Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

भारत आए ट्रंप से अमेरिकी पत्रकार भिड़ गया, भारतीय संपादक पूंछ हिलाते रहे!

Sushil Mohapatra : कल राष्ट्रपति भवन में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प से कुछ चुनिंदा एडिटर मिले। पत्रकार नहीं लिख रहा हूँ एडिटर लिख रहा हूँ। पत्रकार और एडिटर के बीच फर्क आप खुद कर लीजिए।अच्छी बात है जब अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलने का इनविटेशन आया है तो मिलना ही चाहिए लेकिन क्या यह बड़े एडिटर सब राष्ट्रपति के प्रेस कांफ्रेंस में भी मौजूद थे? क्या ट्रम्प से सवाल जवाब भी किये थे,शायद नहीं?

CNN के पत्रकार जिम अकोस्टा से भारत के एडिटरों को कुछ सीखना चाहिए। कल के प्रेस वार्ता के दौरान फिर एक बार जिम अकोस्टा और राष्ट्रपति ट्रम्प आमने सामने हुए। पहले कई बार अकोस्टा ट्रम्प को सवाल कर चुके हैं। कल भी सवाल दाग दिए। यह आसान नहीं होता है कि अपने देश के राष्ट्रपति से दूसरे देश में इस तरह सवाल करना लेकिन अकोस्टा ने अपने काम कर दिया। सबसे अच्छी बात है कि ट्रम्प ने उन्हें देहद्रोही नहीं कहा। क्या कभी आपने भारत के पत्रकारों को इस तरह का सवाल करते हुए देखा है। हमारे पत्रकार को देश के अंदर सवाल नहीं कर पाते हैं बाहर तो दूर की बात। चलिए अकोस्टा के सवालों पर आते हैं

Advertisement. Scroll to continue reading.

जिम अकोस्टा ने राष्ट्रपति ट्रम्प से एक साथ दो सवाल पूछा।अकोस्टा ने पूछा अमेरिका में होने वाले चुनाव में क्या ट्रम्प विदेशी दखल अंदाजी को स्वीकार करेंगे दूसरा सवाल था कि नेशनल इंटेलिजेंस से एक्टिंग डायरेक्टर joseph maguire को हटाया जाने वाली निर्णय को ट्रम्प कैसे justify करेंगे ? राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने जवाब में कहा की उन्हें बाहर देशों से मदद की जरूरत नहीं है और बाहर देश से वो कभी मदद लिए भी नहीं है। फिर राष्ट्रपति ट्रम्प ने अकोस्टा से कहा कि “अगर आप अपने बेहतरीन नेटवर्क CNN को बातों पर गौर करेंगे तो मुझे लगता की आप के नेटवर्क को माफी मांगना पड़ा था.क्या यह सच नहीं है कि सच न बताने के लिए आपके नेटवर्क को माफी मांगना पड़ा था” फिर ट्रम्प ने अकोस्टा से पूछा “क्यों माफी मांगना पड़ा था,क्या बोला गया था ?

अकोस्टा ने राष्ट्रपति ट्रम्प के सवालों का जवाब देते हुए बोले की “राष्ट्रपति जी हमारी सच डिलीवर करने का प्रतिशत कभी कभी आप से भी ज्यादा है ” यानी अकोस्टा ने यह साफ साफ ट्रम्प से कहा कि राष्ट्रपति ट्रम्प जीतना सच बोलते है उसे ज्यादा CNN बोलता है। अमेरिकी राष्ट्रपति से ऐसा सवाल करना आसान नहीं था लेकिन अकोस्टा कर गए। फिर राष्ट्रपति ट्रम्प ने जवाब देते हुए कहा कि सच बोलने के मामले में आप की रिकॉर्ड बहुत खराब है और आप के नेटवर्क को माफी मांगने चाहिए फिर Maguire पर जवाब देते हुए राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि “Maguire बहुत भयानक अफसर हैं और ऐसे भी उनकी कार्यकाल मार्च 31 को खत्म हो रही है और हमे बदलाव करना था”

Advertisement. Scroll to continue reading.

अकोस्टा ने फिर ट्रम्प से सवाल किया जो इंटेलिजेंस का एक्टिंग डायरेक्टर बनेगा क्या उसका इस फील्ड में कोई अनुभव होगा ? ट्रम्प ने जवाब दिए कि पांच लोगों से बातचीत चल रही है और अगले एक दो हफ्ते में निर्णय लिया जाएगा । अकोस्टा ने फिर सवाल किया कि क्या इंटेलिजेंस डायरेक्टर Maguireको इसीलिए हटाया जा रहा है क्यों कि वो राष्ट्रपति ट्रम्प के प्रति बफादार नहीं थे। ट्रम्प ने कहा कि ऐसा नहीं है।इस सवाल जवाब के वजह से जिम अकोस्टा ट्विटर पर ट्रेंड करने लगे। कई लोगों ने उनकी तारीफ भी की और कईयों ने अलीचना भी किया।

जहां भारत की मीडिया इस सवाल जवाब को गंभीरता से नहीं लिया वहीं विदेशी मीडिया इस खबर को विस्तार से छापा है। पिछले चार साल से अकोस्टा राष्ट्रपति ट्रम्प से सवाल पूछते आ रहे हैं। 2018 में अकोस्टा के सवालों के वजह से उन्हें वाइट हाउस के प्रेस कांफ्रेंस में भाग लेने से रोक लगा दिया गया था फिर CNN कोर्ट पहुंचा था और मानहानि का मुकदमा किया था। CNN ने कोर्ट में कहा था अकोस्टा के ऊपर प्रतिबंध लगा कर वाइट हाउस गलत कर रहा है और इस प्रतिबंध से अकोस्टा और नेटवर्क की पहला और पांचवी मौलिक अधिकार का हनन हो रही है। दवाब के वजह से वाइट हाउस अपने निर्णय को वापस लिया था। 2019 में जिम अकोस्टा ने एक किताब भी लिखा है जिया का नाम है The enemy of the people:A dangerous time to tell the truth I’m america..

Advertisement. Scroll to continue reading.

आजकल भारत की मीडिया की हाल क्या है सब को पता है। मीडिया की इस हाल के लिए एडिटर लोग सब ज़िम्मेदार है। सिर्फ एडिटरों के वजह से पूरी मीडिया इस स्तर तक पहुंच गया है। टीवी में क्या चलेगा और पेपर में क्या छपेगा यह एडिटर सब निर्णय लेते है।शाम होते ही चैनल से न्यूज़ सब गायब हो जाते हैं और 8-10 छोटे छोटे विंडो में गेस्ट सब दिखाई देते हैं। बहस ऐसी टॉपिक पर होती है जिसे से न तो समाज को कोई फायदा है, ना युवाओं ना किसान ना मजदूरों को।कल दिल्ली के हिंसा को लेकर कई चैनल में अलग अलग पार्टी के प्रवक्ताओं बुलाया गया। हिंसा को लेकर ब्लेम गेम शुरू हुई, बहस शुरू हुई। हिंसा की नहीं चैनलों को अपने टीआरपी की चिंता थी। ऐसे समय में बहस की नहीं लोगों की समस्या दिखाने की जरूरत थी।

जो युवा सब पत्रकारिता में सब आना चाहते हैं उन के लिए यह सही समय नहीं है। आजकल पत्रकारिता हो ही नहीं रहा है। ऐसे भी आजकल युवाओं को मौका भी नहीं मिलता है। कई युवा पत्रकार हैं जो अच्छा काम भी कर रहे हैं लेकिन एडिटर के दवाब में उनके कैरियर खत्म हो जाता है। हर जमाने में ऐसे पत्रकार रहे हैं जिन की कैरियर इस तरह एडिटर लोगों ने खत्म किया है। न ऐसे युवाओं को ठीकठाक तंखा मिलता है ना ही इन्हें अपने से कुछ करने के लिए मौका दिया जाता है। एडिटर अपने सोच और अपना विचार इन युवाओं के ऊपर थोपते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मीडिया फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की बात करती रहती है लेकिन मीडिया संस्था में फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के नाम पर आजकल कुछ नहीं रह गया है। एक पत्रकार खुद तय नहीं कर सकता है उसे क्या करना है। स्टोरी कितनी बड़ी होनी चाहिए, स्टोरी का एंगल क्या होना चाहिए।वो एडिटर का गुलाम बनकर रह गया है।आजकल ग्राउंड रिपोर्ट लगभग बंद हो गए हैं। कुछ पत्रकार तो करते हैं लेकिन वो काफी नहीं है। ग्राउंड रिपोर्ट के लिए पत्रकारों को पूरा मौका मिलना चाहिए। समय भी मिलना चाहिए। बेस्ट ग्राउंड रिपोर्ट के लिए एक दिन का समय काफी नहीं है। पत्रकारों को घूमना चाहिए। एक पत्रकार तब बेस्ट बन सकता है जब वो खूब घूमेगा,लोगों से मिलेगा उनके समस्या के बारे में जानेगा। खुद को उनके समस्या से मिला लेगा। एक पत्रकार को स्टोरी के साथ इमोशनली जुड़ जाना बहुत जरूरी है लेकिन इन इमोशन का असर स्टोरी के कंटेंट और सोच के ऊपर नहीं होना चाहिए। जब तक स्टोरी के साथ इमोशनल अटैचमेंट नहीं होगा तब तक स्टोरी बेस्ट नहीं बनेगा। दिमाग सोचना ही बंद कर देगा।

आजकल एक युवा पत्रकार थोड़ा बहुत पैसा कमा सकता है लेकिन पत्रकारिता नहीं कर सकता है। सबसे बड़ी बात है जो लोग बहुत पैसा कमा रहे हैं वो लोग पत्रकारिता नहीं कर रहे हैं।युवाओं को पत्रकारिता में आना बंद कर देना चाहिए या फिर उस जगह जाना चाहिए जहां पत्रकारिता हो रही है। हमेशा यह देखना चाहिए पत्रकारिता के लिए मौका मिल रहा है या नहीं। पैसा और पत्रकारिता एक साथ नहीं हो सकता है। बहुत ही कम पत्रकार हैं जो पैसा भी कमा रहे हैं और पत्रकारिता कर रहे हैं।एक संस्था से जुड़ने के बाद एक युवा आप ने आप उस संस्था के साथ ठान लेता है, समय के साथ वही करता चले जाता है जो एडिटर और संस्था चाहता है लेकिन 8-10 साल के बाद जब वो पीछे मुड़कर देखता है तो उसे सब खाली नज़र आता है। उसे लगता है वो बहुत कुछ मिस कर दिया है। वो आगे जाते हुए भी बहुत पीछे हो गया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एनडीटीवी में कार्यरत सुशील मोहपात्रा की एफबी पोस्ट.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement