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सोशल मीडिया पर भारतीय दक्षिणपंथी का दिमाग

जिसके पास दिमाग और दिल नहीं है। राजेंद्र धोड़पकर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनका एक दिलचस्प छोटा-सा टुकड़ा पढ़िए- “भारतीय दक्षिणपंथी एक ऐसी प्रजाति है, जिसे प्रकृति का अनोखा उपहार कह सकते हैं, क्योंकि उनके पास न दिल है, न दिमाग है। उनके सीने में और खोपड़ी के अंदर क्या है, इस बारे में भूगर्भशास्त्रियों, कृषि वैज्ञानिकों, पशु चिकित्सकों और पुरातत्ववेत्ताओं की अलग-अलग राय है।

<p>जिसके पास दिमाग और दिल नहीं है। राजेंद्र धोड़पकर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनका एक दिलचस्प छोटा-सा टुकड़ा पढ़िए- "भारतीय दक्षिणपंथी एक ऐसी प्रजाति है, जिसे प्रकृति का अनोखा उपहार कह सकते हैं, क्योंकि उनके पास न दिल है, न दिमाग है। उनके सीने में और खोपड़ी के अंदर क्या है, इस बारे में भूगर्भशास्त्रियों, कृषि वैज्ञानिकों, पशु चिकित्सकों और पुरातत्ववेत्ताओं की अलग-अलग राय है।</p>

जिसके पास दिमाग और दिल नहीं है। राजेंद्र धोड़पकर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उनका एक दिलचस्प छोटा-सा टुकड़ा पढ़िए- “भारतीय दक्षिणपंथी एक ऐसी प्रजाति है, जिसे प्रकृति का अनोखा उपहार कह सकते हैं, क्योंकि उनके पास न दिल है, न दिमाग है। उनके सीने में और खोपड़ी के अंदर क्या है, इस बारे में भूगर्भशास्त्रियों, कृषि वैज्ञानिकों, पशु चिकित्सकों और पुरातत्ववेत्ताओं की अलग-अलग राय है।

प्रकृति जब कोई चीज छीनती है, तो उसके बदले देती भी है। दिल और दिमाग छीन लेने के एवज में उसने इस प्रजाति के हाथों और कंठ को जबर्दस्त शक्तिशाली बना दिया है। अगर नेट पर तमाम खबरिया या सोशल साइट्स पर जाएं तो आप पाएंगे कि किसी खबर या सूचना के आते ही इस प्रजाति के लोग ऐसी भाषा में टिप्पणियां करना शुरू कर देते हैं, जिससे पशु चिकित्सकों की राय सही मालूम देने लगती है।

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यह सब याद आने की वजह नेपाल का भयानक भूकंप है। आपदा के बीच इस प्रजाति के लोगों को याद आया कि मरे हुए लोगों का धर्म क्या है। सोशल मीडिया पर इस तरह की तमाम टिप्पणियां छा गईं कि पाकिस्तान में बीस बच्चे मरे तो धर्मनिरपेक्ष लोग मोमबत्तियां जला रहे थे, यहां हजारों हिंदू मर गए तो मोमबत्तियां क्यों नहीं जलीं। जैसे भूकंप ने धर्म पहचान कर चुन-चुन कर हिंदुओं को मारा, बाकी को छोड़ दिया। दूसरे उत्साही लोगों ने सोचा कि राहत कार्य में तो बाद में जाएंगे, पहले प्रचार कर लें। सो कहीं और की फोटो काट-पीटकर नेट पर डाल ली। फोटोशॉप से बनाई उस नकली तस्वीर को देख कर यही लगता है कि प्रकृति ने इस प्रजाति को फोटोशॉप से ही बनाया है। अब फोटोशॉप से दिल, दिमाग तो नहीं बन सकता न!” 

अरविंद शेष के एफबी वॉल से

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