-बृहस्पति पांडेय-
HT मीडिया की बहुचर्चित बाल पत्रिका नंदन व गम्भीर मुद्दों पर आधारित पत्रिका कादम्बनी का प्रकाशन आखिरकार बंद हो गया और साथ ही इससे जुड़े संत समीर जैसे गंभीर और संवेदनशील पत्रकार को बेरोजगार भी कर गया।
कोरोना के चलते मीडिया जगत में जहां इलेक्ट्रॉनिक व डिजिटल मीडिया के दर्शकों/पाठकों में बढ़ोतरी हुई है। वहीं प्रिंट मीडिया घोर संकट से जूझ रहा है। बड़े अखबारों कि भी हालत खराब है। कई एडिशन को एक साथ समेट कर निकाला जा रहा है। वहीं पाक्षिक और मासिक पत्रिकाओं की हालत और भी खराब है। पिछले 5 महीनों में कई पत्रिकाएं सिर्फ ईकॉपी में ही पीडीएफ फार्मेट में ही छप रहीं है। क्यों कि अभी भी दूर दराज के शहरों में इनकी पहुंच नहीं संभव है। कई मीडिया घराने पत्रिकाओं से जुड़े ऑफिस स्टाफ को पिछले 5 महीनें से बिना किसी लाभ के ही सेलरी दे रहीं हैं।
आखिर यह कब तक सम्भव होगा जब पत्रिकाओं को विज्ञापन नहीं मिल रहा है। उनकी पहुंच पाठकों तक नहीं हो पा रही है । यही हाल रहा तो वर्षों से प्रकाशित पत्रिकाओं के दफ्तर पर ताला लगने के साथ ही पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद हो जाएगा। इसके बाद इन पत्रिकाओं से जुड़े पत्रकार और हॉकरों के सामने रोजगार छिनने से रोजगार का संकट भी पैदा होगा। यह स्थिति स्वतंत्रत लेखन और पत्रकारिता से जुड़े लोगों के लिए और भी दुःखद होगा। क्योंकि फ्रीलांसर तो वैसे भी संपादकों के रहमोकरम कर पर जीते हैं।
इस संकट से उबारने में सरकार को थोड़ी सी पहल करने की जरूरत है, पत्र पत्रिकाओं को जिंदा रखने और उससे जुड़े लोगों के रोजगार को छिनने से बचाने के लिए आर्थिक पैकेज देने की। नहीं तो कई पत्रिकाएं इतिहास बन कर रह जाएंगी। फिर हमारे और हमारे बच्चों के पास सिर्फ दीदा फाड़ के डिजिटल कंटेंट पढ़ने और देखने के शिवा कोई चारा नहीं बचेगा। थोड़ी सी पहल पाठकों को भी करने की जरूरत है, वह है पत्र पत्रिकाओं से एकदम से दूरी न बनाये।