Badri Prasad Singh-
वर्ष १९८८ की गर्मी के दिन थे।राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह इलाहाबाद लोक सभा के ऐतिहासिक उपचुनाव में सुनील शास्त्री को पराजित कर प्रधानमंत्री राजीव गांधी एवं मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह का मान मर्दन कर चुके थे।एक दोपहर को सूचना मिली कि खुल्दाबाद थाने की करेली स्कीम के एक विवादित स्थल पर मुसलमान बलात मस्जिद निर्माण कर रहे हैं, क्षेत्राधिकारी होने के कारण मैं स्थानीय पुलिस तथा एक प्लाटून पीएसी के साथ वहां पहुंच कर निर्माण कार्य रुकवा, निर्माण सामग्री हटवा कर सुरक्षा बढ़ाते हुए एक प्लाटून पीएसी वहां कैम्प करा दिया और दूसरी शाम मैं पत्नी के इलाज हेतु चार दिन के लिए दिल्ली चला गया।
करेली स्कीम नई कालोनी बसी थी जिसमें हिंदू मुसलमान दोनों के मकान थे।एक छोटे टीले को मुसलमान क़ब्रिस्तान तथा हिन्दू अपना श्मशान बताते थे ,इसी विवाद के कारण प्रशासन ने वहां निर्माण पर रोक लगाई थी और पांच सिपाहियों की सुरक्षा गार्ड लगाई थी। वहां छोटे से स्थान पर कुछ मुस्लिम नमाज पढ़ते थे।उस टीले के पास दोनों समुदायों के मकान थे।
अवकाश से वापसी के बाद जब मैं कोतवाली स्थित अपने कार्यालय आया तो पता चला वहां हजारों मुसलमान एकत्र होकर तीन दिन से लगातार मस्जिद बना रहे हैं, पुलिस मूकदर्शक बनी है, निरीक्षक खुल्दाबाद धायल पड़े हैं।इसी समय कुछ स्थानीय हिंदू नेताओं ने आकर बताया कि मुसलमानों की दबंगई और प्रशासन की कायरता देख कर हिंदू भी दूसरे विवादित स्थलों पर कब्जा करने की योजना बना रहे हैं। स्थिति विस्फोटक देखकर मैं तत्काल थाना खुल्दाबाद आया।
थाने पर ज्ञात हुआ कि मेरे अवकाश पर जाने के दूसरे दिन शुक्रवार था और दोपहर को स्थानीय मुसलमानों ने हंगामा किया कि उनकी मजारों पर पीएसी तथा गार्द के सिपाही थूकते तथा गंदगी करते हैं। मेरी अनुपस्थिति में मेरा कार्य देख रहे सीओ तथा निरीक्षक खुल्दाबाद से उन्होंने कहा कि वे वहां मस्जिद नहीं बनाएंगे, वहां से गार्द तथा पीएसी हटा ली जाय तो पुलिस से टकराव नहीं होगा।सीओ नए थे,पूरी जानकारी नहीं थी,वह निरीक्षक के मना करने पर भी गार्द तथा पीएसी हटाने का आदेश दे दिया।तभी कुछ मुस्लिमों ने निरीक्षक पर पथराव कर उसे धायल कर दिया, लेकिन सीओ तब भी पीएसी को नहीं रोका।उसी शाम को शहर के हजारों मुसलमान वहां एकत्र होकर ट्रकों से ईंट,बालू, सीमेंट,सरिया आदि गिराकर युद्ध स्तर पर मस्जिद निर्माण करने लगे, पुलिस अधीक्षक नगर जब मौके पर रोकने गए तो उन्होंने उनसे बात तक नहीं की।तभी से दिन रात निर्माण चल रहा है और निरीक्षक अपने सरकारी आवास में पड़े हैं।
मैं थाना परिसर में स्थित निरीक्षक उदय नारायन सिंह के आवास पर दरोगाओं के साथ आया तो निरीक्षक को शरीर पर मरहम पट्टी बांधे भीष्म पितामह की तरह एक लकड़ी के तख्त पर लेटे पाया।उनके चेहरे पर उदासी, नैराश्य, दुःख का भाव स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था।मुझे देखते ही उनकी आंखों से आंसू झरने लगे।एक अनुभवी, परिपक्व निरीक्षक को इस तरह टूटते मैंने पहली बार देखा था।मैंने झिड़कते हुए उनसे कहा कि लड़कियों की तरह रोना बंद करो,तुम बहादुर निरीक्षक ही नहीं,बागी बलिया के क्षत्रिय हो,शीध्र स्वस्थ हो जाओगे।उदय नारायण जोर से रोते हुए कहा कि वह शरीर पर आई चोट से नहीं अपितु दिल पर लगी चोट के कारण रो रहे हैं।चार दिन पहले मुस्लिम जब मस्जिद निर्माण की शुरुआत कर रहे थे तो आपने उन्हें धमका कर भगा दिया था और आपकी अनुपस्थिति में वह सीओ ,पीएसी तथा अपने थाने की फोर्स के सामने उन्हीं मुस्लिमों से पिट गए , कोई उन्हें बचाने नहीं आया और अब कानूनी रोक के बाद भी वहां दबंगई से मस्जिद बनाई जा रही है।अब वह त्यागपत्र दे देंगें।इतना कह कर वह फफक कर रोने लगे।मुझे कृष्ण के बाद उनकी रानियों को ले जा रहे अर्जुन याद आए जिन्हें पराजित कर भीलों ने रानियों का अपहरण कर लिया था।
मनुज बली नहिं होत है,समय होत बलवान।
भील हरी सब गोपियां,वहि अर्जुन वहि बान।।
मैं वहां उपस्थित दरोगाओं को डांटकर, निरीक्षक को सांत्वना देकर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पास आकर पूरी स्थिति बताई लेकिन वह स्थितिप्रज्ञ रहकर बोले कि वहां मस्जिद नहीं बन रही है, उसमें मीनार नहीं बनेगी, उन्हें एक न्यायाधीश तथा मुस्लिम नेताओं ने आश्वस्त किया है। मेरी उनसे खूब बहस हुई और हम एक दूसरे से असहमत बने रहे।मैं खीझ, उन्माद और नैराश्य के साथ जिलाधिकारी से मिल कर सारी जानकारी देकर कहा कि शहर दंगे के मुहाने पर खड़ा है।यदि यह अवैध निर्माण न रोका गया तो हिंदू पक्ष भी किसी दूसरे विवादित स्थल पर निर्माण करेगा। जिलाधिकारी मुझसे पूर्ण सहमत होकर बोले कि यही सब बातें क्या मैं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के सामने कह सकता हूं? मेरे हां कहने पर शाम सात बजे जिलाधिकारी ने अपने आवास पर मीटिंग रखी जिसमें यसयसपी,यसपी नगर, मैं,सीओ स्थानीय अभिसूचना तथा एडीएम नगर को प्रतिभाग करना था। मैं वहां से उठकर एडीएम नगर तथा सीओ स्थानीय अभिसूचना से फोन पर विस्तृत वार्ता की , दोनों मुझसे सहमत थे।
शाम सात बजे की बैठक मेरे लिए आसान नहीं थी। यसयसपी मुझे बहुत मानते थे, उन्ही के विरोध में उन्हीं के सामने मुझे बोलना था।बैठक प्रारंभ हुई,विषय प्रवर्तन करते हुए मैंने कहा कि मुस्लिम विधि विरुद्ध निर्माण कर रहे हैं,यसपी नगर के रोकने पर भी नहीं मानें,इससे हिंदू उद्वेलित है,शहर में साम्प्रदायिक तनाव चरम पर है।यदि इसे न रोका गया तो पुलिस की प्रतिष्ठा समाप्त होकर गुंडों का राज होगा और शांति व्यवस्था बिगड़ेगी।
यसयसपी ने पहले तो उसे मस्जिद नहीं मानी ,बाद में कहा कि यदि निर्माण रोका गया तो भयानक साम्प्रदायिक दंगा होगा और पर्याप्त अतिरिक्त पीएसी की आवश्यकता होगी। मैंने स्वीकारा कि रोकने पर दंगा होगा लेकिन यदि हम यह निर्माण न रोकें तो तीन चार दिन में हिंदू कहीं दूसरी जगह खुराफात करेगा और दंगा होगा। अभी हमने निर्माण रोका और दंगा हुआ तो यह दंगा कानून पालन कराने में माना जाएगा लेकिन यदि चार दिन बाद वाला दंगा हुआ तो हम इस अवैध निर्माण को न रोकने का जवाब नहीं दे पाएंगे।मेरे बाद एडीएम नगर लाल बहादुर तिवारी, जो मेरे छात्रावास के वरिष्ठ थे तथा सीओ स्थानीय अभिसूचना के.सी.सिंह ने मेरा समर्थन किया।यसपी नगर तटस्थ रहे,यसयसपी अकेले पड़ गए। डीएम प्रभात चतुर्वेदी जी ने अंत में मेरी बात मानते हुए रात में ही निर्माण रुकवाने को कहा।जिले में उस समय दो कम्पनी पीएसी थी। यसयसपी ने डीआईजी से बात कर प्रातः तक दो अतिरिक्त कंपनी की व्यवस्था कर ली।सबको पता था कि दंगा होगा और कर्फ्यू लगेगा लेकिन कुछ दाग अच्छे भी होते हैं।
मीटिंग से निकलते ही यसपी नगर ने कहा कि चलो रोका जाय। मैंने हंसते हुए कहा कि अभी शहर में चहल पहल है,अभी नहीं।१२ बजे रात्रि खुल्दाबाद में शहर के सभी थानाध्यक्षों,चौकी प्रभारियों को पर्याप्त सिपाहियों के साथ बुलाएं तथा पूरी उपलब्ध पीएसी भी आए, वहीं ब्रीफ कर निर्माण स्थल चलेंगे,तब तक लोग भी सो जाएंगे। १२ बजे सभी बल ,सभी नगर मजिस्ट्रेट खुल्दाबाद थाना एकत्र हुए, मैंने ब्रीफ किया,दो सीओ असहमत होकर बोले कि दो तीन दिन और दिल्ली रुक जाते तो मस्जिद बन जाती,अब गिराने पर दंगा होगा ।रोकने से क्या फायदा? वहां नमाज तो होती ही थी। मैं चुप रहा। इतने में यसपी और एडीएम नगर भी आ गए। वह सीओ फिर बोले तो यसपी नगर ने कहा कि यह वरिष्ठ अधिकारियों का आदेश है, इसका पालन होना है।
लगभग एक बजे पूरा बल करैली स्कीम प्रस्थान किया।योजनानुसार निर्माण स्थल तीन तरफ से घेरना था तथा एक तरफ खुला रखना था जिधर से भीड़ भाग सके।हम सब पहुंच कर तीन तरफ से घेर कर खड़े हो गए मैं एडीएम , यसपी नगर बीच में थे शेष बल मेरे बाएं और दाएं था।मैंने अपनी जिप्सी में लगे लाउडस्पीकर से घोषणा की कि यह निर्माण अवैध है ,इसे बंद कर सभी यहां से ५मिनट में चले जाने नहीं तो बल प्रयोग होगा। उस समय भी निर्माण कार्य चल रहा था और लगभग तीन सौ लोग थे।मेरे कहने के बाद निर्माण स्थल से गालियां, धार्मिक नारों की आवाज़ आने लगी तथा वहां से हटने से मना किया गया और कुछ देशी बम भी फूटे लेकिन धीरे धीरे संख्या घटने लगी।
चार मिनट बाद मैंने घोषणा की कि मात्र एक मिनट शेष है तब तेजी से लोग जाने लगी। ५ मिनट बाद फोर्स तीन तरफ से घुसी जो भाग रहे थे उन्हें जाने दिया, २०-२५ जमें रहे, उन्हें डंडा प्रसाद देकर भगा दिया। निरीक्षण करने पर पाया कि चार दिन में ही भूमिगत एक बड़ा कमरा तैयार हो गया था,तथा भूतल पर ७-८ फुट ऊंची दीवार खड़ी हो गई थी कल उस पर भी छत ढल जाती। निर्णय हुआ कि ऊपर की दीवार गिराई दी जाय। दीवार ताजी थी आसानी से गिर गई। उधर नूरुल्ला रोड तथा अटाला क्षेत्र में मस्जिदों से एलान होने लगा तथा शोर शराबे के साथ इलाहाबादी देशी बमों एवं तमंचों की फायरिंग होने लगी।मैंने चौकी इंचार्ज अटाला यसपी सिंह को दो प्लाटूनों के साथ आगे सड़क पर भेज दिया जिससे हम घिर न जाए।थोड़ी देर में हम अपना कार्य समाप्त कर जब मुख्य मार्ग पर आए तो नूरुल्ला रोड पर दसियों हजार की भीड़ धार्मिक नारे लगाती, बम बाजी तथा गाली गलौज करती मिली। हम उधर से सीधे न जाकर पीछे से घूमकर मीरापुर अतरसुइया से फोर्स भेजा। हमें दूसरे रास्ते से जाते देख उपद्रवी हमारी तरफ दौड़े, मैं तथा नए निरीक्षक खुल्दाबाद, उदयभान सिंह अपने साथी पुलिस बल के साथ अपनी जीपों की लाइट उपद्रवियों पर डालते हुए १५-२० राउंड हवाई फायर किए जिससे उपद्रवी आगे नहीं बढ़े, पूरी फोर्स के रवाना होते ही हम भी अपनी गाड़ी घुमाकर कोतवाली चले आए, जहां डीएम, यसयसपी हमारी बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। हमने पूरी रिपोर्ट उन्हें दी।
शांति व्यवस्था हेतु तीन सेक्टर कोतवाली,नखास कोहना तथा खुल्दाबाद बनाए गए।एक एक सीओ,कुछ थानाध्यक्ष,एक एक प्लाटून पीएसी सभी को दी गई। तय हुआ कि सुबह की स्थिति देख कर कर्फ्यू लगाने पर निर्णय लिया जाएगा।कुछ देर बाद मैं,नगर मजिस्ट्रेट पंकज गंगवार एक ट्रक पीएसी के साथ मिर्जा गालिब रोड की सूनी सड़क पर जा रहे थे कि छतों से बमबाजी हो गई।हम हवाई फायरिंग कर लौटे, आकर कोतवाली बैठे वरिष्ठ अधिकारियों को बताकर कर्फ्यू लगवाया गया जिससे अगले दिन न जानकारी में जन धन की हानि न हो। दूसरे दिन प्रातः जब हम नूरुल्ला रोड पर एक कंपनी पीएसी के साथ पैदल चलकर कर्फ्यू की घोषणा कर रहे थे तो पाया कि सड़क पर तीन जगह ईंटों की ३ फुट ऊंची दीवार बनी थी।यदि हम रात में उसी रास्ते वापस होते तो गाड़ियां वहीं रुकती और हमारे ऊपर बमबाजी तथा तमंचे, बंदूकों से फायरिंग होती और माकूल जवाब हमें भी देना पड़ता जिससे दोनों तरफ के लोग मारे जाते।
यह कर्फ्यू हमने अपने विवेक से लगाया था इसलिए शहर में कहीं आगजनी, लूटपाट या हिंदू-मुस्लिम संघर्ष नहीं हो पाया।मिर्ज़ा ग़ालिब रोड और हमाम गली में शरारत का प्रयास हुआ लेकिन हमने तत्काल आवश्यक बल प्रयोग कर संभाल लिया।दस दिन तक कर्फ्यू रहा।धीरे धीरे कर्फ्यू उठा लिया गया।हिंदू- मुस्लिम संघर्ष कहीं नहीं हुआ। मस्जिद निर्माण में शरारती मुस्लिम तत्वों का हाथ था,पढ़ा लिखा तथा कायदे का मुसलमान इससे दूर रहा, इसलिए बाद में भी शांति व्यवस्था में व्यवधान नहीं आया।
वर्ष १९८९ में मैं अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक बन इलाहाबाद से अन्यत्र चला गया और १९९३ में पुलिस अधीक्षक नगर इलाहाबाद के पद पर वापस आया।एक दिन करैली स्कीम गया तो विवादित जमीन पर मस्जिद देखकर स्तब्ध रह गया।पता चला कि बीच में मुसलमानों ने प्रशासन पर दबाव बनाकर मस्जिद बना ली जिससे उस क्षेत्र के हिंदू भी सस्ते में अपना मकान बेच कर अन्यत्र चले गए। मुझे अपनी नादानी पर अपार कष्ट हुआ क्यों मैंने अपने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की इच्छा के विपरीत मस्जिद निर्माण रुकवाया, क्यों दस दिन तक जिले के पुलिस बल को परेशान किया, क्यों दस दिन तक शहर की जनता को घर के भीतर कैद रख कर उन्हें दैनिक आवश्यक वस्तुओं से महरूम रखा?
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