बेंगलुरु : प्राचीन काल के कवि देवरदासी मैया के जन्मदिन के मौके पर कर्नाटक विधानसभा के बैंक्वेट हॉल में एक कार्यक्रम चल रहा था। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के साथ-साथ कई वरिष्ठ नेता और मंत्री वहां मौजूद थे।
तभी कन्नड़ भाषा के जाने माने इतिहासकार चिदंनदा मूर्ति और उनके कुछ समर्थक इसका विरोध करने लगे, ये कहते हुए कि जेठदेवरदासी मैया न सिर्फ कथावाचक थे बल्कि देवरदासी से बड़े शिवभक्त थे।
ऐसे में जन्म शताबदी समारोह जेठदेवरदासी का मनाया जाना चाहिये। इससे आयोजक नाराज़ हो गए और दोनों ग्रुप आपस में भिड़ गए।
मामला बिगड़ता देख पुलिस ने तक़रीबन 81 वर्षीय चिदानंदा मूर्ति और उनके समर्थकों को हॉल से बाहर कर दिया। सवाल ये उठता है कि अगर साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित इतिहासकार और लेखक चिदानंदा मूर्ती को इस कार्येक्रम से ऐतराज था तो वो अपना विरोध दूसरे तरीक़ों से भी ज़ाहिर कर सकते थे या फिर अदालत का दरवाज़ा भी खटखटा सकते थे, लेकिन कार्यक्रम के बीच में इसका विरोध किसी को रास नहीं आया।
2012 में एक अखबार को इंटरव्यू देते हुए कर्नाटक के इस वरिष्ठ लेखक ने कहा था कि टीपू सुल्तान जिसने कई मंदिरों को तोड़ डाला था, उसके नाम पर किसी विश्वविद्यालय का नाम कैसे रखा जा सकता है? टीपू सुल्तान को उन्होंने हिंदू विरोधी करार दिया था। इसके बाद टीपू सुल्तान यूनाइटेड फ्रंट के स्टेट प्रेसिडेंट सरदार अहमद कुरैशी ने मूर्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराया था। चिदानंद ने कहा था कि कई इतिहासकार कह चुके हैं कि टीपू सुल्तान का हिंदुओं के प्रति रवैया ठीक नहीं था, ऐसे में उनके नाम पर विश्वविद्यालय का नाम नहीं रखा जाना चाहिए।