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सुख-दुख

हिंसा और उपद्रव के नाम पर इंटरनेट रोकना ठीक नहीं, सोशल मीडिया और एप आदि बंद करो!

मुकुंद हरि-

भारत के सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इंटरनेट अब एक मौलिक अधिकार है। कई देशों में आधिकारिक रूप से इंटरनेट को लोगों के मौलिक अधिकारों में जोड़ भी दिया गया है। सरकारें खुद लोगों को डिजिटल बनने को विवश कर चुकी हैं।

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बीते दिनों की हिंसा के बाद बिहार सरकार के गृह-विभाग ने आदेश जारी करते हुए कुल 23 ऐसे एप्लीकेशनों की सूची जारी की जिनपर रोक लगाने को कहा गया ताकि उपद्रव और हिंसा के लिए उकसाने और भड़काने वाले किसी की प्रकार के संदेश न भेजे जा सकें।

गौरतलब है कि बिहार सरकार की नज़र में गूगल प्लस पर भी रोक लगाने को कहा गया है जिसे खुद गूगल ने एप्रिल 2019 में ही बंद कर दिया था। इसके अलावा यूट्यूब के अपलोड पर रोक की बात लिखी गयी है, यानी यूट्यूब को देखना या वीडियो डाउनलोड करने पर रोक नहीं लगनी चाहिए थी।

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हो सकता है इस सूची में और भी कई एप्लिकेशन्स हों जो अब काम न करते हों, पुष्टि फ़िलहाल नहीं कर सकता।

लेकिन हुआ क्या ! सरकारी आदेश के ज़रिए 12 करोड़ से ऊपर की पूरी आबादी की इंटरनेट सेवा 17 जून 2022 की रात्रि से (जबकि आदेश के मुताबिक दोपहर 2 बजे से होना चाहिए था) 20 जून 2022 की आधी रात तक बंद कर दी गयी। पहले आदेश में इन एप्लीकेशनों को 19 जून तक बंद करने की बात थी।

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होना क्या चाहिए था ! यह कि पूरी आबादी की इंटरनेट सेवा बंद करने की जगह उन माध्यमों, जिनका उल्लेख इस सूची में हुआ है, उनकी सेवाएं बंद की जानी चाहिए थीं लेकिन ये नहीं हुआ।

नतीजतन, अनगिनत लोग ऐसे हैं जिनको तमाम तरह की हानि हुई। किसी के क्रेडिट कार्ड के पेमेंट में विलंब हुआ, किसी के व्हीकल इंश्योरेंस में देरी हुई, जिस कारण अब बिना सर्वेयर के उनका बीमा नहीं होगा। किसी के दूसरे पेमेंट्स में दिक्कत हुई। असंख्य लोगों को ऑनलाइन ट्रांजेक्शन न होने से असुविधाएं हुईं। कई पैसों की कमी की वजह से जरूरी दवाएं न खरीद सके। बैंकों में भी शुरुआती डेढ़ दिनों तक लिंक बाधित था। एटीएम भी अधिकांश जगहों पर ठप्प पड़ गए थे, जहाँ ठीक थे, वहाँ नकदी खत्म थी।

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ऐसे अनगिनत मामले हुए हैं। भभुआ में 1 छात्र ने ऑनलाइन परीक्षा न दे पाने के कारण आत्महत्या कर ली। कई जगहों में ऐसा भी हुआ कि कुछ लोगों के मोबाइल में रोक के बावजूद इंटरनेट चालू था।

इन सब परेशानियों की जिम्मेदारी किसकी है ! क्या सरकारें ऐसी व्यवस्था नहीं बना सकतीं कि जिन ऑनलाइन, सोशल मीडिया माध्यमों के कारण समाज में हिंसा होने की संभावनाएं हों, केवल उन्हें ही बंद किया जाय ताकि आम आदमी जो अब इन्टरनेट पर हर लिहाज से निर्भर बन चुका है, बना दिया गया है, उसकी आवश्यक सेवाएं बाधित न हों !

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तय मानिए कि चाहे पटना हाइ कोर्ट हो या सुप्रीम कोर्ट, एक अदद पीआईएल फ़ाइल करने की देरी है और केंद्र हो या राज्य सरकार, इनको जवाब देते न बनेगा।

वैसे, आंकड़े बताते हैं कि भारत इंटरनेट पर रोक लगाने के आदेश देने में भी अव्वल हो चुका है। समय आ गया है कि केंद्र सरकार ऐसे सभी एप्लीकेशन्स, प्लेटफॉर्म्स पर जरूरत के हिसाब से त्वरित रोक लगाने की व्यवस्था, नियम बनाये ताकि समूची इंटरनेट सेवा बंद न करनी पड़े जिससे कि बाकी के लोगों को न भुगतना पड़े।

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