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हिंदुस्‍तान ने लिखा – बड़े अखबारों का विरोध बेकार, इंडियन रीडरशिप सर्वे की रिपोर्ट सही

नई दिल्‍ली : इंडियन रीडरशिप सर्वे (2013) के आंकड़ों की सावधानीपूर्वक जांच तथा स्वतंत्र ऑडिट के बाद मीडिया इंडस्ट्री के चार प्रमुख संस्थाओं ने घोषित किया है कि नए तरीके से किया गया सर्वे सही था और यह सभी प्रयोग करने वालों के लिए उपलब्ध रहेगा। इस घोषणा के साथ ही पिछले छह माह से चल रही उन चर्चाओं पर विराम लग गया जिसमें कुछ रीडरशिप आंकड़ों में पिछले सर्वे की तुलना में बड़ी गिरावट दर्शायी गई थी।

<p>नई दिल्‍ली : इंडियन रीडरशिप सर्वे (2013) के आंकड़ों की सावधानीपूर्वक जांच तथा स्वतंत्र ऑडिट के बाद मीडिया इंडस्ट्री के चार प्रमुख संस्थाओं ने घोषित किया है कि नए तरीके से किया गया सर्वे सही था और यह सभी प्रयोग करने वालों के लिए उपलब्ध रहेगा। इस घोषणा के साथ ही पिछले छह माह से चल रही उन चर्चाओं पर विराम लग गया जिसमें कुछ रीडरशिप आंकड़ों में पिछले सर्वे की तुलना में बड़ी गिरावट दर्शायी गई थी।</p>

नई दिल्‍ली : इंडियन रीडरशिप सर्वे (2013) के आंकड़ों की सावधानीपूर्वक जांच तथा स्वतंत्र ऑडिट के बाद मीडिया इंडस्ट्री के चार प्रमुख संस्थाओं ने घोषित किया है कि नए तरीके से किया गया सर्वे सही था और यह सभी प्रयोग करने वालों के लिए उपलब्ध रहेगा। इस घोषणा के साथ ही पिछले छह माह से चल रही उन चर्चाओं पर विराम लग गया जिसमें कुछ रीडरशिप आंकड़ों में पिछले सर्वे की तुलना में बड़ी गिरावट दर्शायी गई थी।

इसकी वजह से कुछ प्रकाशकों ने आईआरएस सर्वे के सटीक होने पर सवाल खड़े कर दिए थे। जबकि तथ्य यह है कि चार प्रमुख संस्थाओं मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल (एमआरयूसी), रीडरशिप स्टडीज काउंसिल ऑफ इंडिया (आरएससीआई), ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (एबीसी) तथा  इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी (आईएनएस) सभी ने इन नतीजों को स्वीकार किया है जो आईआरएस 2013 को लेकर इंडस्ट्री में व्यापक सहमति और समर्थन को दर्शाता है।

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एनआरयूसी की प्रेस विज्ञप्ति में समीक्षा प्रक्रिया के चरणों के बारे में विस्तार से बताया गया है। सर्वे के सटीक न होने की बात उठने पर एमआरयूसी तथा एबीसी द्वारा संस्थापित आरएससीआई ने एक पुनर्वैधता प्रक्रिया अपनाने का फैसला किया था तथा सब्सक्राइबर्स से अनुरोध किया कि स्थगन तक सर्वे के नतीजों का इस्तेमाल न करें।

प्रकाशकों तथा विज्ञापन एजेंसियों का प्रतिनिधित्व करने वाली दो सदस्यीय उप समिति का गठन किया गया और उस संस्था ने फैसला दिया कि इस सर्वे को करने का तरीका सही था। एक बयान में कहा गया कि उसने उसने एक प्रोसेस ऑडिट शुरू किया और इस कार्य को श्री प्रवीण त्रिपाठी को सौंपा जो मीडिया कंजप्शन बिहेवियर के क्षेत्र में बड़े स्तर का अध्ययन करने वाले भारत के अग्रणी विशेषज्ञों में से एक हैं।

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इस ऑडिट को दो चरणों में पूरा किया गया। पहले चरण में सर्वे में जवाब देने वाले घरों में फिर से जाकर आंकड़ों की जांच करना शामिल था वहीं दूसरे चरण में एक व्यापक तथा गहन फॉरेंसिक सांख्यिकीय विश्लेषणात्मक प्रक्रिया थी जिसमें आंकड़े जुटाने में होने वाली चूकों तथा जवाब देने वाले के साक्षात्कार रिकॉर्ड में होने वाली असामान्य प्रकाशन की गलतियों को दोहराया जाना दोनों तरह की कमियों को पहचाना गया और दूर किया गया।

ऑडिट में निष्कर्षात्मक रूप से तथा एक स्वर से यह नतीजा निकला कि आंकड़ों में होने वाले हेरफेर से अध्ययन के परिणाम तथा महत्वपूर्ण रीडरशिप के आंकड़ों पर कोई असर नहीं पड़ा है। ऑडिट रिपोर्ट के गहन अध्ययन और व्यापक विचार-विमर्श के बाद चेयरमैन-एमआरयूसी, चेयरमैन-आरएससीआई, अध्यक्ष-आईएनएस तथा चेयरमैन-एबीसी इंडियन रीडरशिप सर्वे 2013 के प्रकाशन पर लगे स्वैच्छिक स्थगन को खत्म करने के स्पष्ट और एकमत फैसले पर पहुंचे हैं।

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मार्केटिंग और मीडिया जगत ने इस घोषणा पर राहत महसूस की है चूंकि पिछले आंकड़े इस तरह के व्यापक फील्ड वर्क के बिना इस्तेमाल हो रहे थे और जिन्हें दो वर्ष पहले जुटाया गया था जो वर्तमान संदर्भ में बेमानी हो जाते हैं। कई मीडिया एजेंसियों ने हिन्दुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा है कि वे आरएससीआई से इस तरह की घोषणा का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे ताकि नए आईआरएस का इस्तेमाल कर सकें।

नया सर्वे रीडरशिप का निर्धारण करने में स्वर्णिम मानक स्थापित करने के उद्देश्य से किया गया था। इन सभी उपायों को सभी मीडिया हाउस का समर्थन था क्योंकि वे इस प्रक्रिया को ज्यादा प्रभावशाली और वैज्ञानिक बनाने के लक्ष्य में भागीदार थे। इसमें वे भी शामिल थे जो बाद में इनका विरोध करने लगे।

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इस सर्वे के लिए एक अग्रणी ग्लोबल रिसर्च एजेंसी की सेवाएं ली गई थीं और एक नया तरीका अपनाया गया। पिछले मॉडल की तुलना में इसमें चार बड़े बदलाव किए गए थे। पेन और पेपर के जरिये सर्वे करने के बजाय एक अनूठा डबल स्क्रीन कंप्यूटराइज्ड सिस्टम पेश किया गया। शहरों और नगरों की 2001 की जनगणना के आधार पर जनसंख्या के आकंड़े प्रयोग करने के स्थान पर 2011 की जनगणना के वास्तविक आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया।

पाठकों से यह पूछने के बजाय कि पिछले वर्ष आप क्या पढ़ते थे उनसे यह पूछा गया कि पिछले महीने आपने क्या पढ़ा और इसके अलावा इस सर्वे में प्रतिनिधित्व सैम्पल साइज काफी बड़ा था। जो लोग इस कदम को लेकर सबसे आगे थे उनका सुझाव था कि इस नए सर्वे की तुलना पुराने सर्वे से करना सही नहीं होगा बल्कि इसे एक नई शुरुआत की तरह देखा जाए और भविष्य के सर्वे में तुलनात्मक अध्ययन के लिए इस तरीके का प्रयोग किया जाए। उम्मीद है अगला दौर सितम्बर की शुरुआत में होगा।

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इस उद्योग के पुराने जानकार मानते है कि पूरी मीडिया इंडस्ट्री को इस प्रक्रिया और तरीके की प्रामाणिकता का सम्मान करना चाहिए। एक नया वैज्ञानिक तरीका अपनाया गया है और इसके आंकड़ों की वैधता की फिर से जांच की गई है और इसे सब कुछ गंवा देने वाली प्रक्रिया न मानते हुए सभी मीडिया कंपनियों को एक नए टेम्पलेट के रूप में देखना चाहिए जो पाठकों, विज्ञापनदाताओं, विज्ञापन एजेंसियों तथा मीडिया प्लानरों को उनकी वरीयता तय करने में स्वस्थ मानक प्रदान करेगा।

कोई भी सर्वे पूरी तरह से त्रुटिहीन नहीं हो सकता वह भी जब उसका उद्देश्य एक बड़ी दुनिया के बारे में आंकलन करना हो। लेकिन यह उम्मीद की जा सकती है कि उसके आंकड़े परिपक्व होंगे, सुधारों को शामिल किया जाएगा और सर्वे बाजार की सही तस्वीर पेश कर पाने में पूरी तरह से सही साबित होगा।

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रीडरशिप लाख में
             ऑल इंडिया –  उत्तर प्रदेश
दैनिक जागरण    155         87
हिन्दुस्तान        142        72
दैनिक भास्कर     129        —
             दिल्ली एनसीआर  मुंबई
एचटी            22.7       13.6
टीओआई         16.5        21.5
डीएनए            —         2.1

साभार : हिंदुस्‍तान

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