दीपक शर्मा-
इसमें कोई संदेह नहीं कि कुमार विश्वास सेल्फ मेड है। उन्होने खुद पर मेहनत की और बड़ी तेजी से शोहरत और दौलत का बड़ा मकाम हासिल किया। और ये भी सच है कि जिस तरह वे मंच से श्रोताओं को बांधते हैं वो कला उनमें अदभुत है।
वे गीत लिखते हैं, आर्केस्ट्रा के साथ गाते हैं, मंच के सफल संचालक हैं, राम की कथा सुनाते हैं, प्रवचन देते हैं, टीवी शो करते हैं, अखबारों में लेख लिखते हैं, राजनीति में दखल रखते है और आज के टॉप सेलीब्रेटी में उनका नाम शुमार है।
वे कवि के तौर पर पहले भारतीय है जो चार्टर प्लेन से उड़ते हैं, पारा मिलिट्री कमांडो की सुरक्षा घेरे में चलते हैं और हर लग्जरी उनके पांव के नीचे दबी रहती है।
पर उनकी ये बेशुमार दौलत उनको आकर्षक नहीं बनाती। उनका रूतबा और राजनैतिक नेटवर्क भी उन्हे नायक नहीं बनाता। पर हिंदी कविता को जिस तरह उन्होने ग्लैमर दिया। जिस तरह आज की अर्बन क्लास में उन्होने हिंदी को स्थापित करने के प्रयास किये …ये बड़ा काम कुमार साहब ने जरूर किया है।
बहरहाल जो निगेटिव साईड हो सकती है वो संभवता ये है कि कुमार साहब अपने कवि को तो बड़ा करते गये लेकिन खुद को उस अनुपात में बड़ा नहीं कर पाये।पर्सोना में कहीं गैप रह गया जो परसों दिखाई दिया। हो सकता है कुमार साहब मेरी इस बात से सहमत नहीं होंगे।
सच ये है कि परसों के डाक्टर प्रकरण ने उनके किरदार को छांटा है। एक प्रशंसक और शुभचिंतक के नाते इस कांड में उनके स्टैंड को देखकर मुझे दुख हुआ। भले ही गल्ती किसी की रही हो पर कुमार साहब को आगे बढ़कर डाक्टर को लहुलुहान होने से बचाना चाहिये था।
बहरहाल जो हुआ सो हुआ अब बेहतर यही होगा कविराज…आप डाक्टर साहब के घर दीवाली मिलने जाईये, उनसे माफी मांगिये और गले मिलिये।क्या डाक्टर साहब को मनाया नहीं जा सकता है ? झगड़ा आपसे तो हुआ नहीं था ? झगड़ा तो सुरक्षा कर्मियों से हुआ था ? फिर क्या संकोच, आगे बढ़िये !
वैसे भी
याचना नहीं अब रण होगा की मानसिकता से दुनिया कभी बेहतर नहीं होती। Kumar Sahab, come on be a poet in action!