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सुख-दुख

कनपुरिया ठसक वाले रौबीले संपादक शैलेंद्र दीक्षित कमाल के आदमी थे!

शंभूनाथ शुक्ला-

एक संपादक के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती होती है अपने अख़बार को लोकप्रिय बनाना। अगर आप अपने अख़बार को मार्केट में लोगों तक पहुँचा नहीं पाये तो चाहे जितने बड़े बौद्धिक, लिक्खाड़, भले क्यों न हों आप फेल संपादक माने जाएँगे। इस मामले में शैलेंद्र दीक्षित कमाल के आदमी थे।

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वे कनपुरिया ठसक और रौबीले संपादक थे। मेरे साथ उनकी तीन ही मुलाक़ातें एक बार जब वे पटना में दैनिक जागरण के संपादक थे और मैं कोलकाता में जनसत्ता का तब अलग झारखंड बनने के मौक़े पर वे राँची में मिले थे और एक बार कानपुर में। लेकिन मैं उनसे प्रभावित हुआ।

दैनिक जागरण से अवकाश लेने के बाद उन्होंने कानपुर में बिफ़ोर प्रिंट शुरू हुआ। मुझसे बात की और बोले, बैठा जाए। यह बात अगस्त 2021 की है। पर मैं दिल्ली लौट आया। बीच में दो बार गया पर मिल नहीं पाये। कल शाम को जब शताब्दी से लौट रहा था, तब यह सूचना मिली।

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मज़े की बात सुबह वे ठीक थे। लेकिन दोपहर बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ा और नहीं रहे। कानपुर से निकले सफल संपादकों में उनका नाम था। उनकी यादों को मेरा प्रणाम।


सत्यनारायण चतुर्वेदी-

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पत्रकारिता जगत और पत्रकारों के लिये बेमिसाल, कुशल व दबंग संपादक शैलेन्द्र दीक्षित के असामयिक निधन से काफी मर्माहत हूं। बिहार, झारखंड व बंगाल से ” दैनिक जागरण ” समाचार – पत्र के स्टेट हेड रहे शैलेन्द्र दीक्षित विभिन्न समाचार पत्रों के भीड़ में ” दैनिक जागरण ” को नंबर वन की श्रेणी में खड़ा करने और पत्रकारों को कुशल अभिभावक के रूप में प्रेरणा देने बाले थे।

उनका असामयिक निधन मीडिया जगत के लिये अपूरणीय क्षति है। बिहार में 12 अप्रैल – 2000 में ” दैनिक जागरण ” के स्थापना दिन से लगातार 15 बर्षों तक उनका स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त होता रहा।

शैलेन्द्र दीक्षित मीडिया जगत के बेमिसाल संपादक रहे हैं,उन्होंने पत्रकारों और प्रेस कर्मियों को अपने परिवार के सदस्यों की तरह ब्यवहार करते थे। हमें लेखन व पत्रकारिता के क्षेत्र में उनसे काफी ज्ञान और प्रेरणा मिला है। उनके निधन की खबर सुनते ही मैं काफी आहत हूं और मैं कामना करता हूं कि भगवान उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें। उन्हें अश्रुपूरित श्रध्दांजलि देते हुये शत शत नमन करता हूं।

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सत्यनारायण चतुर्वेदी
लेखक व पत्रकार
बाढ़, पटना (बिहार)


Rakesh Praveer-

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ऐसा भी होता है क्या…? कल शाम की ही बात है, एक आत्मीय पत्रकार मित्र ( श्री वीरेंद्र कुमार जी) के घर पर हम सब ( मैं और श्री कृष्णकांत ओझा) बैठे थे। यूपी चुनाव की चर्चा चल रही थी, वीरेंद्र जी ने दीक्षित जी को मोबाइल पर कॉल किया, उधर से आदरणीय दीक्षित जी की आत्मीय आवाज गूंजी…उन्होंने यूपी चुनाव की अद्यतन जानकारी दी। उसके बाद काफी देर तक हम सब दीक्षित जी (श्री शैलेन्द्र दीक्षित,दैनिक जागरण व आज के धाकड़ पूर्व सम्पादक) के बारे में बातें करते रहे।…और आज यह मनहूस खबर..सहसा विश्वास नहीं हो रहा है। …हे प्रभु उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान देना…दिवंगत आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि.

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