खुला खत श्री हेमंत तिवारी जी के नाम
महोदय,
आपको सदैव अग्रज कहकर संबोधित किया लेकिन आपने अग्रज-अनुज के पवित्र रिश्तों को भी तिजारत का हिस्सा बना दिया इसलिए इस संबोधन से परहेज किया है. आपने एक चुनाव एक समिति का पुरजोर समर्थन किया है. लिखा है कि दो चुनाव होने पर आप नहीं लड़ेंगे, पर क्या कभी आपने खुद के अंतर्मन को टटोलने की कोशिश की कि ये दो चुनाव होने की नौबत ही क्यों आई, क्यों आज हर पत्रकार साथी अपनी बिरादरी की हालत व हालात को लेकर बेहद चिंतित है… ये पंक्तियां आप चरितार्थ कर रहे हैं—“ मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है क्या मिरे हक़ में फ़ैसला देगा”
…तो श्रीमान आप स्वयं कभी एकांत में बैठकर चिंतन करेंगे तो पाएंगे कि राजधानी की पत्रकारिता के सरोकार व साख के अवसान में आपने अहम किरदार निभाया है. आप द्वारा ऐनकेन प्रकारेण अपनी जीत सुनिश्चित करने की हॉबी ने अति सम्मानित उप्र मान्यता प्राप्त पत्रकार समिति को इस कदर कलंकित कर दिया है कि कोई भी पत्रकार इसका हिस्सा बनने से कतराता है. दरअसल, आप महाभारत के शकुनि के मानिंद छल-षड्यंत्र-प्रपंच के महारथी हैं.
कहते हैं कि वस्तुओँ का इस्तेमाल होता है और रिश्तो को संजोया जाता है पर आपने उलट परिपाटी की नींव रखी जहां वस्तुओँ को आपने संजोया और रिश्तों का जमकर इस्तेमाल किया. अपनी स्थिति कमजोर होने पर घड़ियाली आंसू बहाकर इमोशनल कार्ड चलकर आप सामने वाले के जज्बातों पर काबू पा लेने की कला में माहिर हैं. आपको ग्यारह वर्ष पूर्व की उस बैठक की याद होगी जहां आप के कृत्यों की हम सबने भरपूर निंदा की थी लेकिन आपने आंसूओँ के ब्रह्मास्त्र से हमारी संस्कारगत कमजोरियो का फायदा उठाया.
बीते दौर में हुए दो चुनाव में एक में मुझे भी चुनाव अधिकारी बना दिया गया था ये कहा गया कि एका की कोशिशें हो रही हैं पर चूंकि आप द्वारा निर्मित किसी भी चुनावी कमेटी को स्वयं से निर्णय लेने का हक होता ही नहीं है लिहाजा मैंने क्षोभ जताते हुए कमेटी से हटने का ऐलान कर दिया साथ ही दोनों चुनाव में से किसी में भी हिस्सा लेने से इंकार कर दिया. आप हर दफे शपथ व कसमें खाते हुए अंतिम चुनाव लड़ते आए हैं.
बहरहाल, ये पत्र आपके हालिया हृदय परिवर्तन के दांव को देखते हुए लिख रहा हूं तो आपको अवगत करा दूं कि हर कोई इस समिति को आपकी जेबी संस्था के स्वरूप से मुक्त देखना चाहता है ऐसे में मेरे जैसे तमाम साधारण पत्रकार भी मुखर होने को तत्पर हुए. मुझे भलीभांत ज्ञात है कि आप अपने विरुद्ध आने वाले किसी भी शख्स पर साम-दाम-दंड-भेद के अस्त्रों का भरपूर इस्तेमाल करने में माहिर हैं. बिलो द बेल्ट हमला करने-चारित्रिक हनन से लेकर न जाने कितने धूर्त-पाखंडी हथियार आपकी तरकश में मौजूद हैं.
पर श्रीमान आपके संज्ञान में ला देना चाहता हूं कि मैं अपने सभी वरिष्ठों के आशीर्वाद-साथियो के स्नेह- अनुजों की असीमित उर्जा एवं पूर्ण नैतिक बल के साथ हर प्रकार की जांच हर प्रकार के हमले हर प्रकार के आक्षेप-आरोप-प्रत्यारोप का हंसते मुस्कराते डंके की चोट पर सामना करने के लिए तत्पर हूं. मैं ये सब इसलिए लिख पा रहा हूं कि हम अति साधारण लोग भले ही कूटनीति-छलनीति में माहिर न हों लेकिन अपने अंतर्मन की पीड़ा व क्षोभ को व्यक्त करने का साहस दुस्साहस की हद तक अवश्य रखते हैं.
दरअसल आप तिकड़म इस्तेमाल करके दांवपेंच लगाकर जीत तो तय कर लेते आए हैं पर आप की हर जीत पत्रकारिता की हार का सबब बनी है. पत्रकारीय साख व सम्मान रसातल की ओर अग्रसरित होती जा रही है.
आपसे करबद्ध विनम्र निवेदन है कि वरिष्ठों के एतराज-युवा साथियों के आक्रोश के संग ही एकबारगी अपनी आत्मा की आवाज भी सुनें और अपने चंगुल से अब पत्रकारिता की साख-सम्मान-सरोकार को मुक्त करने की दिशा में विचार करें. रही बात मेरी तो मेरे लिए पत्रकारीय सरोकार-साख-सम्मान की हिफाजत के लिए एक नहीं लाखों चुनाव कुर्बान हैं.
ज्ञानेन्द्र शुक्ला
कलमकार, लखनऊ