Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

यह तस्वीर और खबर हिन्दी के किसी अखबार में नहीं है!

Sanjaya Kumar Singh : आज दैनिक टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर दिल्ली हाईकोर्ट के जज न्यायमूर्ति एस मुरलीधर के विदाई समारोह की एक तस्वीर छापी है और पीटीआई की इस एक फोटो का कैप्शन ही खबर है। आप देख सकते हैं, इसका शीर्षक लाल रंग में छापा गया है। शीर्षक में जो बात कही गई है वही इस अखबार ने इस तस्वीर और खबर को इतनी प्रमुखता देकर साबित किया है। चार कॉलम में छपी एक खबर का शीर्षक हिन्दी अखबारों का सच है। आज ही मैंने मीडिया पर अपने कॉलम में लिखा है कि हिन्दी अखबार ऐसी किसी खबर को प्रमुखता नहीं देते हैं जिससे सरकार के खिलाफ राय बनती हो। यह खबर सार्वजनिक और सर्वविदित हो तब भी नहीं। दिल्ली हाई कोर्ट के जज के विदाई समारोह की यह फोटो कल सोशल मीडिया पर छाई हुई थी। फिर भी अखबारों में नहीं होने का मतलब है कि वे सरकार से डरते ही नहीं है उसकी छवि बनाने में लगे हुए हैं – भक्ति भाव से।

कई लोगों ने ऐसे कई तस्वीरें शेयर की हैं और सबने यही लिखा है कि न्यायमूर्ति एस मुरलीधर के विदाई समारोह में इतने लोगों का शामिल होना मायने रखता है। पर हिन्दी अखबारों के लिए यह खबर नहीं है। किसी एक या दो अखबार में खबर हो या न हो तो बात समझ में आती है पर हिन्दी के सभी अखबार एक जैसा संपादकीय निर्णय कैसे कर लेते हैं? आज के हिन्दी अखबारों – दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, जनसत्ता, प्रभात खबर, नवोदय टाइम्स, राजस्थान पत्रिका, में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। अमर उजाला के पहले पन्ने पर पूरा विज्ञापन है। अंदर का पहला पन्ना मुफ्त में नहीं देख सकते इसलिए मैंने नहीं देखा। इस लिहाज से आप कह सकते हैं कि द टेलीग्राफ के साथ मैं भी गलत हूं और इतने सारे अखबार कैसे गलत हो सकते हैं। यह पहले पन्ने की खबर और तस्वीर नहीं है। अगर ऐसा है तो आप की खबरों की समझ गलत है या गलत बना दी गई है। संभल सकते हैं तो संभल जाइए। वरना साणू की।

आइए आपको संक्षेप में खबर भी बता दूं। वन इंडिया डॉट कॉम के अनुसार (जिन अखबारों ने इसे पहले पन्ने पर नहीं छापा उन्होंने इसे वैसा लिखा भी नहीं होगा) भड़काऊ भाषण पर एफआईआर का आदेश देने वाले जस्टिस मुरलीधर का ग्रैंड फेयरवेल, वकीलों की उमड़ी भीड़। खबर में कहा गया है, दिल्ली हिंसा मामले में पुलिस को फटकार लगाने वाले दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एस मुरलीधर का गुरुवार को विदाई समारोह हुआ। फेयरवेल कार्यक्रम दिल्ली हाईकोर्ट में रखा गया। जस्टिस मुरलीधर को फेयरवेल देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे तमाम वकीलों की भीड़ उमड़ आई। बता दें कि एक सरकारी आदेश के तहत जस्टिस मुरलीधर का तबादला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट कर दिया गया है। इसके बाद आए हाईकोर्ट के जज ने क्या फैसला दिया और फिर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा यह सब अखबारों में छपता रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जस्टिस मुरलीधर ने दिल्ली हिंसा के दौरान दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि दिल्ली पुलिस ने हिंसा के लिए उकसाने वाले भाजपा नेताओं पर कार्रवाई क्यों नहीं की? आप जानते हैं कि दिल्ली हिंसा में अब तक 53 लोग मर चुके हैं। जस्टिस मुरलीधर ने नफरत भरे बयानों वाले वीडियो को सुनवाई के दौरान चलवाकर देखा था। और पूछा था कि भड़काऊ बयान देने वालों के खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं दर्ज की गई? हालांकि, तबादले पर सरकार का वही कहना था जो आमतौर पर ऐसे मामलों में कहा जाता है कि वह रुटीन तबादला है। सही है कि तबादले की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट के जजों ने की गई थी। इस पर जस्टिस मुरलीधर की समहमति भी थी। लेकिन जिस समय और जिस तरह तबादला किया गया वह सवाल खड़े करता है और विदाई समारोह में भारी भीड़ इसका गवाह है। यह तथ्य कि भड़काऊ भाषण देने वालों के खिलाफ किसी कार्रवाई की सूचना नहीं है। कागजी कार्रवाई हुई हो तो बात अलग है।

दिल्ली हाईकोर्ट के जज के तौर पर उन्होंने 27 फरवरी को आखिरी सुनवाई की। दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल ने विदाई समारोह में कहा, हम आज एक अहम जज को विदाई दे रहे हैं जो कि कानून के किसी भी विषय पर चर्चा कर सकता था और किसी भी मामले की व्याख्या कर सकता था। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इसपर ट्वीट किया है, (अनुवाद मेरा) “दिल्ली पुलिस को दंगा अधिनियम पढ़कर सुनाने वाले जज एस मुरलीधर का तबादला उसी रात 11 बजे कर दिया था। दिल्ली हाईकोर्ट में आज उन्हें विदाई दी गई। हाईकोर्ट में कभी किसी जज को इतना प्रेमभरा विदाई समारोह नहीं देखा गया। उन्होंने दिखाया कि शपथ के प्रति ईमानदार एक जज संविधान को बनाए रखने और अधिकारों की रक्षा करने के लिए क्या कुछ कर सकता है।” टेलीग्राफ की खबर के अनुसार, अधिवक्ता रेबेका जॉन ने फेसबुक पर पोस्ट लिखा, दिल्ली हाईकोर्ट के सर्वश्रेष्ठ में से एक के लिए यह उल्लेखनीय फेयरवेल था। मैं पिछले 33 वर्ष से इस कोर्ट का भाग हूं पर मैंने ऐसा कोई फेयरवेल नहीं देखा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इससे आप समझ सकते हैं कि हिन्दी अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर क्यों नहीं है।

वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.


Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement