रिश्वतखोर इंस्पेक्टर मनोज पंत ने ‘सूर्या समाचार’ की यौन पीड़िता को दुखी कर रखा था!

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सूर्या समाचार में कार्यरत रही यौन हिंसा की शिकार महिला पत्रकार के लिखे का स्क्रीनशॉट. महिला पत्रकार का नाम उनकी पहचान उजागर न किए जाने के कारण मिटा दिया गया है.

नोएडा के सेक्टर 20 थाने के एसएचओ मनोज पंत पर कई किस्म के आरोप लगते रहते थे. मनोज पंत से दुखी एक महिला पत्रकार ने अरेस्टिंग के बाद अपनी भड़ास फेसबुक पर निकाली है. सूर्या समाचार न्यूज चैनल में कार्यरत रही इस महिला पत्रकार के साथ जब वहीं चैनल के आफिस में ही कार्यरत कुछ मीडियाकर्मियों ने दो बार छेड़छाड़ की और धमकाया तो वह सेक्टर 20 थाने गई. महिला पत्रकार की एफआईआर लिखने की बजाय मनोज पंत पीड़िता को ही धमकाता रहा और कहता रहा कि क्या वह उनसे पूछ कर वहां नौकरी करने गई थी.

पीड़िता का कहना है कि मनोज पंत सूर्या समाचार के मालिकों से मिलकर पैसे खा लिए जिसके बाद वह पहले तो एफआईआर करने को तैयार न था, उलटे पीड़िता को ही तरह तरह से धमकाता डराता रहा. बाद में जब भड़ास4मीडिया ने पूरे प्रकरण की खबर प्रकाशित की और एफआईआर न किए जाने पर सोशल मीडिया पर अभियान चलाया तो डरे हुए मनोज पंत ने एकदम से गिरगिट की तरह रंग बदला व पीड़िता को बहन-बहन पुकारने लगा.

इंस्पेक्टर मनोज पंत

पीड़िता का कहना है कि सेक्टर बीस थाने के थानेदार से लेकर जांच अधिकारी तक उसे परेशान करते रहे हैं और आरोपियों को बचाने के लिए प्रबंधन से मिल गए हैं. पीड़िता का कहना है कि उसे पुलिस के शह के कारण ही प्रबंधन ने नौकरी से निकाला, तनख्वाह तक न दिया और आरोपी अभी तक खुलेआम घूम रहे, धमका रहे और आफिस में काम भी कर रहे. मतलब जो पीड़िता है, वह झेल रही है, जो आरोपी हैं वे मौज कर रहे हैं. पीड़िता का आरोप है कि भ्रष्ट पुलिस वालों के चलते ही उसके साथ अभी तक न्याय नहीं हुआ और अन्यायी बेखौफ हैं. महिला पत्रकार ने कहा कि जो जैसा करता है, उसे कभी न कभी दूसरे फार्मेट में भुगतना पड़ता है. मनोज पंत अपनी पैसे की हवस और पीड़ितों के श्राप के चलते नप गए हैं. यह बाकी रिश्वतखोरों के लिए एक सबक की तरह है कि उन्हें सरकार की तरफ से जिस जनता की खून-पसीने वाली कमाई से बटोरे गए टैक्स को तनख्वाह के रूप में दिया जाता है, उसी जनता के दुखों-पीड़ाओं के प्रति असंवेदनशील न हों वरना उन्हें एक न एक दिन इनकी आह ले डूबेगी.

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उधर, मनोज पंत के बचाव में भी कुछ लोग दबी जुबान से उतरे हैं. इनका दावा है कि पंत को नियमसम्मत तरीके से गिरफ्तार नहीं किया गया. इनका आरोप है कि पंत को साजिशन फंसाया गया है. अगर कोई अधिकारी रिश्वत लेता है तो उन नोटों पर इंक लगाया जाता है और जब वह उन इंक लगे नोट को लेता है तो इंक उसके हाथ में लग जाती है, जो प्रमाण होता है कि अधिकारी ने रिश्वत ली. पंत के करीबियों का कहना है कि मनोज पंत को बिना सुबूत धरा गया है. इनका ये भी दावा है कि मनोज पंत को किसी बड़ी साजिश में खुद को फंसाए जाने की आशंका पहले ही थी जिसके कारण उन्होंने अपने कुछ करीबी लोगों को फोन कर इस डर का इजहार किया था कि उनके साथ कोई अनहोनी हो सकती है. यहां तक कि वे फोन पर बात करते और खुद के खिलाफ साजिश रचे जाने को लेकर रो पड़े थे.

फिलहाल मनोज पंत को लेकर जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं लेकिन सबका एक बड़ा जवाब ये दिया जा रहा है कि वैभव कृष्ण बेहद ईमानदार अफसर हैं. उनके साथ काम कर चुके कुछ इंस्पेक्टरों का दावा है कि वैभव कृष्ण जी अपने थानेदारों तक की चाय नहीं पीते. यही वजह है कि नामचीन चैनलों में कार्यरत तीन तीन पत्रकारों के भी इस रिश्वत कांड में फंसने से वैभव कृष्ण के कदम डगमगाए नहीं बल्कि उन्होंने सबको कानून की नजर में समान दोषी मानते हुए हवालात के भीतर खड़ा कर दिया. देखना है कि पुलिस विभाग इस मामले में कितने सुबूत और प्रमाण इकट्ठा कर पाता है जिससे कोर्ट में नोएडा पुलिस की किरकिरी होने से बच सके क्योंकि इस मामले में दो-दो पुलिस इंस्पेक्टर और तीन-तीन पत्रकार आरोपी हैं.


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