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सुख-दुख

भाजपा ने किया तो कुछ नहीं, अब सब पैजामे से बाहर …. जानिये करण थापर का बायकाट कैसे किया गया

संजय कुमार सिंह-

14 एंकरों के बायकाट पर पत्रकारिता का पाठ पढ़ा रहे तथाकथित निष्पक्ष और स्वतंत्र लोग तब चुप थे जब भाजपा ने एनडीटीवी और रवीश कुमार का बायकाट किया था। रवीश कुमार से भक्तों की नाराजगी सर्वविदित है उनसे बचने के लिए पूरे गिरोह या परिवार को क्या सब करना पड़ा उसकी कहानी लंबी है पर करण थापर तो वैसे विरोधी नहीं हैं। बायकाट भाजपाइयों ने उनका भी किया था और अघोषित रूप से। विवरण उनकी किताब “डेविल्स एडवोकेट – दि अनटोल्ड स्टोरी” (2018, हार्पर कॉलिन्स) में है। इस किताब में यह 17वां और अंतिम अध्याय है और पृष्ठ संख्या 190 से शुरू होकर 204 पर खत्म हुआ है। इस अध्याय का नाम है, “व्हाई मोदी वाक्ड आउट एंड बीजेपी शन्स मी” [मोदी क्यों उठकर चले गए और भाजपा (वाले) मुझसे क्यों बचते हैं]।

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अध्याय की शुरुआत होती है, “यह कोई राज की बात नहीं है कि नरेन्द्र मोदी सरकार की राय मेरे बारे में बहुत अच्छी नहीं है। इसमें कोई शक नहीं है कि कुछ मंत्री हैं जिनसे मैं मित्रवत हूं – अरुण जेटली इसके मुख्य उदाहरण हैं – पर ज्यादातर जिनके साथ मेरे बड़े अच्छे संबंध थे श्री मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एक साल के अंदर मुझसे बचने के बहाने ढूंढ़ने लगे हैं। रवि शंकर प्रसाद, प्रकाश जावेडकर और एम वेंकैया नायडू जैसे जो लोग विपक्ष के नेता के रूप में और पहले साल के दौरान या 2014 में और कुछ बाद तक मुझे खुशी-खुशी इंटरव्यू देते थे, ने अचानक अपने दरवाजे बंद कर दिए। निर्मला सीतारमन जैसी कुछ ने तो आग्रह स्वीकार करने और रिकॉर्डिंग की तारीख तय करने के बाद अंतिम समय में बिना कोई स्पष्टीकरण दिए, मुकर जाने का काम भी किया है।

मुझे पसंद नहीं किया जाता है यह बात पहली बार तब साफ हुई जब भाजपा प्रवक्ता मेरे टीवी कार्यक्रमों में आने का निमंत्रण स्वीकार करने से मना करने लगे। शुरू में मैंने समझा कि वे व्यस्त होंगे। हालांकि, जब यह दोहराया जाने लगा तो मैंने संबित पात्रा से पूछा कि कोई समस्या है क्या? दबी जुबान में और ऐसे ढंग से जिससे लगा कि वे शर्मिन्दगी महसूस कर रहे थे, उन्होंने पूछा कि मैं उनके जवाब को सार्वजनिक तो नहीं कर दूंगा। मेरे आवश्यक आश्वासन देने पर उन्होंने कहा कि भाजपा के सभी प्रवक्ताओं से कहा गया था कि वे मेरे शो में न आएं। इसके बाद मंत्रियों का नंबर आया। जो लोग हमेशा चाहते थे कि उनका इंटरव्यू किया जाए और जो चुनौतीपूर्ण चर्चा का आनंद लेते थे, वे ऐसे टेलीफोन नंबर में बदल गए जो फोन करने पर जवाब नहीं देते थे। उनके सचिवों के पास एक ही जवाब होता था, “सर माफी मांग रहे हैं। वे व्यस्त हैं”।

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प्रकाश जावेडकर एकमात्र व्यक्ति रहे जिसे मैं अपने शो में आने के लिए तैयार कर पाया। अपनी पार्टी के प्रवक्ताओं और मंत्रिमंडल के सहयोगियों के ना कहने या जवाब नहीं देने की आदत बना लेने के बाद भी वे ऐसा करते रहे। आखिरकार, एक दिन उन्होंने दोबारा विचार किया। जब उन्होंने फोन किया और कहा, “मेरी पार्टी आपसे क्यूं नाराज है?” क्या हुआ करण? मुझसे कहा गया है कि मैं आपको इंटरव्यू नहीं दूं”। इससे मैं समझ गया। यह पहला मौका था जब मुझे औपचारिक तौर पर बताया गया कि भाजपा को मुझसे दिक्कत है। जावेडकर ने मुझसे इसे गोपनीय रखने की कसम भी नहीं ली। उल्टे वे इस निर्देश से चकित लगे कि मेरा बायकाट किया जाना है। उन्होंने स्थिति से निपटने की सलाह देने के लिए फोन किया था। उन्होंने कहा था, आप अध्यक्ष जी से मिलें और इसको सॉर्ट आउट करें।

मैं अरुण जेटली को जानता हूं इसलिए मैंने सबसे पहले उन्हीं से बात की। मैंने उनसे वित्त मंत्रालय में मिलना तय किया। वहां उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि कोई समस्या नहीं थी। उन्होंने कहा कि मैं इसकी कल्पना कर रहा था। उन्होंने कहा कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। मुझे लगता है कि अरुण सिर्फ भद्रता दिखा रहे थे क्योंकि बायकाट जारी रहा। इसलिए मैंने फिर संपर्क किया। इस बार फोन पर। अब उन्होंने समस्या होने से इनकार करना बंद कर दिया। इसकी बजाय कहा कि यह खत्म हो जाएगा। …. इसके बावजूद अगर कोई शक रह गया था तो इसे आखिरकार भाजपा महासचिव राम माधव ने दूर कर दिया। …. एक इंटरव्यू की रिकॉर्डिंग के बाद उन्होंने कहा, …. वे (मेरे सहकर्मी) नहीं मानते हैं कि मुझे यह इंटरव्यू देना चाहिए था पर मैं नहीं मानता कि हमें लोगों का बायकाट करना चाहिए।

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इसके बाद मैंने अमित शाह से मिलने का निर्णय किया। …… मेरी बातें सुनने के बाद उन्होंने मामले को देखने के बाद 24 घंटे के अंदर फोन करने का आश्वासन दिया। उनका फोन नहीं आया। मेरी चिट्ठियों का जवाब नहीं आया। मैंने फोन पर संदेश छोड़े, संभवतः 50 बार, पर कोई जवाब नहीं मिला। ……. मैंने तय किया कि संभवतः यह सीधे श्री मोदी से बात करने का समय था। मैंने इस बारे में अजीत डोभाल और नृपेंद्र मिश्रा से बात की। …. नृपेन्द्र मिश्रा ने फोन करके बताया कि उनकी मोदी से बात हुई और वे नहीं समझते कि मिलने से कोई फायदा होगा। मिश्रा ने कहा कि संभवतः अमित शाह ने इसीलिए फोन नहीं किया। उन्हें भी ऐसा ही लगा होगा…….

इसके बाद करण थापर ने उनसे नाराजगी का कारण बताया है और लिखा है, …. मोदी ने फोन किया। मेरे कंधे पर बंदूक रखके आप गोली मार रहे हो। मैंने कहा, मैं भी यही समझ रहा था इसीलिए मेरा मानना था कि उन्हें उठकर चले जाने की बजाय इंटरव्यू पूरा करना चाहिए था। इसपर मोदी हंसे थे और उस समय जो कहा उसे मैं कभी नहीं भूलूंगा। करण भाई, आई लव यू। जब मैं दिल्ली आउंगा भोजन करेंगे। …. सच यह है कि उसके बाद से मेरी मोदी से मुलाकात नहीं हुई है।

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थापर ने लिखा है कि इस इंटरव्यू के बाद 10 वर्षों तक भाजपा से मेरे रिश्ते किसी भी रूप में प्रभावित नहीं हुए। ….. और यह 2016 के शुरुआत तक रहा। इसलिए शुरू में मुझे बात समझ में नहीं आई और समझने में समय लगा। …. फिर 18 अक्तूबर 2017 को जाने-माने राजनयिक, लेखक और राजनीतिज्ञ पवन वर्मा ने मुझे सबूत दिया। उन्होंने जो कहा उससे उस छवि की पुष्टि हुई जो नृपेन्द्र मिश्र से बात करके बनी थी। पवन ने जो कहानी बताई वह यकीन करने लायक है। मेरे ऑफिस में बैठे हुए उनकी आंख नरेन्द्र मोदी की एक तस्वीर पर पड़ी। यह प्रधानमंत्रियों का एक समूह है जिनका मैंने इंटरव्यू किया है हालांकि इनमें मोदी की तस्वीर टेलीविजन स्क्रीन से ली हुई है और बिल्कुल उस क्षण की है जब वे माइक निकालना शुरू करते हैं और इंटरव्यू खत्म हो जाता है। सीएनएन-आईबीएन का कैप्शन है – जो स्क्रीन पर पढ़ा जा सकता था, फोटो का भाग है। इसमें लिखा है, ‘कांट डू दिस इंटरव्यू’ (यह इंटरव्यू नहीं कर सकता)।

पवन ने अचानक पूछा, क्या आप जानते हैं कि प्रशांत किशोर ने उस इंटरव्यू के बारे में मुझसे क्या कहा? उन्होंने कहा कि जब वे मोदी को 2014 के चुनावों के लिए तैयार कर रहे थे तो इसे उन्हें तीस बार दिखाया। उनकी टीम ने आपके इंटरव्यू का उपयोग मोदी को यह बताने के लिए किया कि कैसे मुश्किल सवालों का जवाब दिया जाता है या खराब, मुश्किल क्षणों को संभाला जाता है। इसके बाद जो हुआ वह और भी चौंकाने वाला था क्योंकि पवन ने प्रशांत किशोर से अपनी बातचीत का विवरण दिया। मोदी ने प्रशांत से कहा कि इंटरव्यू के बाद उन्होंने जानबूझकर पूरे एक घंटे तक मुझे रोके रखा ताकि मैं इस विश्वास के साथ निकलूं कि उनकी ओर से कोई गलत भावना नहीं है। इसलिए चाय की प्याली, मिठाई, ढोकले सब मुझे निरस्त्र करने की रणनीति के भाग थे। मैंने जब पवन को बताया कि मोदी बेहद मित्रवत थे और किसी भी रूप में इंटरव्यू में जो हुआ उससे परेशान नहीं लगे तो पवन ने कहा कि वह सोचा समझा था। यह एक सोची हुई रणनीति का भाग था।

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