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सियासत

इसलिए लड़के आत्महत्या नहीं करते, लड़कियां कर लेती हैं

प्रत्यूशा की मौत के बहाने : मरने वाली लड़की ही क्यों?

Sanjaya Kumar Singh : मैंने किसानों की आत्महत्या पर नहीं लिखा, डेल्टा मेघवाल की मौत पर भी नहीं लिखा लेकिन प्रत्यूशा बनर्जी की मौत पर लिख रहा हूं। कारण इसी में है फिर भी ना समझ में आए तो उसपर फिर कभी बात कर लेंगे। फिलहाल प्रत्यूशा और उसके जैसी अभिनेत्रियों की मौत के कारणों को समझने की कोशिश करते हैं। जो छोटे शहरों से निकलकर बड़ा काम करती है। शोहरत और पैसा कमाती हैं, सब ठीक-ठाक चल रहा होता है और अचानक पता चलता है कि उसकी मौत हो गई (आत्महत्या कर ली, हत्या हो गई या शीना बोरा की तरह) या गायब हो गई। कारण हर तरह के हैं, होते हैं लेकिन प्रेम संबंध, पति, प्रेमी, आशिक, ब्वायफ्रेंड की भूमिका भी सामने आती है और कुछ मामले खुलते हैं, कुछ नहीं खुलते हैं। मरने वाली बदनाम जरूरी होती है या कर दी जाती है। मीडिया ट्रायल की अलग समस्या है। जो तुरंत बंद होना चाहिए पर वह हमारे हाथ में नहीं है।

प्रत्यूशा की मौत के बहाने : मरने वाली लड़की ही क्यों?

Sanjaya Kumar Singh : मैंने किसानों की आत्महत्या पर नहीं लिखा, डेल्टा मेघवाल की मौत पर भी नहीं लिखा लेकिन प्रत्यूशा बनर्जी की मौत पर लिख रहा हूं। कारण इसी में है फिर भी ना समझ में आए तो उसपर फिर कभी बात कर लेंगे। फिलहाल प्रत्यूशा और उसके जैसी अभिनेत्रियों की मौत के कारणों को समझने की कोशिश करते हैं। जो छोटे शहरों से निकलकर बड़ा काम करती है। शोहरत और पैसा कमाती हैं, सब ठीक-ठाक चल रहा होता है और अचानक पता चलता है कि उसकी मौत हो गई (आत्महत्या कर ली, हत्या हो गई या शीना बोरा की तरह) या गायब हो गई। कारण हर तरह के हैं, होते हैं लेकिन प्रेम संबंध, पति, प्रेमी, आशिक, ब्वायफ्रेंड की भूमिका भी सामने आती है और कुछ मामले खुलते हैं, कुछ नहीं खुलते हैं। मरने वाली बदनाम जरूरी होती है या कर दी जाती है। मीडिया ट्रायल की अलग समस्या है। जो तुरंत बंद होना चाहिए पर वह हमारे हाथ में नहीं है।

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ऐसा लगभग हर क्षेत्र में होता है पर फिल्म और टीवी की दुनिया और उसपर मीडिया की नजर, अभिनेत्री और उसके ब्वायफ्रेंड की लोकप्रियता आदि के मद्देनजर टीआरपी की संभावना ज्यादा रहती है तो फिल्म और टीवी की दुनिया के मामले कुछ ज्यादा ही चर्चित हो जाते हैं। हर बार, मोटे तौर पर अटकल। बात यही होती है प्यार में सताए जाने पर या असफल रहने पर लड़की ने खुदकुशी कर ली और प्रेमी या मित्र को खलनायक बना दिया जाता है। मैं नहीं कह रहा कि ऐसा नहीं होता है पर इसके साथ यह कहना कि शादी से पहले किसी लड़की का लड़के के साथ रहना (लिव इन या वैसे ही मिलना-जुलना, दोस्ती प्रेम जो कह लीजिए) आज की स्थितियों में बुनियादी तौर पर गलत नहीं है।

लड़कियों को नहीं पढ़ाने, अपने पैरों पर खड़े होने योग्य नहीं बनाने की बुराइयां है। सबने देखा है, सब जानते हैं। अब जब आप उन्हें स्वतंत्र बना रहे हैं, अपने पैरों पर खड़े होने लायक बना रहे हैं तो उससे जुड़ी बुराइयां जो हैं सामने आएंगी। आ रही हैं। उनसे निपटना होगा। उनसे उसी हिसाब से लड़ना होगा। उसके लिए वैसे ही उपाय करने होंगे। ये नहीं चलेगा कि लड़की गर्भवती हो गई इसलिए आत्महत्या करना जायज है या लिव इन में रहती थी इसलिए उसे गर्भवती बनाने वाला ही दोषी है या नहीं दोषी है – इस पर बात होनी चाहिए, खुलकर होनी चाहिए वरना लड़कियों को घरों में बंद रखिए, 16-18 साल में शादी कर दीजिए, जैसी किस्मत होगी वैसा जीवन जीएंगी। और पति मर जाता था तो लोग सती भी बना ही देते थे। उसे भी जायज और सही मान लीजिए।

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जाहिर है अब यह सब नहीं होने वाला। तो परिवार से दूर, महानगरों में अकले रहने वाली लड़कियों की जरूरतों के बारे में सोचिए। उसे अकेले रहने योग्य बनाइए। ऐसी लड़कियों के लिए किसी पुरुष साथी की अनिवार्यता है। अगर आप इसे अनिवार्य न मानें तो यह एक सुविधा की तरह तो है ही। और ना सभी लड़के एक जैसे होते हैं और ना सभी लड़कियां एक जैसी हो सकती हैं। इसलिए अलग मामलों में घटना, परिस्थिति और पात्रों के अनुसार बात होनी चाहिए। जनरलाइज नहीं किया जाना चाहिए। अगर ऐसे मामलों में आप लड़कों को दोषी मानते हैं तो शीना बोरा के मामले को याद कीजिए। उसके तो प्रेमी के कारण ही हत्या का राज खुला वरना मारने वाले तो वो हैं (संभवतः) जिनपर किसी को शक ही नहीं था।

मरने वाली लड़की ही क्यों?

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इसका जो कारण मुझे समझ में आता है वह यही है कि अपने यहां लड़कियों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने की अवधारणा ही नहीं है। लड़कियां आम तौर पर पिता के करीब होती हैं और पिता से जिन विषयों पर बात होती है उसकी सीमा है। ऐसे में जब वे फंसती हैं तो उनकी परेशानी शेयर करने वाला कोई नहीं होता। खासतौर से जब मामला ब्वायफ्रेंड का हो। मां ऐसे मामलों में उतनी ही कमजोर होती है जितनी खुद लड़की। मैं तो कहूंगा कि लड़की मजबूत भी हो तो मां उसे कमजोर कर दे। दूसरी ओर, लड़के प्राकृतिक तौर पर भावनात्मक रूप से मजबूत होते हैं। मित्रों से समस्याएं आराम से साझा कर लेते हैं जबकि लड़कियां बातें चाहें जितनी करें समस्याएं साझा नहीं करतीं। लड़कियों को मजबूत बनाया जाना चाहिए ताकि वे भावनात्मक संकट झेल सकें। और यह काम पिताओं का ही है।

लड़किया कमजोर होती हैं, जल्दी टूट जाती हैं या उन्हें मार देना अपेक्षाकृत आसान होता है। मां-बाप मुद्दा नहीं बनाता कि हमारी बदनामी होगी। जिस दिन लड़की का पिता कहेगा कि हां, मेरी बेटी उसके साथ बिना ब्याहे रहती थी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वो हमारी बेटी की हत्या कर दे या आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दे – उस दिन सब कुछ बदल जाएगा। औऱ वो दिन दूर नहीं है। पहले तो आत्महत्या के मामले उतने नहीं हैं जितने लिव इन रिलेशनशिप के हैं। लड़कियां अगर लिव इन में रहती है तो इसके कारण हैं। हम उन कारणों पर न जाकर सिर्फ लड़कियों से अपेक्षा करें कि वे ऐसा न करें और लड़कियों की उन जरूरतों को पूरी करने वाले पुरुषों को चरित्रहीन करार दें – तो समस्या हल नहीं होने वाली है। आखिर हर बार लड़की ही आत्महत्या क्यों करती है? क्यों नहीं कोई लड़की कहती है कि इसने शादी करने का झांसा देकर मेरे साथ अमुक मनमानी की और अब चाहता है कि मैं आत्महत्या कर लूं।

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दरअसल समाज में यौन संबंध बनाना लड़की के लिए ही बुरा माना जाता है और इस कथित शर्म को झेलने की हिम्मत लड़कियों में भी नहीं होती है। इसीलिए वे आत्महत्या करने को मजबूर होती हैं। अपवाद छोड़ दें तो क्या लिव इन में रह चुकी लड़की के आशिक की मौत के बाद कोई लड़की से शादी कर लेगा और लड़के का कुछ बिगड़ेगा? यहां मैं यह भी कहूं कि लिव इन में रहना, यौन संबंध बनाना और गर्भवती हो जाना अलग-अलग चीजें हैं। यौन संबंध बनाने के बाद भी गर्भ न रहे इसके ढेरों उपाय हैं फिर भी अगर लड़की गर्भवती हो गई और नहीं चाहती थी तो वह अकेले दोषी है। यौन संबंध बनाना तो सोचा समझा निर्णय हो सकता है पर इससे गर्भ धारण का खतरा है और उससे बचने के उपाय करना मुख्य रूप से लड़की की ही जिम्मेदारी है (अगर वह गर्भवती नहीं होना चाहती है)।

पढ़ी-लिखी अच्छा कमाने वाली लड़की अगर आत्महत्या कर लेती है तो कारण यही समझ में आता है कि लड़कियां कमजोर होती हैं, बेटी विवाहपूर्व गर्भवती हो जाए तो शर्मिन्दा होते हैं कहते हैं कि मर क्यों नहीं गई जो ये दिन देखने पड़े, बेटे पर बलात्कार का आरोप लगे तो उसे बचाने की पूरी कोशिश करते हैं। इसलिए लड़के आत्महत्या नहीं करते लड़कियां कर लेती हैं।

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सेक्स बंद कमरे में किया जाता है और निहायत ही निजी मामला है। ऐसे मे समलैंगिकता को कानून बनाकर नहीं रोका जा सका। यही स्थिति वेश्यावृत्ति के मामले में है। अगर वेश्यावृत्ति को जायज बनाने की मांग हो सकती है तो सेक्स इतना हौव्वा क्यों है। अवैध ढंग से वेश्यावृत्ति जारी रहने से महिलाएं परेशान हैं और पुरुषों का काम चल रहा है। हमारे यहां औरतों के बारे में ना सोचा जाता है और ना ऐसे विषयों पर बात होती है। इसलिए ऐसे ही चलता रहेगा और महिलाएं पिसती रहेंगी। जबकि वेश्यावृत्ति को कानूनी जामा पहना देने से इस तरह की समस्या दूर हो सकती है। हालांकि यह अलग मुद्दा है।

लेखक संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका यह लिखा उनके फेसबुक वॉल से लेकर भड़ास पर प्रकाशित किया गया है.

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