देहरादून : उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत के निजी सचिव आईएएस मोहम्मद शाहिद का स्टिंग ऑपरेशन करने वाले पत्रकार अशोक पांडेय का घर मंगलवार को मसूरी-देहरादून डिवेलपमेंट अथॉरिटी ने ढहा दिया। स्टिंग में शाहिद राज्य में शराब की बिक्री संबंधी नीतियों को बदलने के लिए रिश्वत की मांग करते दिखाए गए थे।
शासकीय सूत्रों के मुताबिक अशोक पांडेय ने अवैध तरीके से अपने मकान का निर्माण कराया था। उनको वर्ष 2012 में इस बारे में अवगत करा दिया गया था। मकान के अवैध हिस्से को पुलिस और संबंधित अधिकारियों के सामने तोड़ा गया।
गौरतलब है कि अशोक पांडेय दैनिक जागरण और अमर उजाला में लंबे समय तक शीर्ष पद पर रहे हैं। मकान को तोड़ने का आदेश 10 जुलाई को जारी किया गया और नियमों के मुताबिक पांडेय को बताया भी गया था। स्टिंग के बाद अशोक पांडेय ने अपनी जान का खतरा बताया था। पांडेय का कहना है कि स्टिंग के कारण ही उनका मकान तोड़ा गया है।
Comments on “देहरादून में वरिष्ठ पत्रकार अशोक पांडेय का मकान ढहाया गया”
न जाने कितनो के घर उजाड़ने वाले का घर आज उजाड़ दिया गया.. हर शहर में एक गृहस्थ आश्रम जी रहा था . समय रहते अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिंदुस्तान से निकाला न गया होता तो इन संस्थानों को भी बेच डालता. ये किले ऐसे ही नहीं खड़े किये है. ब्यूरो चीफ और रिपोर्टर्स के साथ मिलकर पेड न्यूज़ लगवा कर करोड़ो कमाया है. कहा जायेगा सब. एक तो लड़कियों के साथ ने पाण्डेय जी को बहुत डुबाया है. पाण्डेय जी की सत्ता उलटने की खबर सुनकर पता नहीं कितनी लड़कियों का घर भी हिल गया होगा. जिन्हे मसूरी, देवघर, शिमला, नेपाल की पिकनिक करवाई है, कम से कम वो तो बहुत रोई होंगी
लड़कियों को नौकरी बाटने वाले और लड़को की नौकरी खाने वाले अशोक पाण्डेय तेरा क्या होगा. पहाड़वासी सब लड्डू बाँट रहे है तेरे उजड़े वीराने को देखकर.
Lion ke ghayal hone par memne aise hi rote hai. unhe lagata hai lion ab kabhi khada hi nahi ho sakega. Hijro ki aulad kisi patrakar ka ghar girne par aise khusi nahi manaie jaati hai.
खबर से लगता है कि मकान का ‘अवैध हिस्सा’ ही गिराया गया है। अगर ऐसा है तो कुछ भी अनुचित नहीं है। ठीक है, स्टिंग के कारण ही प्रभावशाली ऑफिसर ने बदला लिया है पर जब अवैध निर्माण सुरक्षित रखना था तो स्टिंग करने के लिए किसी पंडित ने नहीं कहा होगा। वैसे भी कहा जाता है, शीशे के घरों में रहने वाले दूसरों के गर पर पत्थर नहीं मारते।
Ashok pandey k bare mai teen char pratikriya hi bata rahi hai ki unka kam kya raha hai, inhi udaharnou ne ptrakarita par palita yagaya hai.
ये लायन घायल नहीं हुआ, चित्त कर दिया गया है. कभी नहीं उठेगा… सारी पत्रकारिता घुस gaye है. पत्रकारिता के name par kalank है अशोक पाण्डेय. चुतिया.
हर आदमी की करनी अछी हो या बुरी…एक समय के बाद खुल ही जाती है. पाण्डेय जी का वो समय आ गया है. पाण्डेय जी को आज ये सोचना चाहिए कि जिन अखबारों मे वह बतौर संपादक रहे, उनकी आँख कितनी नीची हो रही होगी आज. वे पछता रहे होंगे कि क्यों ऐसे आदमी को संपादक बनाया. पता नहीं कितने लोगो का भविष्य ख़राब किया होगा. जिन लोगो ने उनके अंडर मे काम किया होगा, क्या वे सर उठाकर कही बता पाएंगे कि मैंने किसके साथ मे काम किया था. शर्म करो पाण्डेय जी. जबकि खुद कि फैमिली है फिर भी लड़कियों मे घुसते रहे. उन्हें बदनामी का भी डर नहीं था. ख़ुशी है कि पाण्डेय जी कि आखिर असलियत अवैध निर्माण से ही सही खुलकर सामने तो आई. उनका अवैध चरित्र ढह गया.