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सुख-दुख

इतना झूठ काहे बोलना ताई?

समर अनार्य-

नारायण मूर्ति इतने बीमार थे कि अस्पताल में भर्ती थे। वोट डालने के लिए उन्हें डिस्चार्ज करा कर लाए। फिर उनको लेकर घर चले गये। सुधा मूर्ति- वही जो बीफ खाने वाले दामाद के घर रहती हैं लेकिन अपना बर्तन साथ रखती हैं कि कहीं नॉन वेज वाले बर्तन में न खा लें!

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इतना झूठ काहे बोलना ताई? अगर इतने बीमार थे तो हॉस्पिटल डिस्चार्ज करता ही नहीं। और सच में इतने बीमार होते तो आप उन्हें घर ना ले जातीं, वापस अस्पताल में ही जमा करवातीं!

आगे बोलीं कि यात्राओं की भी योजना थी लेकिन मतदान के लिए टाल दिया! फिर बोलीं मतदान श्रेष्ठ दान! असल में बस आख़िरी लाइन सच लग रही बाक़ी सब तमाशा। ये अमृत नहीं तमाशा काल है!

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