Manish Srivastava : सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है, कि ये सूरत बदलनी चाहिए। दुष्यंत कुमार की इन्ही पंक्तियों को आदर्श मानकर मैं ऐसे विषयों पर अक्सर लिखता हूँ जिसे छापने की हिम्मत अगर मुख्य धारा का मीडिया दिखाए तो आज वास्तव में समाज की तस्वीर कुछ और होती। अब देखिए 7 अप्रैल को मैंने दागी आईएएस महेश गुप्ता को अवमानना के मामले में दोषी करार देने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के ईमानदार न्यायमूर्ति विवेक चौधरी के अकस्मात लखनऊ से इलाहाबाद खंडपीठ स्थानांतरण पर तथ्यों संग सोशल मीडिया पर लिखा था।
बाकायदा प्रतिष्ठित अवध बार एसोसिएशन ने न्यायमूर्ति के स्थानांतरण को अनुचित बताते हुए एक प्रस्ताव भी पारित करके मुख्य न्यायाधीश को भेजा था। लेकिन मुख्य धारा की मीडिया के लिए सिर्फ एक महाभ्रष्ट आईएएस को कोर्ट से मिला राहतनामा ही अत्यंत जरूरी था तभी अखबारों ने एक लाइन लिखना जरूरी नहीं समझा। सोशल मीडिया पर लेखन को सामान्यतः लोग गंभीरता से नहीं लेते। मैं भी अक्सर सिर्फ भड़ास निकाल ही देता हूँ। लेकिन पहली बार मुझे सोशल मीडिया की ताकत का एहसास हुआ। जब मेरी पोस्ट न सिर्फ वायरल हुई बल्कि अवध बार इस स्थानांतरण के खिलाफ आंदोलित होने लगी।
वाजिब भी था क्योंकि इस स्थानांतरण का सीधा संदेश जा रहा था कि विधायिका का एक भ्रष्ट नौकरशाह न्यायपालिका पर मानो हावी हो रहा है। मुहिम रंग लाई और पोस्ट लिखने के महज 3 दिनों के भीतर 10 अप्रैल को सुबह सुबह ही अधिवक्ताओं ने फोन करके मुझे खुशखबरी दी कि मनीष जी एक ईमानदार न्यायमूर्ति विवेक चौधरी का अकस्मात स्थानांतरण मुख्य न्यायाधीश ने निरस्त कर दिया है। आपकी पोस्ट खूब वायरल हुई और जजेस ने भी देखी है।
चूंकि ये संवेदनशील प्रकरण न्यायपालिका से बाहर सार्वजनिक रूप से सुर्खियों में आ रहा था। जिससे मुख्य न्यायाधीश पर भी निश्चित रूप से असर हुआ होगा। तभी न्यायमूर्ति चौधरी को लखनऊ वापस भेज दिया गया। अब वो न सिर्फ लखनऊ खंडपीठ में ही पूर्व की भांति बैठेंगे बल्कि आईएएस महेश गुप्ता के अवमानना प्रकरण की सुनवाई भी करेंगे। मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गयी। ये मुस्कुराहट न्याय के मंदिर की गरिमा पूरी आन बान शान के संग पुनः स्थापित होने की थी।
वाकई मुख्य न्यायाधीश के इस निर्णय ने न्यायपालिका में आस्था को टूटने नहीं दिया। अगर न्यायपालिका के ऊपर विधायिका के हावी होने का संदेश आम जनता के ह्रदय में बैठ जाता तो लोकतंत्र के सबसे मजबूत स्तम्भ के लिए ये बेहद शर्मनाक बात होती। मैं इसका पूरा श्रेय सम्मानित अवध बार एसोसिएशन को दूंगा। जिसने न्यायपालिका की गरिमा को कलंकित होने से बचा लिया। वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भी मेरा शत शत नमन कि आपने कम से कम लाज रख ली। वरना आज भ्रष्ट नौकरशाही अट्टहास कर रही होती।
शायद ये न्यायपालिका के इतिहास का एक यादगार प्रकरण भी बन गया है लेकिन मुख्य न्यायाधीश महोदय से करबद्ध प्रार्थना भी है कि आइंदा एक ईमानदार न्यायमूर्ति को अपने विशेषाधिकार के जरिये अकारण ही स्थानांतरण कर न्यायपालिका की गरिमा को यूं सरे बाजार चर्चा का विषय न बनने दीजियेगा। आप ही इस न्याय के मंदिर के सबसे शक्तिशाली और मुख्य पुजारी हैं और आपके ही कंधों पर इसकी गरिमा को बचाना और बढ़ाना है।
कहीं फंसा था। इसलिए पोस्ट को आज लिख रहा हूँ। मेरी पोस्ट को पूर्व में जितने भी सोशल मीडिया के शुभचिंतकों मित्रों ने समर्थन दिया। मैं उन सभी का ह्रदय के कण कण से आभारी हूँ। देखिए आपके समर्थन और हौसलाअफजाई से एक ईमानदार न्यायमूर्ति विवेक चौधरी का स्थानांतरण निरस्त करने के लिए व्यवस्था को विवश होना पड़ा और भ्रष्ट नौकरशाही को भी एक कड़ा संदेश गया है हालांकि दागी आईएएस महेश गुप्ता को फिलहाल अवमानना के प्रकरण में दो सदस्यीय खंडपीठ से फौरी राहत मिल गयी है लेकिन अभी मामले की सुनवाई आगे बाकी है और ये न्यायपालिका का अधिकार और विषय है जिस पर किसी भी तरह की चर्चा निर्रथक है।
मेरा मकसद भी ये नहीं था जिस दागी नौकरशाह के घोटालों और भ्रष्टाचार पर सीबीआई से लेकर राज्य स्तरीय जांच एजेंसियां आज तक शिकंजा नहीं कस सकी, उस भ्रष्ट को छठी का दूध याद दिलाने वाले न्याय के मंदिर के एक ईमानदार पुजारी रूपी न्यायमूर्ति विवेक चौधरी के स्थानांतरण से खून खौल उठा था। ईश्वर के घर देर है पर अंधेर नहीं, नतीजतन आज सच्चाई की अंततः विजय ही हुई। इसी तरह सरकारी तंत्र में आप सब भी अपने अधिकारों और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाते रहिये क्योंकि मेरा मानना है…..
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों
आप सभी का पुनः शुक्रिया, आभार, नमन..स्नेह बनाए रखें।
लखनऊ के तेजतर्रार पत्रकार मनीष श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.
ये है मूल खबर जो सोशल मीडिया पर वायरल हुई…
सुबोध श्रीवास्तव
April 14, 2019 at 3:02 pm
मनीष आप ने हमेशा ही एक बहादुर और निर्भीक पत्रकारिता का परचम लहराया है । आज जब लगभग सारे मीडिया मालिक और पत्रकार सत्ता की गोदी मे बैठकर उनके इशारे पर लिख व दिख रहे है आपकी रिपोर्ट रेगिस्तान मे एक शीतल हवा के झोंके का अहसास कराती है । आप जैसी लेखनी के कारण ही लगता है कि पत्रकारिता का भविष्य अभी भी सुरंक्षित है । शुभकामनाएँ
Krishnan
April 14, 2019 at 6:33 pm
It is always expected from you Manishji… And nobody can influence your way of reporting …all the best