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सुख-दुख

घटती TRP देख साहेब सिसक पड़े! तब से PTI और ANI दोनों रो रहे हैं, सभी चैनलों से सिसकियाँ आ रही हैं!

शीतल पी सिंह-

कैमरे के लिए रोज़ सफल कंटेंट जुटाना एक मुश्किल काम है। चैनलों के संपादक/ एंकर यह बात लंबे समय से जानते हैं! इसी कठिनाई से बचने के लिए स्टूडियो युद्ध की शुरुआत हुई थी जिसमें एक एंकर कुछ कथित विशेषज्ञ बुलाकर उनमें “भेंड़ा लड़ाया करते थे/हैं”! फ़िर यह बात बहस से निकलकर झापड़ घूँसे तक जा पहुँची। इसमें सबसे लोकप्रिय वह होता था जिसमें कुछ पाकिस्तानी जनरल कर्नल भी मेहमानों में हों और एंकर देसी जनरलों कर्नलों से उनको नुचवा (मौखिक) ले!

इसके साथ ही राजनीति में कैमरे के निरंतर उपयोग का मोदी युग चला जो अनवरत जारी है ।

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इसमें सत्तारूढ़ दल या उसके नेताजी किसी न किसी विषय का दैनिक प्रवर्तन करते हैं । इसमें “नेहरू” जी पर सबसे लंबी पारी चली और विभिन्न नदियों में विसर्जित उनकी अस्थियों के अंश खोजखोजकर ध्वस्त कर दिए गए! राहुल गांधी को देश की हर गली चौराहे पर जमकर पीटा गया (मौखिक)और “पप्पू” संज्ञा उनके लिये कापीराइट कर दी गई ।जिन जिन राज्यों में चुनाव हुए वहाँ के चैलंजर(बीजेपी के ख़िलाफ़ वाले) खुद से भी ज़्यादा खुद को सोशल मीडिया/ टीवी चैनलों से जान गये ।

इस सारे दौरान चैनलों के अनुसार विश्व की हर समस्या का हल हमारे “रैंबो जी” हुआ करते थे /हैं। इमरान तो ख़ैर इमरनवा था ही चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग अमरीका के ट्रंप इंग्लैंड के पीएम जानसन आदि सबको टीवी स्क्रीन पर साहेब धूल चटाते रहे , युद्धनीति/अर्थनीति पढ़ाते रहे, डंका बजाते रहे । लोकल समस्याओं के लिये तो उन्हें “अवतार” मान ही लिया गया था/है। “दुनियाँ को कोरोना से बचायेगी मोदी की वैक्सीन” जैसे शीर्षक दिन भर चीखते रहते थे!

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मेरे चारों तरफ़ जो मेरी पहुँच का संसार है उसमें उद्योगपति, अफ़सर, जज, वकील , इंजीनियर, डाक्टर, व्यापारी, दलाल, पत्रकार और हर रंग के नेतागण हैं । सब बेसुध थे , बात करना मुश्किल! हर बात “उनकी” सफलता की प्रशंसा से शुरू होकर उनकी संभावित सफलताओं के वर्णन तक जा पहुँचती थी । देश बढ़ नहीं उड़ रहा था!

कि यह वायरस आ गया!

वायरस टीवी चैनलों के स्क्रीन पर आता नहीं और न ही इसे अर्नब चौधरी चौरसिया या अंजना प्लान्ड डिबेट में “मुसलमान” बना सकते हैं सो यह कलई खोलने वाला साबित हुआ! यहाँ तक कि “रैंबो जी” के गुरुकुल यानि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी पैंट की जेब में हाथ डाल लिये ! झूठ के पर्वत शिखर पर विद्यमान आईटी सेल के लाखों पेड अनपेड स्वयंसेवक भी इसको पप्पू साबित न कर पाए बल्कि उलटे गप्पू साबित हो गये !

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तो कथा संक्षेप यह है कि नेहरू के स्कैंडल , राहुल के पप्पू वृतांत, ममता बानो का कोलकाता को कश्मीर बनाना,आई टी सेल की टूल किट आदि के प्रयोगों की इस वायरस के सामने घटती टी आर पी देख आज की इवेंट में साहेब सिसक पड़े! तब से पीटीआई और एएनआई दोनों रो रहे हैं, सभी चैनलों पर सिसकियाँ सुनाई पड़ रही हैं। अब और क्या करें?

अब आप लोग ही कुछ सुझाइए, ऐसा नया क्या कार्यक्रम किया जाय कि भारत तुरंत पुनः विश्वगुरु बन सके , टाइम पत्रिका हमारे रैंबो की रैंकिंग दुबारा 2015 वाली आमुख पर छापे । क्रिस्टियाना अमनपोर सीएनएन पर साहेब की संभावनाओं के बारे में आधे घंटे तक बाल झटक कर वृतांत भाखे! गार्डियन अपने किये पर माफ़ी माँगे और कलकत्ता के टेलीग्राफ का प्रबंधन अपने ऐडीटर इन चीफ़ को स्वपन दास गुप्ता को रिपोर्ट करने का इंटरनल मेमो जारी करे।


राजनीति की नब्ज़ समझने वाले ये जानते थे कि आँसू ही सहारा बनेगा…. देखें महीने भर से ज़्यादा पुराना एक ट्वीट-


इनका जब अपना एंकर मरता है तो पूरा न्यूजरूम रोने लगता है लेकिन…

दीपांकर पटेल-

टूलकिट पर बहस करने वाले एंकर कहीं भी मिलें तो इन्हें तत्काल शेम शेम बोल कर गरिया दिया जाना चाहिए? क्या अस्पताल और जरूरी दवाओं की कमी से मर रहे मृतकों के प्रति एक श्रद्धांजलि ये नहीं होगी?

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इनका जब अपना एंकर मरता है तो पूरा न्यूजरूम रोने लगता है. लेकिन जब देश में ऐसे हज़ारों लोगों की लाशें कुत्ते नोच रहे हैं जो कल तक चलते फिरते लोग थे, हंसते थे, गाते थे. तब ये स्टार एंकर फर्जी टूलकिट पर बहस कर रहे.

सोचिए जब देश में कोरोना से सबसे ज्यादा मौतें हुई, देश की स्वास्थ्य सुविधाओं पर सवाल उठाने के बजाए स्टार पत्रकार माने जाने वाले इन एंकरों ने फर्जी टूलकिट पर बहस की. इनके लिए सिर्फ इनके एंकर की जान की कीमत है, बाकी जनता को कीड़ा-मकोड़ा समझते हैं.

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इन न्यूज एंकरों का क्या इलाज है, मेरी समझ में नहीं आता. इनके खुद के रिश्तेदार और जानने वाले मर रहे फिर भी इनके काम पर उसका असर नहीं दिख रहा. ये महज़ प्रोफेशनल भक्त नहीं हैं, ये दिमागी रूप से एक जाहिल मशीन बन चुके हैं.


सौमित्र रॉय-

देश की 130 करोड़ अवाम के सामने नंगा हो चुका बादशाह आज क्यों रो पड़ा? क्या वह पहले नहीं रोया ? कब और क्यों रोया था ? याद कीजियेगा।

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नंगा बादशाह जब भी चारों ओर कटु आलोचनाओं से घिर जाता है तो वह रोने लगता है। सभी जानते हैं कि नंगा बादशाह के ये आंसू घड़ियाली हैं।

सभी जानते हैं कि नंगे बादशाह के लिए इस तरह का ढोंग करना कोई बड़ी बात नहीं है। क्या बादशाह आज अपने ही राज्य गुजरात की मशहूर कवि पारुल खक्कर की 14 लाइनें पढ़कर रो पड़ा ?

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इन 14 लाइनों में बादशाह के लिए ऐसा क्या लिखा है कि उसे रोना आ गया? इसमें उसके नंगे होने की सच्चाई लिखी है। वह भी बादशाह की अपनी भाषा, यानी गुजराती में।

बादशाह की समूची झूठी ट्रोल सेना उन 14 लाइनों का बचाव करने में जुट गई, लेकिन नाकाम रही। क्यों? क्योंकि इन 14 लाइनों के समर्थन में गुजरात नवनिर्माण आंदोलन के सबसे तेजस्वी चेहरे मनीषी जानी जैसी हस्तियों ने तारीफों के पुल बांधे।

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1973-74 के दौरान मनीषी उसी नवनिर्माण आंदोलन के अध्यक्ष हुआ करते थे, जिसके बारे में बादशाह कहता है कि उसने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। लेकिन 2004 में इसी मानिषी जानी ने मोदी के दावे की धज्जियां उड़ा दी थीं।

तब तो बादशाह नहीं रोया? शायद उसे तब बादशाह बनने की हनक थी।

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याद रखें कि खक्कर ने सिर्फ बादशाह को ही नंगा नहीं कहा, उन्होंने मीडिया और विपक्ष को भी सरेआम नंगा कहा है।

पारूल खक्कर की वे 14 लाइनें बादशाह के उस राम राज्य पर सवाल खड़े करती हैं, जिसमें वह नंगा खड़ा है।

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सात भाषाओं में पारुल की कविता का अनुवाद बादशाह की नग्नता का देशभर में प्रचार कर रहा है।

पारुल को अभी तक अपनी कविता के एवज में मिलीं 28 हजार से भी ज्यादा गालियों भरे कमेंट्स क्या लौटकर बादशाह तक पहुंच गए? मुमकिन है, क्योंकि पारुल ने विरोध में एक शब्द भी नहीं कहा है।

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क्या बादशाह इसलिए रो रहा है, क्योंकि उसके अपने ही कुनबे में पारुल की कविता और ‘बिल्ला-रंगा’ जैसे शब्दों पर मौन सहमति है ?

हां, अगर है तो यह पहली बार है। बादशाह के वजूद को पहली बार इस कदर चुनौती मिल रही है। हां, अगर है तो नंगे बादशाह को अब झोला संभाल लेना चाहिए।

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पारुल की कविता को हिंदी में पढ़ें-

”एक साथ सब मुर्दे बोले ‘सब कुछ चंगा-चंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा
ख़त्म हुए शमशान तुम्हारे, ख़त्म काष्ठ की बोरी
थके हमारे कंधे सारे, आँखें रह गई कोरी
दर-दर जाकर यमदूत खेले
मौत का नाच बेढंगा
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा
नित लगातार जलती चिताएँ
राहत माँगे पलभर
नित लगातार टूटे चूड़ियाँ
कुटती छाति घर घर
देख लपटों को फ़िडल बजाते वाह रे ‘बिल्ला-रंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा
साहेब तुम्हारे दिव्य वस्त्र, दैदीप्य तुम्हारी ज्योति
काश असलियत लोग समझते, हो तुम पत्थर, ना मोती
हो हिम्मत तो आके बोलो
‘मेरा साहेब नंगा’
साहेब तुम्हारे रामराज में शव-वाहिनी गंगा।‘’

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