हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला… मीडियाकर्मी की अवैध छटनी के एक मामले में माननीय छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की एकल पीठ ने एक महत्तपूर्ण आदेश पारित किया है। इसके तहत फरियादी को फौरी तौर पर राहत दी गई है। इसके साथ ही करीब पांच साल से चल रहे इस अवैध छंटनी के मामले की सुनवाई 6 माह के भीतर पूरी करने के लिए श्रम न्यायालय रायपुर को आदेशित किया है।
आइए पहले आपको पूरा मामला समझाते हैं। एस. बी. मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड (गोयल ग्रुप ऑफ़ कंपनी) के न्यूज़ चैनल IBC24 छत्तीसगढ़ ने वर्ष 2017 में अपने कर्मचारी सत्येन्द्र सिंह राजपूत की अवैध छँटनी की थी। इसके पश्चात् सत्येन्द्र सिंह राजपूत द्वारा श्रम अदालत में केस दायर किया गया, जिसमें उन्हें जीत मिली और उन्हें पुनर्स्थापित कर, सेवा समाप्ति दिनांक से लेकर सेवा में लिए जाने दिनांक तक वेतन भत्ता और अन्य हितलाभ प्रदान करने का अधिनिर्णय दिया गया था।
इसके विरुद्ध एस. बी. मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड (गोयल ग्रुप ऑफ़ कंपनी) ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर स्टे प्राप्त कर लिया था। साथ ही एस. बी. मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने कोर्ट में दावा किया था कि श्रम न्यायालय में उनका पक्ष सुने बिना एकतरफा आदेश पारित किया गया है। साथ ही एसबी मल्टीमीडिया ने मामले को वापस श्रम न्यायालय में भेजे जाने की गुजारिश माननीय उच्च न्यायालय में की थी।
माननीय न्यायालय ने क्या फैसला दिया?
हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर स्टे प्राप्त करने से व्यथित होकर सत्येन्द्र सिंह राजपूत भी अपने अधिवक्ता श्री अनादि शर्मा के मार्फ़त छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट पहुंचे, जहां अवैध छंटनी के इस मामले में माननीय न्यायालय ने एस. बी. मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड (गोयल ग्रुप ऑफ़ कंपनी) की अपील को स्वीकार करते हुए 7 जुलाई 2022 को दिए गए फैसले को रद्द करने का आदेश पारित कर दिया है ।
इसके साथ माननीय न्यायालय ने पूरे केस की सुनवाई दोबारा से श्रम न्यायालय में किए जाने का आदेश पारित किया है। वहीं उच्च न्यायालय ने इस मामले में फरियादी मीडिया कर्मचारी को भी राहत देते हुए 20 हजार रुपए मुकदमेबाजी के खर्च के रूप में दिए जाने का आदेश दिया है जिसका वहन एसबी. मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड करेगी।
यही नहीं, इस मामले की सुनवाई श्रम न्यायालय को 6 महीने के भीतर करनी होगी, जबकि श्रम न्यायालय से अंतिम निर्णय आने तक एसबी मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड, अपने हटाए गए कर्मचारी को वेतन भुगतान करने के लिए बाध्य होगी।
माननीय न्यायालय के इस इस विस्तृत आदेश को AFR यानि “Approved For Reporting” माना गया है, और न्यायाधीश नरेंद्र कुमार व्यास के इस निर्णय को किसी भी न्यायिक रिपोर्ट में शामिल करने के लिए उपयुक्त माना गया है।