सुरेश चिपलूनकर-
जैसे-जैसे बातें खुलकर सामने आ रही हैं, वे हैरान करने वाली हैं…
१) तेज हवा में उड़ी मूर्तियों के अंदर लोहे के सरिये नहीं थे… स्टील भी घटिया था… उनके भीतर हवा का दबाव सहने के लिए फोम डाला जाता है, वो भी नहीं था, खोखली थीं…

२) टूरिज्म के अफसरों ने इनकी क्वालिटी पर आपत्ति ज़ाहिर की थी, लेकिन मोदी को उदघाटन के लिए बुलाने की इतनी जल्दी थी कि सारी आपत्तियां दरकिनार कर दी गईं…
३) गुजरात की जिस कम्पनी को मूर्तियाँ बनाने का ठेका मिला था, उसे ये काम करने का कोई पूर्व अनुभव नहीं है… फिर भी उससे “केवल दस वर्ष” की गारंटी ली गयी… यानी टेंडर जारी करने वालों को पहले से मालूम था कि ये मूर्तियाँ दस साल में बर्बाद होने ही वाली हैं…
४) इस दुष्कृत्य और भ्रष्टाचार का बेशर्मी से बचाव करने वाला झंडू जगत अब कह रहा है कि ये मूर्तियाँ टेम्परेरी थीं, इनके स्थान पर पत्थर की लगने वाली हैं… जबकि कल से विभिन्न लोगों का दबाव आने के बाद कलेक्टर ने कल कहा कि “अब” हम पत्थर की मूर्तियाँ बनाएंगे… और उसमें कम से कम पांच साल लगेंगे…
नोट :- भाजपा के भीषण भ्रष्टाचार को ढँकने के लिए नमोंडों की फ़ौज सोशल मीडिया पर जिस तेजी और तत्परता से आगे आती है, वह देखकर लगता है कि इन लोगों के लिए “हिन्दुत्व” एक मजाक भर है…
केवल दो मिनट के लिए सोचकर देखिये… यदि कांग्रेस के शासनकाल के दौरान महाकाल कॉरीडोर में आंधी से मूर्तियाँ टूटी होतीं… तो सोशल मीडिया पर कैसा “कैबरे” हो रहा होता?? और वर्तमान में इसका कैसा फूहड़ बचाव चल रहा है…
इसी तुलना से आप समझ जाएंगे कि “ब्रेनवाश” क्या होता है और “बंधुआ मजदूर” किसे कहते हैं… और सबसे बड़ी बात, “हिंदुत्व” का झंडा उठाए हुए तमाम फर्जियों और नकलियों की क्या औकात है…
हम करें तो चमत्कार… और कांग्रेस करे तो…