मोदी और तोगड़िया : ये जंग हिंदू चहरे के लिए है!

देश में इन दिनों एक सवाल सबके पास है कि प्रवीण तोगड़िया और बीजेपी सरकार के बीच आखिर तकरार है क्या? क्या वजह है कि तोगड़िया ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और क्या वजह है कि वो ये कह रहे हैं कि एनकाउंटर की साजिश रची जा रही है। तो जरा लौटिए 2017 दिसंबर के महीने में, क्यों कि संघ से जुड़े सूत्र कहते हैं कि विश्व हिंदू परिषद जो कि संघ की अनुषांगिक शाखा है, इसके इतिहास में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव करवाए गए। इसकी सबसे बड़ी वजह ये थी कि संघ के भीतर ही दो खेमे बन गए थे। एक खेमा चंपत राय को अध्यक्ष के रूप में देखना चाहता है तो दूसरा खेमा प्रवीण तोगड़िया को अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में देखना चाहता था। लिहाजा तय किया गया कि इसके लिए चुनाव करवाए जाएंगे।

कांग्रेस के दिग्गी राजा संघ के करीबी शंकराचार्य की शरण में पहुंचे! (देखें वीडियो)

मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह उर्फ दिग्गी राजा पहुंचे हरिद्वार. उनके साथ संत प्रमोद कृष्णम भी थे जो कांग्रेस के करीबी माने जाते हैं. ये दोनों कनखल स्थित जगतगुरु आश्रम पहुंचे. इन लोगों ने जगतगुरु शंकराचार्य राजराजेश्वराश्रम महाराज से मुलाकात की. जगतगुरु शंकराचार्य को आरएसएस का बेहद करीबी बताया जाता …

संघ के मुताबिक टीवी पर ब्रेन लेश डिसकसन, इसमें शामिल होते हैं अपठित पत्रकार जिन्हें भारतीय संस्कृति का ज्ञान नहीं (देखें वीडियो)

मऊ : भारत में चाहें जो बड़ी समस्या चल रही हो, सूखा हो, महंगाई हो, भ्रष्टाचार हो लेकिन आरएसएस वालों का हमेशा एक राग बजता है. वह है राग मुसलमान. घुमा फिरा कर कोई ऐसा मुद्दा ले आते हैं जिससे मुसलमानों को चुनौती दी जा सके और पूरे भारत की बहस इसी मसले पर शिफ्ट किया जा सके. दुर्भाग्य से मीडिया का बड़ा हिस्सा भी इसी उलझावों में बह जाता है और भाजपा-संघ का भोंपू बनते हुए मूल मुद्दों से हटते हुए इन्हीं नान इशूज को इशू बना देता है. हालांकि संघ नेता फिर भी टीवी वालों को बख्शते नहीं और कहते हैं कि चैनलों पर ब्रेनलेस डिसकशन चलती है और इसमें अपठित पत्रकार भाग लेते हैं जिन्हें भारतीय संस्कृति का ज्ञान नहीं. मतलब कि अगर संघ का चले तो वो सारे चैनल बंद करा के सिर्फ एक संघ नाम से चैनल चलाएं और उसमें जो कुछ ज्ञान दिया जाएगा, उसे ही प्रसाद के रूप में पाने के लिए देश भर के दर्शक बाध्य होंगे.

बीजेपी महासचिव राम माधव ने मोदी की लाहौर यात्रा पर संघी गोबर डाल दिया

Mahendra Mishra : भारत, पाक और बांग्लादेश एक ही जिगर के टुकड़े हैं। क्रूर हालात ने इन तीनों को एक दूसरे से अलग कर दिया। इनके बीच दोस्ती और मेल-मिलाप हो। एकता और भाईचारा का माहौल बने। अमन और शांति में विश्वास करने वाले किसी शख्स की इससे बड़ी चाहत और क्या हो सकती है । इस दिशा में किसी पहल का स्वागत करने वालों में हम जैसे लाखों लोगों समेत व्यापक जनता सरहद के दोनों तरफ मौजूद है। इसी जज्बे में लोग प्रधानमंत्री मोदी की लाहौर यात्रा का स्वागत भी कर रहे हैं। लेकिन इस यात्रा का क्या यही सच है? शायद नहीं। यह तभी संभव है जब मोदी जी नागपुर को आखिरी प्रणाम कह दें।

एबीपी न्यूज़ पर संबित पात्रा के साथ राकेश सिन्हा ने तो मुनव्वर राना और अतुल अंजान को लगभग नोंच डाला था!

Sheetal P Singh : प्रो. राकेश सिन्हा ने आज RSS के ९० साल के होने और उसके राजनीतिक मंच के दिल्ली के तख़्त पर आसीत रहने के दिन गर्वोक्ति ज़ाहिर की है कि अब उनकी विचारधारा ही चलेगी और दिनोंदिन और बढ़ेगी, दुनिया इसे मान रही है, विश्व गुरू, आदि अनादि! टीवी की संध्या बहसों में वे पिछले कुछ वर्षों में संघ के विचारक के तौर पर स्थापित हैं, वामपंथ सेक्युलरिज़्म और भौतिकवाद को गया गुज़रा, इतिहास के “कूरेदान” में पड़ा मान कर ख़ारिज कर दिया करते हैं! हाल ही में एबीपी न्यूज़ पर मुनव्वर राना और अतुल कुमार अंजान को तो संबित पात्रा के साथ उन्होंने लगभग नोंच डाला था, कई बार लगा हाथापाई अब हुई तब हुई।

Dangerous Hindutva portents : Doordarshan as RSS’s publicity agent

By Praful Bidwai

Hindutva crossed another red line in Indian politics on October 3 when the state-owned Doordarshan news channel made a live broadcast, for the first time ever, of the Vijayadashami (Dussehra) address of a Rashtriya Swyamsevak Sangh chief.

The speech, ritually delivered annually from Nagpur, is meant to convey to swayamsevaks the thinking of the Sangh on current issues and define the RSS’s own relationship with the Bharatiya Janata Party. It is thus an internal matter of the Sangh Parivar, patently lacking any value or relevance for the general public.

विकास पाठक ने आरएसएस क्यों छोड़ा और बीबीसी ने इसे अपने यहां क्यों छापा?

विकास पाठक जेएनयू से पढ़े हैं. पत्रकार रहे हैं. इन दिनों शारदा यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं. बीबीसी संवाददाता सलमान रावी ने विकास पाठक से उनके संघ से जुड़ने से और अलग होने को लेकर विस्तार से बात की. फिर उस बातचीत को विकास पाठक की तरफ से बीबीसी की वेबसाइट पर प्रकाशित करा दिया. ऐसे दौर में जब मोदी, भाजपा और संघ को हरओर महिमामंडित करने का दौर चल पड़ा है, बीबीसी ने संघ को लेकर एक शख्स की जुड़ाव व विलगाव यात्रा को प्रकाशित कर यह साबित किया है कि चारण-भाट बनने के इस दौर में कुछ सच्चे मीडिया ग्रुप भी हैं. कम्युनिस्ट हों या संघी हों, दोनों को लेकर क्रिटिकल खबरें सामने आनी चाहिए ताकि जनता को, पाठकों को खुद फैसला करने में सहूलियत हो और उन्हें दोनों अच्छे बुरे पहलू पता रहे. नीचे बीबीसी में छपी खबर है.

-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया