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सियासत

मिडिल क्लास पर आई तबाही तो ही मोदी बने विलेन, इतनी गालियां कभी न खाई होंगी!

Ashwini Kumar Srivastava-

नरेंद्र मोदी ने देश की जनता से इतनी गालियां कभी नहीं खाई जितनी इस बार कोरोना में मारे जा रहे लोगों और निजी व सरकारी अस्पताल की स्वास्थ्य व्यवस्था ध्वस्त होने के बाद उन्हें खानी पड़ रही हैं… इतने बड़े बदलाव के पीछे देश का वह मध्य आर्थिक वर्ग है, जो कि मोदी राज में पहली बार सरकार की खामी का इतनी बुरी तरह से शिकार हुआ है…

पैसा रहते हुए भी उसे देश के किसी निजी हस्पताल में बेड या ऑक्सीजन सिलिंडर, इंजेक्शन, दवा, एम्बुलेंस नहीं हासिल हो पा रहे हैं… इलाज या जान बचाने के लिए वह भी देश के गरीब- मजदूरों की तरह सरकारी अस्पताल के आसरे है, बशर्ते वहां भी उसे बेड या इलाज मिल जाए तो…

याद कीजिए, 2016 की नोट बंदी में मचे हाहाकार और फिर आर्थिक तबाही को….या पिछले बरस अचानक हुए लॉक डाउन के बाद हजारों किलोमीटर पैदल चल कर किसी तरह गांव पहुंच पाए या रास्ते में ही मारे गए न जाने कितने मजदूरों के हालात को… या उसी दौरान बड़े बड़े शहरों में फंस कर राशन और रोजगार के लिए तड़पते गरीबों को …. सोशल मीडिया या मीडिया में मोदी तब भी हीरो बने हुए थे…

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क्योंकि आज की तरह तब मध्य वर्ग मोदी की इस गलती का खामियाजा नहीं भुगत रहा था… वह तो बड़े आराम से अपने-अपने घरों में बैठकर टीवी पर तबाही के ये नजारे देख रहा था …और फिर यहां- वहां मोदी के समर्थन में लोगों से बहस कर रहा था. उसे तबाही का जिम्मेदार मोदी को ठहराने वाले लोग तब देशद्रोही नजर आ रहे थे…लेकिन आज जब खुद उसके ऊपर भी मोदी की अक्षमता से उपजी तबाही टूट पड़ी है तो वह भी मजबूर होकर सरकार और मोदी को गरिया रहा है…

मध्य वर्ग की इसी नाराजगी के चलते मोदी इस बार बुरी तरह से आलोचना का शिकार हो रहे हैं… और अब तो उनके रोने पर भी पूरा देश चुटकुले बनाकर हंस रहा है…

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हालांकि इसी मध्य आर्थिक वर्ग का हिस्सा मैं भी हूं लेकिन मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश की कमोबेश हर राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दुर्दशा का जिम्मेदार यह मध्य वर्ग ही है. क्योंकि थोड़ी बहुत आर्थिक सुरक्षा पाकर देश के बाकी कमजोर आर्थिक वर्गों के दुख- दर्द से कोई वास्ता नहीं रखता. लिहाजा कितनी भी तबाही उसके चुने नेता के जरिए देश में आ जाए, मगर वह जाति, धर्म, भाषा, प्रांत आदि के नफ़रत या बांटने के मुद्दों पर ही चर्चा करता और इन्हीं के आधार पर नेता, दल और विचारधारा चुनता है.

अमीर तो अपने धन की बढ़ोतरी या मुनाफे को सर्वोपरि रखता है इसलिए वह किसी भी जाति, भाषा, क्षेत्र, धर्म आदि कारणों को आधार बनाकर अपना राजनीतिक दल, नेता अथवा विचारधारा कभी नहीं चुनता है. गरीब के लिए जाति, भाषा, क्षेत्र, धर्म आदि अपने नेता व राजनीतिक दल के आधार होते तो हैं मगर वह भावनाओं में बहकर इन मुद्दों में फंसता है, न कि अपने घर की सुख सुविधाओं के बीच दुबके बैठे किसी खाए अघाए मध्य वर्ग के व्यक्ति की तरह बाकायदा सोच समझ कर इन्हें आधार बनाता है.

गरीब तो वैसे भी अपने और परिवार के पेट पालने की कड़ी मेहनत के बाद इतना समय निकाल ही नहीं पाता कि मध्य वर्ग की तरह टीवी पर इन्हीं मुद्दों पर आग उगलते एंकर्स और नेताओं की बहस देख कर यहां वहां अपना अधकचरा ज्ञान दुनिया में बांटता फिरे.

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यह काम केवल मध्य वर्ग ही कर पाता है क्योंकि उसके पास बढ़िया नौकरी या छोटा मोटा व्यापार होता है, जिससे उसे आरामदायक जीवन हासिल हो जाता है. इसके बाद फिर उसे अपने अलावा किसी की चिंता रह ही नहीं जाती. वह चाहता है कि देश में इन्हीं मुद्दों पर टीवी पर रोज जहरीली बहसें हों, सड़कों चौराहों पर इन मसलों पर लोगों में तर्क वितर्क हों, इन्हीं मुद्दों को उठाकर रैलियों में आग उगलने वाले कट्टरवादी तत्व ही सरकार में आएं…

क्योंकि इन्हें पता है कि देश की सड़कों पर इन मुद्दों पर कोहराम मचे या अर्थव्यवस्था डूबे, गरीब को अस्पताल, इलाज या उसके बच्चों को स्कूल मिले या न मिले, इनकी बला से…. ये तो अपनी व अपने परिवार के लिए सब सुख सुविधा जुटाकर एक घर बनाकर उसमें दुबके ही हुए हैं…

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बस इस बार कोरोना की मार के बाद अस्पताल और इलाज न मिल पाने के भयावह दर्द से बेचारे ये भी रूबरू हो गए हैं.. इसलिए बाकी जनता के साथ मिलकर मोदी को यह भी गरिया रहे हैं… वैसे, जल्द ही यह इस सदमे से उबर जाएंगे और फिर टीवी पर बुनियादी और जरूरी मुद्दों की बहस वाला कोई चैनल छोड़ उसी चैनल को देखकर मोदी मोदी करने लगेंगे, जिसमें देश का बेड़ा गर्क करने वाले मुद्दे और नेता बैठे होंगे…

यह कहावत इसी वर्ग के लिए ही बनाई गई है कि जाके पैर न फटी बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई…

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मोदी राज में जिंदा बच जाना ही अच्छे दिन हैं !!!

हिटलर ने कहा था कि जनता को इतना निचोड़ दो कि वह जिंदा रहना ही विकास समझे. अपने देश में मोदी जी के राज में भी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से चहुंओर मारे जा रहे लोगों की भयावह खबरों के बीच अब वही दौर आ गया है कि जिंदा बचे रहने को ही मोदी जी के अच्छे दिन मान लिया गया है.

भक्त तो यूं भी हर हाल में खुश रहकर मोदी मोदी कर लेते हैं. शायद उन्हें यह भी यकीन हो कि मां गंगा को धरती पर बुलाने के लिए भागीरथ ने तप किया था लेकिन मोदी जी को तो ऐसे ही अच्छे दिन लाने के लिए खुद मां गंगा ने बुलाया है.
मां गंगा के बुलावे पर अवतार लेकर धरती पर आए महामना मोदी जी की आलोचना अगर आपने भूल से कर दी या इसे अच्छे दिन मानने से ही इंकार कर दिया तो फिर तो भक्त तत्काल आगबबूला भी हो जाते हैं…

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खिसिया कर पूछने लगते हैं कि कोरोना का आविष्कार क्या मोदी जी ने किया है? अकेले भारत में ही नहीं, दुनियाभर में यह फैला है और हर जगह लोग इससे मर रहे हैं. फिर कर तो रहे हैं मोदी जी 18-18 घंटे उछलकूद…और आज तो रो- धो भी लिए. इससे ज्यादा आखिर और क्या चाहते हैं आप उनसे? नेहरू, इंदिरा, मनमोहन होते तो इतना भी न कर पाते.

ऐसे प्रचंड और बकलंड भक्त के मुंह मैं भी नहीं लगता और न ही उससे यह पूछता हूं कि कोरोना की दूसरी लहर का खतरा था मगर मोदी की फोटो के साथ शुरू की गई वैक्सीन मैत्री योजना के तहत करोड़ों वैक्सीन विदेश क्यों भेजी जा रही थी? नए अस्पताल, बेड, ऑक्सीजन प्लांट, इंजेक्शन, दवा आदि को बढ़ाने की बजाय क्यों कोविड अस्पताल खत्म किए जा रहे थे? क्यों वैक्सिनेशन तेज नहीं किया गया? क्यों बंगाल और अन्य राज्यों के साथ गांवों में चुनाव किए गए ? क्यों कुंभ आयोजित हुआ? क्यों अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में मोदी ने दूसरी लहर के कुछ दिन पहले ही यह ऐलान करके कि भारत ने कोरोना को हरा दिया है, अपनी पीठ थपथपाई थी?

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ऐसे क्यों बहुत सारे हैं लेकिन भक्तों के दिमाग में वास्तव में गोबर ही भरा है इसलिए वह हर सवाल के जवाब में थेथरई करते रहेंगे. भक्त और कुत्ते की दुम में दुम भले ही बारह साल बाद सीधी हो जाए लेकिन भक्त नहीं सुधरेगा.

अनुपम खेर ताजा उदाहरण हैं. सरकार से सवाल पूछने का उनका ट्वीट देखकर एक बार को लगा कि दुम वाली कहावत गलत है. मगर अगले ही दिन खेर साहब ने फिर मोदियापे वाला एक ट्वीट करके साफ कर दिया कि भक्त तो दुम से भी ज्यादा कर्रे वाले होते हैं.

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कुल मिलाकर यह कि जब तक मोदी राज में जिंदा हैं, इसे ही मोदी जी के अच्छे दिन मानिए. तनाव हो तो स्वास्थ्य मंत्री की सलाह पर डार्क चॉकलेट खाइए. फिर भी कुछ तनाव रह जाए तो छात्र जीवन से भाजपा के छात्र संगठन के सदस्य रहकर अब पत्रकार का रूप धारण कर चुके खाकी निक्कर धारी रजत शर्मा जी का इंडिया टीवी देखिए… वहां एक सुंदर बाला के साथ योग की जुगलबंदी करने वाले दाढ़ी वाले बाबा आपको दिन- रात नजर आएंगे.

बाबा, जिन्हें लोग श्रद्धावश लाला रामदेव भी कहते हैं, वह आपको बिना ऑक्सीजन सिलेंडर के ही ऑक्सीजन सप्लाई दे देंगे और आपदा में अवसर के रिसर्च से ढूंढ़ कर कर लाए गए कोरोना का रामबाण कोरोनिल भी दे देंगे.

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फिर भी आपको अच्छे दिन वाली फील न मिल पाए तो अखबार में अदानी, अंबानी, रामदेव आदि की रोज दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ने वाली सम्पदा की खबरें पढ़िए. अभी कल ही खबर आई है कि अदानी अब एशिया के दूसरे सबसे धनी व्यक्ति हैं.

फिर भी थोड़ा बहुत गुस्सा मन में रह जाए तो नेहरू और 70 साल के कांग्रेस राज को जीभर के गालियां बकिए. यकीन मानिए, आप अगर इन सब सलाहों को मानेंगे तो गंगा में बहती लाशें, तट की रेत में दबी लाशें, ऑक्सीजन/ बेड/ एम्बुलेंस/ दवा/ इंजेक्शन के लिए हाहाकार मचा कर मरते लोग, शमशान में एक- एक किलोमीटर तक जलती लाशें … ऐसी भयावह खबरें देख- सुन कर भी आप बेहद पॉजिटिव रह पाएंगे.

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भक्त इन सब सलाहों को मानते हैं, तभी तो बिना स्वास्थ्य सुविधा के कई भक्तों के परिजन तक तड़प कर मर गए लेकिन वे अभी तक पॉजिटिव हैं. मुकेश खन्ना जी से सीखिए. उनकी सगी बहन अस्पताल में बेड न मिल पाने के कारण मर गईं मगर पर्दे के भीष्म पितामह असली भीष्म पितामह की ही तरह आज भी हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठे धृतराष्ट्र और कौरव के अधर्म के साथ हैं.

न जाने कितने भक्त खुद भी कोरोना का शिकार होकर ऑक्सीजन आदि के अभाव में मर गए तो भी बाकी बचे भक्त पॉजिटिव ही बने हुए हैं. और यह सब कैसे हुआ …यह सब मोदी जी की कृपा से है… मोदी है तो मुमकिन है… जिंदा बच जाना ही अच्छे दिन हैं.

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1 Comment

1 Comment

  1. rajinder soni

    May 23, 2021 at 12:54 pm

    ਭਾਈ ਸਾਹਿਬ ਉਪਰੋਕਤ ਆਰਟੀਕਲ ਲਿਖਣ ਲੱਗਿਆ ਆਪ ਜੀ ਨੇ ਪੂਰੀ ਐਨਰਜੀ ਦਾ ਦਿੱਤੀ ਸੱਚਮੁਚ ਇਮਊਨਿਟੀ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਆਪ ਦਾ ਆਰਟੀਕਲ ਪੜ੍ਹਨਾ ਹੀਂ ਬਹੁਤ ਹੈ

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