दिल्ली चुनाव इन दिनों आकर्षण और चर्चा का केंद्र है. हो भी क्यों ना, एक अकेले बंदे ने, एक अकेली शख्सियत ने पूरी की पूरी केंद्र सरकार की नींद उड़ा कर रखी हुई है. आपको याद होगा कि 2013 में सरकार गठन पर अरविन्द केजरीवाल ने कहा था कि अन्य दलों को राजनीति तो अब आम आदमी पार्टी सिखाएगी. अब जाकर यह बात सही साबित होती हुई दिखाई दे रही है. जहाँ महाराष्ट्र, झारखंड, जम्मू कश्मीर और हरियाणा में बीजेपी ने बिना चेहरे के मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा और नए चेहरे को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन दिल्ली में उसे चेहरा देना ही पड़ा. अपने पुराने सिपहसालारों व वफादारों को पीछे करके एक बाहरी शख्सियत को आगे लाया गया. देखा जाए तो ये भी अपने आप में केजरीवाल और उनकी पार्टी की जीत है. कहना पड़ेगा, जो भी हो, बन्दे में दम है.
दिल्ली चुनाव में आवाम संस्था द्वारा उठाये गए सवालों पर भी कई सवाल हैं. सबसे पहले वक़्त और नीयत का है. क्या अगर आवाम की नीयत साफ़ थी तो लोक सभा चुनावों के वक़्त यह आरोप क्यों नहीं लगाए. फिर आवाम दावा करती है कि काले धन को चेक से सफ़ेद किया जा सकता है. इसका मतलब अगर मान लिया जाए यह काला धन था तो सवाल है कि क्या ‘आप’ पर सवाल उठाने वाली अन्य पार्टियां भी अपनी फंडिंग की जाँच कराने के लिए तैयार होंगी. ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है. इसका जवाब ख़ास तौर पर बीजेपी और कांग्रेस को भी देना चाहिए. वो भी जब केंद्रीय बीजेपी नेतागण भी काले धन की चेक से फंडिंग की संभावना को मानते हैं.
आरोप लगाया जाता है कि अरविन्द दिल्ली छोड़ कर भाग गए. उन्हें भगोड़े का तमगा दिया गया, लेकिन यदि दिल्ली चुनाव में ‘आप’ दूसरी बड़ी पार्टी थी तो जम्मू काश्मीर में बीजेपी भी दूसरी बड़ी पार्टी है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जम्मू काश्मीर में सरकार गठन के सवाल पर बीजेपी भी रणछोड़ या भगौड़ी नहीं है. दिल्ली को सरकार विहीन बनाने के लिए ‘आप’ को जिम्मेवार मानने वाली पार्टी क्या खुद जम्मू कश्मीर के मौजूदा हालात के लिए जिम्मेवार नहीं है. जम्मू काश्मीर में दोबारा चुनाव की सुगबुगाहट के लिए क्या बीजेपी जिम्मेवार नहीं है.
यदि जनलोकपाल और भ्रष्टाचार रोकने जैसे गंभीर किसी मुद्दे पर इस्तीफ़ा देना रणछोड़ है तो क्या बीजेपी यह मानती है कि सरकार पूरे समय चलाओ और फिर चाहे इसके लिए कितना भी भ्रष्टाचार हो, वो जायज़ है. चाहे जितने मर्ज़ी कारोबारियों को आम जनता की जेब काटकर फायदा दिया जाए. ये भी एक सवाल है क्योंकि मानें या ना मानें, दिल्ली में ‘आप’ की सरकार के दौरान भ्रष्टाचार पर लगाम तो लगी थी. मेरे खुद के राज्य हिमाचल प्रदेश के ड्राइवर भाई इस बात के गवाह हैं, जिन्हें पहले दिल्ली माल ले जाने पर सिर्फ एक चक्कर के हज़ार हज़ार रुपये रिश्वत देनी पड़ती थी, लेकिन अरविन्द सरकार के दौरान उन्हें इस प्रथा से मुक्ति मिली. तब वही ड्राइवर भाई जो पहले दिल्ली जाने से कतराते थे, अरविन्द सरकार के दौरान दिल्ली जाने के लिए उत्सुक और खुश होते थे. दिल्ली के अलावा अन्य राज्यों के लोग भी इस बात को मानते हैं. अब दिल्ली की जनता तय करे कि उसे किसे मौका देना है.
संदीप खड़वाल
वरिष्ठ पत्रकार
ऊना, हिमाचल प्रदेश
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