Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

लाकडाउन में नाई तलाश रहे शीतल सिंह की हजामत हेमंत शर्मा ने यूं बनाई, देखें तस्वीर

Hemant Sharma : लॉकडाऊन साहित्य… शीतल, शीतला परसाद सिंह ,शीतला निषाद और अब शीतल पी सिंह ये एक ही आदमी के चार नाम हैं। इनके पीछे घटनाओं और दुर्घटनाओं दोनो का मिलाजुला सिलसिला है। शीतल हमारे 33 वर्ष पुराने मित्र हैं। गहरे यारबाज सुल्तानपुर के कादीपुर में जन्मा शीतला प्रसाद सिंह जब वामपंथी हुआ तो जाति से नाता तोड़ने के लिए शीतल हो गया। उस वक्त शीतल की आंखों में मार्क्स और माओ दोनों एक साथ दिखाई देते थे। फिर साल 1989 में शीतल ने जब चुनाव लड़ा तो जनता ने शीतला निषाद बना दिया। इसकी कहानी बाद में बताऊंगा।

फिलहाल कॉमरेड शीतल सिंह के वर्तमान पर फोकस करते हैं। तो कॉमरेड शीतल लॉक डाउन में परेशान थे। उन्हें कोई बाल बनाने वाला और हजामत करने वाला नहीं मिल रहा है। लेनिन के भीतर साल 1917 की क्रांति के प्रति जो छटपटाहट मौजूद थी, कॉमरेड शीतल के भीतर भी नाई की तलाश में उससे कम छटपटाहट नही दिख रही थी। नाई ढूँढते ढूँढते बाबूसाहब को लगा की सारे शर्मा नाई होते हैं। सो उन्होंने मुझे फोन किया। नाई नहीं मिल रहे है। क्या करूँ इस लॉकडाऊन में सभी अपने अपने पुराने प्रोफ़ेशन में लौट रहे हैं। आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर फिर से अपने पुराने पेशे डॉक्टरी में उतर आए हैं। स्वीडन की राजकुमारी सोफिया संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटीं क्योंकि वे डॉक्टर हैं। मॉडलिंग छोड़ कर भाषा मुखर्जी ब्रिटेन में मरीजों का इलाज कर रहीं है। क्यों कि वह पेशे से डॉक्टर रह चुकी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसलिए अब तुम्हीं कुछ मदद करो। अपने पुराने प्रोफ़ेशन में लौटो। मैंने कहा मैं तो काशी का कर्मकाण्डी ब्राह्मण हूँ।पर तुम कह रहे हो तो कुछ करता हूँ। मैंने उनसे कहा मैं भी लोगों की हजामत बनाने का काम 35 वर्ष से कर रहा हूं। बस उस्तरे का काम कलम से लेता आया हूं। तो आओ आज मैं ही तुम्हारी हजामत बनाता हूं।

यारों के इस यार शीतल की निजी समस्याए मैं हमेशा से हल करता रहा हूँ।तो उन्हे मैंने उन्हें अपने दफ्तर बुलाया। मैंने उनके बाल काटे। कैंची ने एकदम सही काम किया और कुछ ही देर में शीतल टिपटाप होकर आईने के सामने थे। शीतल के चेहरे पर वही प्रसन्नता दौड़ रही थी जो चीन में माओत्से तुंग के चेहरे पर तिब्बत को कब्जाने के बाद दौड़ी थी। शीतल बेहद खुश हुए। मुझसे बोले, ‘वाह, तुमने अपना शर्मा नाम सार्थक कर दिया।’

Advertisement. Scroll to continue reading.

शीतल और मैंने करियर लगभग साथ साथ शुरू किया था। वह चौथी दुनिया में थे, मैं जनसत्ता में। विचार से मैं कभी उनसे सहमत नहीं था, लेकिन दोस्त वह बेजोड़ हैं।शीतल पैदा हुए सुल्तानपुर में पर पढ़ाई लिखाई बुन्देलखण्ड में हुई।इसलिए उनकी रगों में बग़ावत है।पढ़ाई के बाद अमर उजाला ,चौथी दुनिया, इण्डिया टूडे और कई पत्रिकाओं से होते बाबूसाहब आजकल शीतल पी सिंह है। ये बात शीतल के कालेज के दिनों की है। एसएफआई में रहते हुए शीतल महंगी शिक्षा और सब को काम के मसले पर लखनऊ प्रदर्शन के लिए आ रहे थे। उस वक्त का एक बेहद चर्चित नारा था जिसमें शिक्षा की फीस और तमाम बेसिक जरूरतों के साथ उपसर्ग के तौर पर “मुफ्त हो, मुफ्त हो” जुड़ता था। मसलन किसी ने अगर कहा कि पढ़ाई लिखाई, तो साथ में दर्जनों आवाजें जोर से गरजतीं थीं- “मुफ्त हो, मुफ्त हो। उसी प्रदर्शन के दौरान जब उनकी बस लखनऊ के बर्लिंगटन चौराहे तक पहुंची तो वहां डॉक्टर जैन की क्लीनिक का बोर्ड लगा हुआ था।उन दिनो डॉक्टर जैन गुप्त रोगों के मशहूर चिकित्सक माने जाते हैं। उसी वक्त किसी बदमाश साथी ने नारा लगाया गुप्त रोगों का इलाज और बदले में जोरों की आवाजें उठना शुरू हो गईं- मुफ्त हो, मुफ्त हो। इसके बाद शीतल ने वामपंथी राजनीति से तौबा कर लिया।

मेरी उनकी पहली मुलाकात विश्वनाथ प्रताप सिंह के इलाहाबाद उपचुनाव में साल 1987 में हुई। और तब से दोस्ती गाढ़ी होती चली गयी। जनता दल कवर करते करते वे जनता दल की राजनीति करने लगे। इसी दौरान शीतल पर चुनाव का भूत चढ़ा। साल 1989 में लोकसभा का चुनाव हुआ और साथ ही यूपी विधानसभा का भी चुनाव हुआ। शीतल चुनाव लड़ना चाहते थे। दिल्ली में हम उनकी टिकट की जुगत में थे। शीतल ने सुल्तानपुर के जयसिंहपुर से पर्चा भर दिया।इस उम्मीद में की सिम्बल मिलेगा।पर वहां आखिरी समय तक सिंबल का निर्धारण नहीं हो पा रहा था। ऐसे में शीतल सिंबल की खातिर दिल्ली आए। पर उन्हें टिकट नहीं मिला। अब शीतल के पास वक्त भी नहीं बचा था कि वापिस जाकर पर्चा वापस करें। सो बैलट पेपर में शीतल बतौर निर्दलीय उम्मीदवार दर्ज हो गए। उन्हें नाव चुनाव चिन्ह मिला। संयोग से लोकसभा का चुनाव भी निषाद पार्टी से एक निषाद लड़ रहा था। उसका चुनाव चिन्ह भी नाव था। सो सुल्तानपुर की जयसिंहपुर विधानसभा में नारा लगा, ऊपर निषाद-नीचे निषाद। ये नारा लोकसभा और विधानसभा दोनो में निषाद पार्टी के कैंडीडेट को वोट देने की खातिर था। नाव का चुनाव चिन्ह इस वोटबैंक का प्रतीक बना। चुनाव हुआ और शीतल 6000 वोट पा गए। वो भी बिना गए, बिना प्रचार किए और ये बात छुपाते हुए कि वे चुनाव में उम्मीदवार हैं। जबकि कांग्रेस उम्मीदवार को सिर्फ साढ़े चार हजार वोट मिले। तो यह है शीतल सिंह के शीतला निषाद बनने की कहानी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसके बाद बाबू शीतल सिंह पर व्यवसाय का भूत सवार हुआ। कादीपुर में अपने घर के पास उन्होंने पोल्ट्री फार्म खोला। बहुत बड़ा पोल्ट्री फॉर्म, वह भी चाइनीस टेक्नोलॉजी से जिसमें मुर्गी के अंडा देने के बाद बिना हाथ लगे वह पैक भी हो जाता था। एक लाख अंडे प्रति दिन के उत्पादन वाला यह पोल्ट्री फॉर्म उस इलाके में नाम कमाने लगा। रोज बिकने से जो अंडे बच जाते थे, उसके लिए शीतल सिंह ने वहीं एक एग बैंक भी बना दिया। मैंने शीतल से कहा कि तुम हिंदी के पत्रकार हो, अंग्रेजी का इस्तेमाल क्यों करते हो? ‘एग बैंक’ को हिंदी में लिखो, ‘अंडकोष’। शीतल ने मेरी बात मान ली। एग बैंक की जगह अंडकोष लिखा गया। उसके लिखने से बिक्री पर असर पड़ा और शीतल सिंह को अपना मुर्गी फ़ार्म किसी और को किराए पर चलाने के लिए देना पड़ा।

शीतल से मेरी वैचारिक लिहाज़ से बुनियादी असहमति रही है। शीतल सिंह ने मुझसे कई बार कहा कि तुम तो दक्षिणपंथी हो, तुम्हें वामपंथ को पढ़ना चाहिए। मैंने उनसे कहा कि मैंने वामपंथ को पढ़ा है। उन्होंने आश्चर्य से पूछा कि किसे पढ़ा है? मैंने नाम लिया कि मेरे शहर के सुदामा पाण्डेय धूमिल। शीतल बहुत खुश हुए। बोले कि यह तो बहुत मशहूर वामपंथी कवि हैं। शीतल ने आगे पूछा कि उनका क्या पढ़ा है? मैंने कहा कि धूमिल की नक्सलबाड़ी कविता पढ़ी है जिसमें उन्होंने लिखा है-

Advertisement. Scroll to continue reading.

“आदमी दाएं हाथ की नैतिकता से
इस कदर मज़बूर होता है
कि तमाम उम्र गुज़र जाती है
मगर गॉं…. सिर्फ बायाँ हाथ धोता है”

शीतल ने इसके बाद मुझे कभी वामपंथ पढ़ने के लिए नहीं कहा। शीतल सिंह सखा हैं। बहुत ही गर्मजोशी से भरे इंसान हैं। बेहद ही खुशमिजाज आदमी। विचारों के धनी। उनके साथ बहुत पुराना याराना है। सो वक्त की तहों मे समाई ऐसी बहुत सी पुरानी कहानियां हैं। फ़िलहाल उनकी हजामत मैंने बना दी है। इसी बहाने उन पुराने दिनों की यादें ताज़ा हुई।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बॉंया चित्र ताज़ा है और दूसरा बत्तीस बरस पुराना चित्र तब एनडी तिवारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।

लेखक हेमंत शर्मा जनसत्ता और इंडिया टीवी के बाद इन दिनों टीवी9 भारतवर्ष से जुड़े हुए हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement