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साहित्य

जंगल में लोकतंत्र

इन्सानों का विकास निर्बाध गति से हो रहा है। यह इतना अनियन्त्रित है कि बढ़ते-बढ़ते जंगलों तक आ पहुंचा है। जंगल के जानवर पहले तो इन्सानों से डरते थे लेकिन लम्बे समय तक इन्सानों की संगत में रहने से उन्हें यह ज्ञान हो गया कि जो इन्सान आज पूरे विश्व पर राज कर रहा है उसके पुरखे भी किसी समय उनकी ही तरह जंगलों की खाक छाना करते थे। वो भी उनकी तरह जंगलों में कन्द — मूल खाता था, जानवरों का शिकार किया करता। समय के साथ इन्सान तो विकास कर गया लेकिन जंगल के बाकी जानवर वहीं के वहीं रह गये। लिहाजा जंगल के जानवरों ने इन्सानों की जीवन शैली पर नजर रखनी शुरू कर दी। उन्होंने गौर किया कि इन्सानों में लोकतंत्र नामक प्रणाली होती है जिसमें जनता अपनी मर्जी से अपना नेता चुनती है। वह नेता अपने क्षेत्र का विकास करता है। कुत्ते, बिल्ली, हिरण, लौमड़ी, शेर, हाथी, गधे सहित जंगल के ज्यादातर जानवरों को यह बात जंच गयी। उन्होंने कभी यह सोचा ही नहीं था कि उन्हें भी अपना राजा बदलने का अधिकार है। कल तक उन्हीं के बीच रहने वाले इन्सान ने राजतंत्र छोड़ कर लोकतंत्र अपनाया और अपना इतना विकास कर लिया तो भला वे ऐसा क्यों नहीं कर सकते। वे हमेशा से शेर को अपना राजा मानते आये हैं लेकिन आखिरकार शेर के शासनकाल में जंगल कितना विकास कर पाये हैं? आखिर आये दिन शेर हमें व हमारे बच्चों को मारकर खा जाता है, ऐसे क्रूर शासक को हम क्यों कर स्वीकार करें?

जानवरों में गुप्त मंत्रणा होने लगी। देखते ही देखते जंगल में आग की तरह बात फैल गयी। धीरे — धीरे ज्यादातर जानवरों का बहुमत जंगल के राजा के खिलाफ होने लगा। जंगल में चुनाव करवाने की मांग उठने लगी। चुनाव को लेकर जंगल के सभी जानवरों की बैठक बुलाने का निर्णय लिया गया। बन्दरों को जिम्मेदारी दी गयी वे उछल कूद कर किसी भी दुर्गम जगह तक पहुंचने की क्षमता रखते हैं लिहाजा ये सन्देश पूरे जंगल में फैला दिया जाये कि तीन दिन बाद झरने के पास जंगल के सभी जानवरों की आम बैठक रखी गयी है जिसमें आने वाले दिनों में जंगल में चुनावा करवाने को लेकर आवश्यक बैठक रखी गयी है जिसमें सभी जानवर आवश्यक रूप से पधारें।

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बन्दरों ने जंगल के हर जानवर तक सन्देश पहुंचाने की जिम्मेदारी सहर्ष स्वीकार की। बन्दरों के सरदार ने सभी को अपने — अपने क्षेत्र बांट दिये। सभी बन्दर अपने अपने क्षेत्रों के लिये उत्साह पूर्वक रवाना हो गये मानों वे रामसेतू के लिये पत्थर लाने जा रहे हों। रात भर में जंगल के हर कोने में सूचना पहुंच चुकी थी। जंगल के राजा शेर को जब पता चला कि जंगल के जानवर बगावत पर उतर आए हैं तो एक बारगी तो वह क्रोध से तमतमा उठा लेकिन जानवरों में फैले आक्रोश को देखकर मौन रहना ही उचित समझा। सोचा फिलहाल तटस्थ रहकर देखते हैं कि सभी जानवर बैठक में क्या निर्णय लेते हैं?

बैठक का दिन आ गया। सभी जानवर सुबह से ही झरने के पास इकट्ठा होना शुरू हो गये थे। पास ही एक बड़ी चट्टान को मंच के लिये चुना गया। हाथी, बन्दर, लोमड़ी, हिरण, गधा एवं विभिन्न जानवरों के प्रतिनिधि उस ऊंची चट्टान पर कतारबद्ध होकर बैठ गये। वर्तमान राजा शेर भी बैठक में पहुंचा। हमेशा शेर को देखते ही भाग जाने वाले जानवरों में आज ना जाने कौनसी शक्ति आ गयी थी कि राजा को बैठने के लिये जगह देना तो दूर, उसकी आंखों में आंखें डालकर मानों चेतावनी दे रहे हो कि अब तुम्हारे दिन गये।

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इन्सानों जिस गधे को मूर्खता का पर्याय समझते हैं, वो गधा जंगल में सबसे समझदार माना जाता था। गधे का इन्सानों की दुनिया से भी सम्बन्ध था और जानवरों से भी, लिहाजा गधा जानवरों व इन्सानों के बीच की कड़ी था। जानवर जब ज्यादा समझदार हो गया तो गधा हो गया और इंसानों में समझदारी जितनी कम हुई उसमें गधों के गुण उतने ही ज्यादा पाये गये। गधे को बैठक का अध्यक्ष घोषित किया गया। गधे महाशय ने खड़े होकर अपना उद्बोधन प्रारम्भ किया-

”भाईयों! आप सभी का आभार कि आपने मुझ गधे को अपना नेता स्वीकार किया। हम लोग बरसों से गुलामी का जीवन जीते आये हैं। अपने राजा पर आंख मून्द कर भरोसा करते आये हैं। हमेशा उसका सम्मान किया। बदले में कभी किसी अधिकार की मांग नहीं की। लेकिन इसका परिणाम क्या निकला। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जो इन्सान आज पूरे विश्व पर राज कर रहा है किसी समय में वो भी हमारी ही तरह जंगलों में रहा करता था। कन्दमूल खाता एवं शिकार करता था। लेकिन समय के साथ उसने अपने पुराने नियमों को छोड़ और नये नियमों को अपनाया। आज वो दुनिया पर राज कर रहा है! कल का जानवर आज का इन्सान है! हालांकि कई इन्सानों में आज भी जानवर मौजूद है लेकिन उनकी संख्या कम है। आपको पता है इन्सान तरक्की क्यों करता है, क्योंकि उनमें लोकतंत्र नामक प्रणाली है। ये एक ऐसी प्रणाली है जिसमें इन्सान खुद अपना राजा चुनते हैं। कई इन्सान राजा बनने के लिये खड़े होते हैं उनमें से एक व्यक्ति् को चुना जाता है। इस प्रक्रिया को चुनाव कहते हैं। उनके द्वारा चुना हुआ नेता उनके विकास के लिये काम करता है। हमेशा उनके हितों की रक्षा करता है। क्या हम ऐसा नहीं कर सकते। क्या हमें अधिकार नहीं है कि हम भी अपना राजा खुद चुनें। तो आईये शपथ लीजिये कि अब जंगल में भी चुनाव होंगे और वही राजा बनेगा जिसे जानवर चुनेंगे।”

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गधे ने अपना भाषण समाप्त किया। सभी जानवर उसका भाषण सुनकर मंत्रमुग्ध हो गये वहीं शेर चकित था कि गधा इंसानों की संगत में रहकर कितना बुद्धिमान हो गया था। पता नहीं इंसान फिर भी गधे को मूर्ख क्यों कहते हैं। शेर को डोलते सिंहासन का आभास हो गया था।

बन्दर, हाथी, खरगोश, हिरण सहित ज्यादातर जानवरों ने गधे का समर्थन किया, हाथी ने खड़े होकर गधे को ही उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव रखा जिसका ज्यादातर जानवरों ने समर्थन किया। इससे समझदार प्रत्याशी उन्हें कहां मिल सकता है, साथ ही यह भी निश्चय किया गया कि यदि शेर जंगल का राजा बने रहना चाहता है तो उसे भी चुनाव में प्रत्याशी के रूप में खड़ा होगा, अन्यथा गधे को निर्विरोध राजा घोषित कर दिया जायेगा। शेर दुविधा में पड़ गया। यदि चुनाव ना लड़े तो यह समझा जायेगा कि शेर ने गधे के सामने हार मान ली। और यदि लड़े तो हार कर अपनी प्रतिष्ठा खोने का डर। दोनों ही स्थितियों में प्रतिष्ठा दांव पर थी लेकिन यदि चुनाव लड़ कर जीत जाये तो प्रतिष्ठा बनी रह सकती थी। लिहाजा शेर ने भी चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। चुनाव के लिये चार दिन बाद का समय तय किया गया। इन्सानों के बीच रहने के कारण गधे ने झूठ बोलने, धोखा देने व अभिनय करने में कुशलता प्राप्त कर ली थी। वह अब इन्सानों की तरह अपने मन के कपट को चेहरे तक न आने देता। उसने घूम — घूम कर जंगल के जानवरों से सम्पर्क करना शुरू कर दिया। वह झूठे सपनों के ऐसे महल खड़े करता कि जंगल के जानवर उसे मसीहा समझ बैठते। गधे के सम्पर्क अभियान ने शेर को चिन्ता में डाल दिया। शेर ने भी जंगल के जानवरों से सम्पर्क करना शुरू कर दिया। लोकतंत्र की ताकत कहिये या विडम्बना कि जंगल का राजा शेर छोटे—मोटे जानवरों के सामने कुत्ते की तरह दुम हिला रहा था। जंगल के जानवर भी आश्चर्य चकित थे। उन्हें कभी सोचा ही नहीं था कि जंगल का राजा शेर कभी उनके सामने इस तरह अननुय विनय करता नजर आयेगा। शेर भले ही शक्तिशाली था, योग्य था लेकिन उसे गधे की तरह झूठ बोलना व अभिनय करना नहीं आता था। वह गधे की तरह लोगों से झूठे वादे नहीं कर सकता था। ज्यों — ज्यों चुनाव का दिन नजदीक आता वैसे ही शेर का दिल बैठा जाता वहीं गधा इस तरह निश्चिंत था मानों उसने मैदान मार लिया है।

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आज चुनाव का दिन था, जंगल आज नया इतिहास लिखने जा रहा था। पहली बार जंगल के प्राणियों को अपनी मर्जी से अपना राजा चुनने का अवसर मिला था। झरने के पास भोर से ही जानवरों को जुटना शुरू हो गया था। सूर्योदय होते — होते सभी जानवर वहां इकट्ठा हो गये। दोनों प्रत्याशी भी नियत स्थान पर जाकर बैठ गये। बन्दरों के सरदार को कार्यक्रम के संचालन का भार सौंपा गया। उसने सभा को सम्बाधित करना शुरू किया।

”बन्धुओं!आज जंगल इतिहास रचने जा रहा है। आज तक हम एवं हमारी पीढ़ीयां आंखें मून्द कर थोपे गये शासक को ही अपना राजा एवं उनकी सन्तानों को ही उनका उत्तराधिकारी मानती आई है। कभी उफ तक नहीं की। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब जंगल का राजा वही होगा जिसे जंगल के जानवर चुनेंगे। साथियों आप लोगों को शायद पता नहीं कि आप इतिहास रचने जा रहे हैं। पहली बार जंगल का राजा ऐसा होगा जिसे सभी प्राणियों का समर्थन प्राप्त होगा। यदि कल का जानवर आज का इन्सान बन सकता है तो आज का जानवर यदि कल इन्सानों सी प्रगति कर ले तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिये।

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आपके सामने दो प्रत्याशी है, एक वर्तमान राजा शेर एवं दूसरे उनका प्रतिद्वन्दी गधा। आपको इन दोनों प्रत्याशियों में से अपना राजा चुनना है।”

सभा मंत्रमुग्ध सी बन्दर का उद्बोधन सुन रही थी वहीं बन्दर भी अपने उद्बोधन से स्वयं को ‘इन्सानों का पुरखा’ होना चरितार्थ कर रहा था।

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”साथियों! अब जो बन्धु वर्तमान राजा शेर को ही जंगल के राजा के योग्य मानते हैं और उन्हीं को चुनना चाहते है वो अपना आगे वाला बांया पैर ऊपर उठाएं”

नाम मात्र के जानवरों ने अपना पैर उठाकर शेर का समर्थन किया। बड़ी संख्या में जानवरों के मौन से शेर की पराजय स्पष्ट नजर आ रही थी।

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”अब जो साथी बदलाव चाहते हैं, जो गधे को जंगल का राजा बनने के योग्य मानते हैं वो अपना पैर ऊपर उठाएं”

बड़ी संख्या में जंगल के जानवरों ने अपने पैर ऊपर उठा दिये। गधे को मिला अपार समर्थन देख शेर पर मानो वज्रपात सा हो गया और वह वहां से गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो गया। वैसे भी लोकतंत्र में गधों का जीतना कोई नयी बात नहीं थी। लोकतंत्र का इतिहास गवाह है कि गधों ने हमेशा शेरों की निष्क्रियता एवं चुप्पी का फायदा उठाया है। पूरे जंगल में आज उत्सव का मौसम था। बन्दर, शेर, हाथी सहित सभी जानवर नाच — गा कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त कर रहे थे। गधे को स्वयं विश्वास नहीं हो रहा है कि वह अब जंगल का राजा है। वह मानों किसी स्वप्न में जी रहा था। उसे अपनी चतुराई पर मन ही मन अभिमान हो रहा था —” अहा! मैं कितना बुद्धिमान हूं, मैंने अपनी चतुराई से पूरे जंगलवासियों को मुग्ध कर लिया है। अब मैं ही इस जंगल का एकछत्र राजा हूं। आज इस जंगल में कौन है जो मेरा सामन कर सके। आज समूची गधा जाति को मुझपर गर्व होगा। आज शेर की भी मेरे सामने क्या बिसात। वह भी मेरा एक सेवक है। कल इतिहास में मेरा नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखा जायेगा”

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गधे एवं उसके समर्थकों के लिये जंगल में दीवाली थी वहीं शेर की मांद में आज मानों मरघट का सन्नाटा पसरा था।

गधा अब जंगल का राजा था वहीं शेर एक सामान्य प्राणी। शेर के लिये यह समय आत्ममंथन का समय था। आखिर उससे ऐसी क्या गलितयां हुई जिसका फायदा एक गधे ने उठा लिया। शेर कहीं न कहीं जगल के प्राणियों से सम्पर्क बनाये रखने में असफल रहा वहीं बरसों से विरासत में मिलती आ रही सत्ता ने भी शेर में अहंकार पैदा कर दिया था। इसी अहंकार के चलते वह जंगल के प्राणियों से कई बार दुर्व्यवहार कर बैठता था जिससे जानवरों में राजा के प्रति आक्रोश की आग सुलगनी शुरू हो गयी थी। गधे ने इस आग में घी डालकर अपना उल्लू सीधा कर लिया। शेर को धीरे-धीरे सारी बातें समझ आ रही थी लेकिन सांप निकल जाने के बाद अब लकीर पीटने का कोई फायदा न था। जंगल में कुछ समय तो शांतिपूर्वक बीता लेकिन धीरे — धीरे गधे का असली रूप लोगों के सामने आने लगा था। गधा अहंकार में अपने सामने किसी को कुछ नहीं गिनता। चुनावों से पहले जो गधा जानवरों से विनम्रता से पेश आता था वहीं गधा राजा बनने के बाद जानवरों से उद्दण्डता व बदतमीजी से बात करता। जंगल में अब राजा का कोई भय भी नहीं रह गया था। गधा भले जंगल का राजा हो लेकिन था तो आखिरकार एक गधा ही, ऐसे में जंगल के जानवरों में उसका कोई भय नहीं था। समय बीतने के साथ — साथ जंगल में अराजकता फैलनी शुरू हो गयी। पहले जंगल के जानवरों का विवाद शेर के दरबार में निपटा दिया जाता था। शेर चूंकि ताकतवर था इसलिये जंगल के जानवरों में उसका भय था, इसी भय के चलते जंगल के सभी जानवर उसका आदेश भी मानते थे। गधे के पास कोई फरियाद लेकर जाता तो वह उसे दुत्कार कर भगा देता, दरअसल उसके उत्कारने के पीछे उसकी खीज थी। अब यदि कोई शेर के विरूद्ध शिकायत लेकर गधे के पास जायेगा तो गधा भला उस मामले में क्या न्याय कर पायेगा? जंगल के जानवरों को मालूम पड़ गया था कि उन्होंने गधे के बहकावे में आकर बहुत बड़ी गलती कर दी थी लेकिन अब क्या हो सकता था। वो अब शेर के पास भी नहीं जा सकते थे क्योंकि चुनाव के समय उन्होंने ही शेर को नकार दिया था।

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इसी दौरान जंगल में पड़ौस के जंगल से बदमाश व उद्दण्ड शेर आ गया। जिस जंगल का राजा एक गधा हो उस जंगल में शेर भला किससे और क्यूं डरे? देखते ही देखते जंगल में उस उद्दण्ड शेर का आतंक फैल गया। वो शेर बिना कारण ही जंगल के जानवरों को मार डालता। चूंकि जंगल का राजा गधा था, सारे जानवर मिलकर अपनी फरियाद लेकर गधे के पास गये। कोई दूसरा जानवर होता तो गधा कुछ हिम्मत कर भी लेता लेकिन शेर के सामने गधे की क्या बिसात? गधे ने जानवरों की मदद करने से मना कर दिया। जानवर पूरी तरह से हताश हो गये। बन्दर ने सुझाव दिया ”क्यों ना शेर के पास चला जाये? वहीं हमारी मदद कर सकता है”

लोमड़ी बोली ”कौनसा मुंह लेकर जाएं, क्या चुनावों में हमने उसकी कम बेइज्जती की थी?”

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बन्दर बोला — ”हमारे पास कोई रास्ता भी तो नहीं है, चलो जो होगा देखा जायेगा, हम सब मिलकर माफी मांग लेंगे।”

सभी जानवर मिलकर शेर के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। समस्या किसी की व्यक्तिगत न होकर पूरे जंगल की थी और जंगल के जानवर भी अपनी भूल पर खेद प्रकट कर चुके थे। शेर ने भी बीती बातें भूलकर उनकी मदद करना स्वीकार किया और उनके साथ चला जहां वो उद्दण्ड शेर था। कल तक जिस शेर को जानवर जंगल के लिये समस्या मान रहे थे आज संकट के समय वहीं शेर अपनी जान की बाजी लगाने तो तैयार था। शेर ने जाकर उद्दण्ड शेर को ललकारा। दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ दोनों बराबर के ताकतवर थे, दोनों ही बुरी तरह लहुलुहान हो गये लेकिन अन्त में जंगल के पूर्व राजा ने उस उद्दण्ड शेर को मार गिराया। जंगल के प्राणियों में खुशी की लहर दौड़ गयी। सभी जानवरों ने शेर को फिर से जंगल का राजा घोषित कर दिया। गधे को मार-मार कर जंगल से भगा दिया गया। गधे ने फिर शहर का रूख कर लिया। वो समझ गया कि बार-बार इन्सानों को ही मूर्ख बनाया जा सकता है, इन जंगल के जानवरों को नहीं। वहीं शेर ने भी शपथ ली कि अब वह अहंकारवश कभी भी किसी के साथ दुर्व्यवहार नहीं करेगा, जंगल में किसी के साथ अन्याय नहीं होने देगा।

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गधे के माध्यम से ही सही, जंगल के जानवर एक बार फिर इन्सान के छल व कपट से परिचित हो गये थे।

लेखक : पवन प्रजापति
जिला — पाली
मो. : 8104755023 मेल- [email protected]

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