नवेद शिकोह-
तो क्या उ.प्र.राज्य मुख्यालय संवाददाता समिति का सेवा काल बढ़ गया है! उ.प्र.राज्य मुख्यालय संवाददाता समिति की परफोर्मेंस और बेहतर सेवाओं से क्या पत्रकार इतना प्रभावित हैं कि समिति का सेवा काल बढ़ा देने के संकेत दे रहे हैं!
मान्यता समिति के उच्च पदस्थ पदाधिकारियों को सम्मानित किए जाने से तो यही लग रहा है। इन पदाधिकारियों की पत्रकारिता में सबसे बड़ी सेवा तो समिति के पदों की जिम्मेदारी निभाना ही है। और यदि समिति को सचमुच पत्रकार सम्मानित कर रहे हैं तो ये मानना पड़ेगा कि बतौर पदाधिकारी उनकी परफार्मेंस और सेवाओं से संतुष्ट है, खुश हैं। चुनाव की मांग के बजाय सम्मानित करने की मंशा ये दर्शाती है कि समिति का सेवाकाल बढ़ता रहे। सम्मान ये भी दर्शाने और साबित करने की कोशिश करता है कि मौजूदा कार्यकाल वैध है।
या फिर ये सब प्रायोजित है। प्रायोजित नहीं तो पत्रकारों की मौजूदा मान्यता समिति पर अटूट आस्था है !!!
यदि चुनाव ना कराने का बहाना कोरोना है तो अब सवाल ये उठ रहे हैं कि जब मान्यता समिति और उसके उच्च पदस्थ पदाधिकारी कोरोना काल में सम्मानित हो सकते हैं तो समिति चुनाव में क्यों नहीं उतर सकती !
समिति से नाराज पत्रकार इन दिनों तेज़ी से मुखर होना शुरू हो गए हैं। नाराजगी की भी दो वजहे हैं। पहली ये कि इनके कार्यकाल की परफारमर्स ठीक नहीं थी। कोई ठोस काम नहीं किया। आम पत्रकारों की आम सभा तक नहीं बुलाई गई। पत्रकारों की मूल समस्याओं से रूबरू होने के लिए पदाधिकारी उनके साथ ढाई वर्ष में एक बार भी नहीं बैठे। आम पत्रकारों से ही पत्रकार प्रतिनिधि का तमगा पाकर समिति के पदाधिकारी अधिकारियों और मंत्रियों की परिक्रमा करते रहे। फोटो खिचवाने और केक खिलवाने तक इनकी सेवाएं सीमित रहीं। गैंगवार, खेमेबंदी और निजी हित साधने के अतिरिक्त शासन स्तर पर एक दूसरे की शिकायतें करते रहे।
पदाधिकारियों पर इस तरह के आरोप लगा रहे पत्रकारों की दूसरी सबसे बड़ी नाराजगी ये हैं कि कार्यकाल समाप्त हुए करीब दस महीनें बीत चुके हैं लेकिन चुनाव की घोषणा नहीं की जा रही है। जबकि कोरोना की अहतियात के साथ जिन्दगी पटरी पर आ चुकी है। सारे कामकाज हो रहे हैं। देश- प्रदेश में करोड़ों की सहभागिता वाले विधान सभाओं के चुनाव , उप चुनाव और नगर निकायों के चुनाव हुए हैं, और होने हैं। तो फिर एक हजार के अंदर की संख्या की सहभागिता वाले उ.प्र.राज्य मुख्यालय के चुनाव को कोरोना का बहाना बना कर क्यों टाला जा रहा हैं।
हांलाकि इस तरह के शिकवे-शिकायतें और तर्क देकर चुनाव की मांग करने वालों की संख्या बेहद कम है। अभी चुनाव की मांग को लेकर एक हस्ताक्षर अभियान चला जिसमें करीब एक हजार मान्यता प्राप्त पत्रकारों में केवल ग्यारह लोगों ने हस्ताक्षर की। यानी हस्ताक्षर अभियान वाले इस कागज को मानक माना जाये तो मौजूदा समिति की कार्यप्रणाली और चुनाव ना कराये जाने से केवल एक प्रतिशत पत्रकार नाराज़ हैं।
बाकी कुछ समिति के पदाधिकारियों को सम्मानित कर समिति की अवधि को वैध साबित कर रहे हैं। और समिति की कार्य प्रणाली और परफार्मेंस पर आस्था जता रहे हैं। जबकि बड़ी संख्या में पत्रकार खामोश हैं।
इसी बीच पत्रकारों का एक धड़ा चुनाव कराने को लेकर एक आम सभा करने जा रहा है।
- नवेद शिकोह
वरिष्ठ पत्रकार
लखनऊ