हिंदी न्यूज वेब मीडिया का बिजनेस जिस एनर्जी के साथ आगे बढ़ रहा था, वह फिलहाल मुझे कम होता दिख रहा है। इस इंडस्ट्री में मेरी शुरुआत 2012 के जनवरी में हुई थी और 2015 के मार्च में मैंने इंडस्ट्री छोड़ दी। इन तीन सालों में कभी ऐसा नहीं लगा कि हिंदी न्यूज वेब का बिजनेस मंदा होगा। ऐसा लग रहा था कि इसमें ही पत्रकारिता और पत्रकारों का भविष्य है। लेकिन 2015 के आखिरी महीनों में मामला उल्टा नजर आ रहा है। मैंने यह जानने की कोशिश की आखिर क्यों मुझे लग रहा है कि हिंदी वेब मीडिया अपनी चमक खो रहा है। कुछ वजह नजर आए –
1. इंटरनेट डेटा महंगा होने की वजह से लोग हिंदी न्यूज वेबसाइट पर जा ही नहीं रहे हैं। फेसबुक पर ही लोग समाचार, विचार, इंटरेक्शन और एंगेजमेंट पा ले रहे हैं। हिंदी न्यूज साइट्स पर टेक्स्ट और वीडियो ऐड की वजह से उनका काफी डेटा खर्च होता है। इससे कम पैसे में वो न्यूज चैनल या अखबार से समाचार पा सकते हैं। और फिर सोशल मीडिया तो है ही।
2. पिछले चार सालों से हिंदी न्यूज वाले एक लकीर के फकीर बने हुए हैं। घटिया कंटेंट का बढ़िया हेडलाइन लगाकर यूजर्स का बेवकूफ बनाने का धंधा आखिर कब तक चलेगा। पिछले चार पांच सालों में वे विश्वसनीयता बना नहीं पाए। वे यूजर्स को कुछ नया नहीं दे पा रहे हैं, उनको बोर करते हैं। मुझसे कोई कह रहा था कि सेक्स आधारित कंटेंट में भी लोगों की दिलचस्पी कम हुई है।
3. हिंदी न्यूज के कई सारे वेबसाइट्स आ चुके हैं जिनपर एक ही तरह के कंटेंट देखे जा सकते हैं। आखिर यूजर्स क्या क्या और किसको किसको कंज्यूम करेंगे। इससे बेहतर है कि सबकी हेडलाइन सोशल मीडिया पर देखते रहो।
3. मोबाइल पर लोगों के पास अब पचास तरह के काम हैं। बिल पेमेंट से लेकर जिंदगी के कई काम अब मोबाइल से होने लगे हैं। मतलब यूजर्स के पास अब समय का भी अभाव है।
4. हिंदी न्यूज वेबसाइट्स चलाने वालों को यह गलतफहमी है कि वह चार लोगों को बिठाकर, चोरी चकारी से न्यूज अपेडट करवाकर बैठे ठाले लाखों कमाने लगेंगे। उनको इंवेस्ट करना पड़ेगा नहीं तो जो बचा खुचा है वह भी डूब जाएगा।
इंटरनेट का मिजाज ही पल में तोला पल में माशा वाला है। यहां आज जो बादशाह है, कब उसका नामोनिशान मिट जाएगा, यह कोई नहीं बता सकता। जो यूजर्स को खुश करने के नए नए तरीके निकालेगा, वही टिका रहेगा। वरना कितने आए और कितने चले गए। ऑरकुट, रेडिफ याहू चैट अब बीते जमाने की चीज है। गूगल जी प्लस को इस्टेबलिश नहीं कर पाया। फेसबुक के जुकरबर्ग को भी डर लगा रहता है कि न जाने कब उनका भट्ठा बैठ जाएगा। ऐसे वोलेटाइल मीडियम में हिंदी वेब मीडिया आगे क्या कर पाएगी, इसमें मेरी खासी दिलचस्पी है।
मुझे अहसास हो रहा है कि मंदी की वजह से हिंदी वेब मीडिया इंडस्ट्री में फिलहाल टेंशन भरा माहौल है। अगर यह बिजनेस और मंदा हुआ तो इसका सीधा असर वेब पत्रकारों पर पड़ेगा। नए जॉब क्रिएट नहीं होंगे। नए पत्रकारों की एंट्री मुश्किल हो जाएगी। पुराने पत्रकारों की सैलरी नहीं बढ़ेगी, प्रमोशन नहीं होगा। वह जॉब चेंज नहीं कर पाएंगे। खुदा करे ऐसा कुछ न हो और ये सब महज मेरी कल्पना हो, वहम हो।
यह मेरा अपना आकलन है, हो सकता है आपकी राय कुछ और हो।
लेखक राजीव सिंह युवा पत्रकार हैं. इनसे संपर्क newrajeevsingh@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.