सर्वप्रिय सांगवान-
6 दिन पहले ही राज्यसभा में सांसद घनश्याम तिवारी एक कहावत का ज़िक्र करते हैं जिसे ख़ुद उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ सही करते हैं. “अनपढ़ जाट पढ़ा-लिखा बराबर, और पढ़ा-लिखा जाट ख़ुदा बराबर”.
ये संयोग नहीं था कि राजस्थान के भाजपा सांसद एक कहावत कहें और राजस्थान से आने वाले उप-राष्ट्रपति, शायद पहली बार, अपनी जाति को इतनी प्रमुखता से बतायें.
4 दिन पहले ही उन्होंने कई सांसदों को राज्यसभा से सस्पेंड कर दिया. लोकसभा से भी कई सांसद सस्पेंड हुए. टीएमसी के कल्याण बनर्जी भी लोकसभा से सस्पेंड हुए. यानी उन्हें लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने सस्पेंड किया. फिर कल्याण बनर्जी की एक मिमिक्री वीडियो वायरल हुई. इस वीडियो पर जगदीप धनखड़ ने कहा कि ये उनकी मिमिक्री है. उन्होंने कहा कि ‘वे अपना अपमान बर्दाश्त कर सकते हैं लेकिन उनके पद का नहीं, किसान समाज का नहीं, उनके वर्ग का नहीं.’
ये भी संयोग नहीं था कि वे इस मामले में अपने समाज, अपने वर्ग को शामिल करें. इसके बाद सोशल मीडिया के जाटों में भी अलग-अलग राय देखने को मिली. कोई उनका समर्थन कर रहा था तो कोई उन्हें किसान आंदोलन याद दिला रहा था.
कल जब कुश्ती संघ चुनाव के नतीजे आये और पहलवान साक्षी मलिक ने इसके विरोध में कुश्ती छोड़ दी तो सोशल मीडिया उप-राष्ट्रपति को उनकी जाति याद दिला रहा है. एक लेख में तो उप-राष्ट्रपति पर सवाल उठाया गया है कि ‘आप किसान आंदोलन के वक़्त भी तो जाट ही थे, जब पहलवान महिलाएँ सड़क पर न्याय माँग रही थीं, तब भी तो आप जाट ही थे.’
साक्षी मलिक की प्रेस कांफ्रेंस से लौटे हमारे रिपोर्टर ने कहा कि इतने मीडिया के लोग वहाँ थे, लेकिन किसी में भी खिलाड़ियों को लेकर हमदर्दी नहीं थी. बल्कि वहाँ पर दबी ज़बान में उनके ख़िलाफ़ घटिया बातें बोली जा रही थीं, जाट समुदाय के ख़िलाफ़ बातें बोली जा रहीं थीं कि ‘ये किसी के नहीं होते, इन पर भरोसा मत करो.’
तक़रीबन 150 सांसदों को सस्पेंड कर क़ानून बनाये जा रहे हैं, कुश्ती में ओलंपिक मेडल लाने वाली इकलौती लड़की कुश्ती छोड़ने का ऐलान कर चुकी है. लेकिन मीडिया और सोशल मीडिया पर पिछले एक हफ़्ते से चर्चा अपना रुख़ बदल चुकी है. बल्कि जल्द ही ज़मीन पर भी, राजनीतिक तौर पर भी इसका असर दिखेगा. सबसे ज़्यादा उस वर्ग को जो किसान आंदोलन की जीत के बाद ‘ओवर कांफिडेंस’ में है.