Balendu Swami : मैं करवा चौथ रखने वाली अपने आस-पास की कुछ महिलाओं को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ: 1) एक महिला, जो 15 साल से विवाहित है और रोज आदमी से लड़ाई होती है, सभी जानते हैं कि इनका वैवाहिक जीवन नरक है। 2) एक और महिला, जिसकी महीने में 20 दिन पति से बोलचाल बंद रहती है और वह उसे छिपाती भी नहीं है तथा अकसर अपनी जिन्दगी का रोना रोती रहती है।
3) इस तीसरी महिला को हफ्ते में दो-तीन बार उसका पति दारु पीकर पीटता है और उस महिला के अनुसार वेश्याओं के पास भी जाता है। 4) इस महिला के अपने मोहल्ले के ही 3 अलग अलग पुरुषों के साथ शारीरिक सम्बन्ध हैं और इस बात को लेकर पति के साथ उसकी लड़ाई सड़क पर आ चुकी है तथा सबको पता है. 5) पांचवीं महिला की बात और भी विचित्र है: उसका अपने पति से तलाक और दहेज़ का केस कोर्ट में चल रहा है। केवल कोर्ट में तारीखों पर ही आमना-सामना होता है!
परन्तु ये सभी करवा चौथ का व्रत रखतीं हैं! क्यों रखती हैं तथा इनकी मानसिक स्थिति क्या होगी? ये कल्पना करने के लिए आप लोग स्वतंत्र हैं! इनके अतिरिक्त उन्हें आप क्या कहेंगे जो खुद को प्रगतिशील, नारीवादी और आधुनिका भी कहतीं हैं और करवा चौथ का व्रत भी रखतीं हैं! आप करवा चौथ करो, घूँघट करो या बुरका पहनो कम से कम इन रुढियों को संस्कार तो मत कहो! फिर आप स्त्री मुक्ति का झंडा भी उठातीं है। बहुत अजीब लगता है यह सब। आप स्वयं जिम्मेदार व्यक्ति हैं!
Chandan Srivastava : करवा चौथ के बेसिक कंसेप्ट से मेरा असहमत होना तो खैर लाजमी है। लेकिन मैने गौर किया कि पिछले कुछ सालों से बहुत से पति लोग भी पत्नी के साथ निर्जल व्रत रखने लगे हैं। यह एक बेहतरीन बदलाव आ रहा। सीधा सा संदेश है कि तुम मेरी सलामती के लिए उपवास रख रही हो तो मैं तुम्हारी ही पद्धति को फॉलो करके तुम्हारे इस समर्पण के प्रति शीश नवाता हूं। पति-पत्नी के बीच प्रेम और एकदूसरे के प्रति आपसी समझ बढ़ाने का इससे बढ़िया और क्या तरीका हो सकता है।
काश कि इतनी ही समझ उन पतियों में भी होती और कहते कि तीन तलाक का अधिकार मेरी बीवी को भी दो, जब उसे एक से अधिक पति की इजाजत नहीं तो मुझे क्यों? मैं यह अधिकार स्वतः त्यागता हूं। इसके लिए बनाए कानून का मैं समर्थन करूंगा। निकाह-ए-हलाला जैसा घटियापन आज और अभी खत्म किया जाए। ऐसी घिनौनी प्रथा का समर्थक मुझे बलात्कारी नजर आता है। काश कि वे अपनी पत्नियों से इतना प्यार करते। काश कि वे अपने हिंदू दोस्तों से कुछ अच्छी बातें सीखते। काश की वे परिवर्तन के अहमियत को समझ पाते।
वृंदावन के नास्तिक स्वामी बालेंदु और लखनऊ के पत्रकार व वकील चंदन श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.
इसे भी पढ़ें…