मिस्र में प्रतिबंधित मुस्लिम ब्रदरहुड के बारे में झूठी ख़बरें प्रसारित करने और उसका समर्थन करने का दोषी पाए जाने पर अल-जज़ीरा चैनल के तीन पत्रकारों को सात साल जेल की सज़ा सुनाई गई है. तीनों पत्रकारों- पूर्व बीबीसी संवाददाता और ऑस्ट्रेलियाई नागरिक पीटर ग्रेस्टे, कनाडाई और मिस्री मोहम्मद फहमी और मिस्र के ही बाहेर मोहम्मद ने इन आरोपो से इनकार किया है. मोहम्मद को हथियार रखने के एक अन्य मामले में तीन साल और जेल की सज़ा सुनाई गई है.
फ़ैसले के बाद ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री, जूली बिशप ने कहा कि इतने सख़्त फ़ैसले से उनका देश सदमे में है. नौ पत्रकारों (जिनमें से तीन विदेशी हैं) पर उनकी अनुपस्थिति में ही मुकदमा चलाया गया और उन्हें दस-दस साल की सज़ा सुनाई गई. इस फ़ैसले से पहले ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी एबॉट ने मिस्री राष्ट्रपति अब्दुल फ़तेह अल-सीसी से ग्रेस्टे की रिहाई के लिए सीधा अनुरोध किया था. इस सुनवाई को राजनीति प्रेरित बताते हुए इसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना की गई थी.
अल-जज़ीरा का कहना है कि 20 अभियुक्तों में से सिर्फ़ नौ ही उसके कर्मचारी हैं. बाकी लोग छात्र और कार्यकर्ता हैं, जिनमें से दो को सोमवार को बरी कर दिया गया. यह फ़ैसला मिस्र में मीडिया पर बढ़ते प्रतिबंधों की चिंताओं के बीच आया है. फ़हमी और मोहम्मद उन 16 मिस्री नागरिकों में शामिल थे जिन पर चरमपंथी संगठन से संबंध रखने और ‘राष्ट्रीय सुरक्षा को नुक़सान पहुंचाने’ का मुक़दमा दर्ज किया गया था. ग्रेस्टे के अलावा तीन अन्य पत्रकार जो मिस्र से बाहर निकल गए हैं, वह हैं- अल जज़ीरा के ब्रितानी रिपोर्टर डॉमिनिक केन और सू टरटन, हॉलैंड की अख़बार और रेडियो पत्रकार रेना नेटजेस. इन पर ‘मिस्र के लोगों के साथ मिलकर उन्हें पैसा, उपकरण और सूचनाएं उपलब्ध करवाने’ और ‘झूठी ख़बरें प्रसारित करने’ के आरोप लगाए गए हैं. क़तर के अल-जज़ीरा नेटवर्क पर पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद मोरसी और मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रति सहानुभूति रखने वाली ख़बरें प्रसारित करने का आरोप लगाकर उस पर मिस्र के अंदर से प्रसारण पर रोक लगाई जा चुकी है. अल-जज़ीरा इन आरोपों का खंडन करता रहा है. क़तर मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करता रहा है और मिस्र की सरकार उसे पसंद नहीं करती.