन सीएम होने के नाते उसका पूरा श्रेय मोदी लेते जा रहे थे।
मौजूदा समय में जो क्लेश है या जो विवाद है, वो यही है कि असल में हिंदू चेहरा है कौन? प्रधानमंत्री मोदी ने देश के सामने खुद को हिंदू चेहरे के रूप में पेश किया। लेकिन अगर इसे समझना हो तो उदाहरण के तौर पर क्रिसिटोफर मार्लो और विलियम शेक्सपीयर को देखा जा सकता है। कहा जाता है कि विलियम शेक्सपीयर ने क्रिस्टोफर मार्लो को अपने घर में रख रखा था। वो उनको खाना, कपड़े और पैसे देते थे। इसके एवज में क्रिस्टोफर लिखते थे लेकिन विलियम शेक्सपीयर उसे अपने नाम से प्रकाशित करवाते थे। ठीक इसी तरह से जो कुछ भी होता था वो करते तो प्रवीण तोगड़िया थे लेकिन उसका फल या प्रतिफल नरेंद्र मोदी को मिलता था। बल्कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में सबसे बड़ा सपोर्ट भी प्रवीण तोगड़िया का ही था लेकिन पिछले कुछ समय से तोगड़िया ने खिलाफत का रास्ता चुन लिया था। वो चाहते थे कि राम मंदिर पर संसद में कानून लाया जाए। बेरोजगारी और किसानों की समस्या को सिरे से नकारा ना जाए। इनसे निपटने के लिए रणनीति बनाई जाए। असल में जो हिंदू वोटबैंक के मसीहा थे वो प्रवीण तोगड़िया ही थे, इसलिए सत्ता को उनकी खिलाफत नागवार लगने लगी। अंदर ही अंदर ये डर सताने लगा कि कहीं तोगड़िया ही सबसे बड़ा चेहरा ना बन जाएं इसलिए उनको संगठन से बाहर रखे जाने का फैसला किया गया।
यहां सबसे ज्यादा भटकी हुई कांग्रेस थी। अगर कांग्रेस ने 2002 में आरोपों के कटघरे में मोदी की जगह प्रवीण तोगड़िया को रखा होता तो शायद आज ये तस्वीर खड़ी ही नहीं होती लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया। उसने हमेशा अपने निशाने पर मोदी को लिया। मोदी खुद भी इस बात को बार बार कहते हैं कि उन्होंने अपनी परेशानियों को अपने मौके में तब्दील किया है। असलियत भी यही है। ये बिल्कुल वैसा ही नजारा है जैसा अगर आप मोदी की तस्वीर को साफ करेंगे तो उसके अंदर से तोगड़िया की तस्वीर को निकलकर सामने आना होगा।
अनुराग सिंह
प्रोड्यूसर
सहारा समय
नोएडा
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