बसपा एमएलसी महमूद अली, पूर्व एमएलसी हाजी मोहम्मद इकबाल और पार्टनर सौरभ मुकुंद के आवास पर वित्तीय अनियमितताओं की जांच को पहुंची ईडी की टीमें
ईडी के छापों को हाथरस गैंगरेप कांड से भी जोड़कर देखा जा रहा है। इसे तूल देने के लिए पीएफआई को एक खनन कारोबारी द्वारा फंडिंग करने की खुफिया रिपोर्ट राज्य सरकार को मिली थी। हालांकि अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है।
सहारनपुर। खनन कारोबारी बसपा के एमएलसी महमूद अली और उनके बड़े भाई ग्लोकल यूनिवर्सिटी के चांसलर पूर्व एमएलसी हाजी मोहम्मद इकबाल के मिर्जापुर पोल स्थित संयुक्त आवास पर बुधवार को ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) के अफसरों की टीमों ने छापा मारकर वित्तीय अनियमितताओं की जांच पड़ताल की। इन्हीं के एक पार्टनर सौरभ मुकुंद के साउथ सिटी स्थित आवास पर भी जांच की गई।
ईडी की यह कार्रवाई यूपी की मायावती सरकार में 2010-11 में कौड़ियों के दामों में बेची गई राज्य चीनी निगम की 21 चीनी मिलों में संदिग्ध लेनदेन को लेकर बताई जा रही है। दरअसल इनमें से करीब 11-12 चीनी मिलें हाजी इकबाल और उनसे जुड़े लोगों की कंपनियों द्वारा खरीदे जाने के आरोप लगे थे। समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार में भी इन आरोपों की कोई जांच नहीं हुई थी।
जिले के बरथा कायस्थ गांव के निवासी एक अन्य कारोबारी रणवीर सिंह ने अपने एनजीओ के माध्यम से इसकी शिकायत केंद्र और राज्य सरकारों से की थी, जिसमें हाजी इकबाल की 113 मुखौटा कंपनियों की जांच की मांग प्रमुख थी। 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तो इस पर कुछ एक्शन शुरू हुआ, लेकिन 2017 में यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद इस मामले की जांच सीबीआई से कराने का राज्य सरकार ने फैसला किया था।
उधर, केंद्र के निर्देश पर ईडी, एसएफओ (सीरियस फ्रॉड आफिस) और आयकर विभाग ने इन चीनी मिलों की खरीद में संदिग्ध लेनदेन की जांच पहले से शुरू कर रखी थी, जिसमें योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद तेजी आई। उक्त 113 मुखौटा कंपनियों में से ही कुछ कंपनियों का इस्तेमाल चीनी मिलों को खरीदने और कालेधन को सफेद करने में प्रयोग किए जाने के आरोप भी लगे थे। कुछ चीनी मिलें पोंटी चड्ढा ग्रुप ने भी खरीदी थीं।
आरोपों के मुताबिक इन मुखौटा कंपनियों में हाजी मोहम्मद इकबाल, उनके भाई, बेटे, कारोबारी साझीदार और नौकर-चाकर निदेशक हैं। ईडी ने इन कंपनियों के माध्यम से मनी लांड्रिंग, एसफओ ने संदिग्ध लेनदेन, आयकर विभाग ने वित्तीय अनियमितताओं और सीबीआई ने चीनी मिलों की खरीद फरोख्त में धोखाधड़ी की जांच शुरू कर रखी है। एकसाथ इतनी जांच शुरू हो जाने के बाद इन कंपनियों के अधिकांश निदेशक भूमिगत हो गए और कुछ सरकारी गवाह बन गए। हालांकि आरोपों के मुताबिक हाजी इकबाल की इन कंपनियों में प्रत्यक्ष संलिप्तता की जांच में पुष्टि ठीक उसी तरह नहीं हो पाई, जिस तरह से खनन कारोबार में प्रत्यक्ष रूप से हाजी इकबाल के शामिल होने का कोई दस्तावेजी सुबूत नहीं मिल पाया।
यह जगजाहिर है कि अप्रत्यक्ष रूप से सभी मामलों में निर्णय हाजी इकबाल का ही चलता रहा है। दिन भर चली ईडी की कार्रवाई के अभी परिणाम आना बाकी हैं और मुखौटा कंपनियों में जुड़े रहे लोगों में कार्रवाई को लेकर हड़कंप मचा है। पिछले हफ्ते ही एमएलसी महमूद अली और उनके पार्टनर अमित जैन के खिलाफ डीएम सहारनपुर डीएम ने 50-50 करोड़ रुपये की आरसी जारी की थी। 2013 में अवैध खनन के मामले की सरदार गुरप्रीत सिंह बग्गा ने एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) में शिकायत की थी।
सुनवाई के बाद एनजीटी ने 18 फरवरी 2016 को 13 खनन कंपनियों के खिलाफ शिकायत को सही पाया और इनके पांच साझीदारों एमएलसी महमूद अली एमडी, विकास अग्रवाल, अमित जैन, मोहम्मद इनाम और वाजिद अली के अलावा चौधरी स्टोन क्रेशर पर 50-50 करोड़ रुपये का आर्थिक दंड लगाया था, जिसके खिलाफ चौधरी स्टोन क्रेशर के स्वामी और तीन अन्य ने सुप्रीम कोर्ट से राहत ले ली। लेकिन एमएलसी महमूद अली और अमित जैन को कोई राहत नहीं मिली तो डीएम ने पिछले सप्ताह ही इन दोनों से 50-50 करोड़ रुपये की वसूली के लिए सदर और बेहट तहसीलदारों को आरसी जारी कर दी। हालांकि इस मामले में एमएलसी महमूद अली का कहना है कि रिकवरी के खिलाफ उनके पास इलाहाबाद हाईकोर्ट से स्थगन आदेश है और जिला प्रशासन हाईकोर्ट के आदेशों के विपरीत रिकवरी की कार्रवाई कर रहा है।
बुधवार को ईडी की कार्रवाई के बाद यह साफ हो गया है कि हाजी इकबाल के परिवार और उनके पार्टनरों के खिलाफ भविष्य में कार्रवाई और तेज होगी। मिर्जापुर पोल स्थित जिस जमीन पर हाजी इकबाल ने ग्लोकल यूनिवर्सिटी बना रखी है, उसे लेकर भी कई आरोपों की जांच प्रशासनिक स्तर पर हुई और इसमें भी भविष्य में कार्रवाई की संभावनाएं हैं। अवैध खनन के मामले में सीबीआई टीमें पिछले साल जांच शुरू कर चुकी है और इनमें भी कार्रवाई की उम्मीद है।
उधर, पूर्व एमएलसी हाजी इकबाल ने ईडी डायरेक्टर, पीएम, फाइनेंस सेक्रेट्री को मेल कर साजिश रचने की बात कही है। मेल में कहा गया कि गाड़ियों के अंदर पहले से ही 3 से 4 बैग लाए गए थे जिनको मेरे यहां प्लांट कर बरामदगी दिखाने की साजिश रच सकते हैं। जबकि इन मामलों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट से हमने स्टे लिया हुआ है और इसमें हमारे बयान भी हो चुके हैं जिस तरह से मेरे घर में घुसने से पहले ही कैमरे और दरवाजे तोड़ दिए, मीडिया को अंदर नहीं आने दिया गया, यह किसी साजिश का हिस्सा है।
क्या है चीनी मिलों का क्रय-विक्रय घोटाला
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बसपा प्रमुख मायावती के शासन काल 2010-11 में हुए 21 चीनी मिलों की बिक्री में 1179 करोड़ के कथित घोटाले के आरोप हैं। चीनी मिलों नीलामी के पहले जिलों के अधिकारियों ने चोरी छिपे इनका वैल्यूवेशन कराया और स्क्रैप में रूप में मशीनरी ले जाने में मदद की। इनमें 10 मिले तो चल रही थी जबकि 11 बंद थी। मिलों को खरीदने के लिए कई कंपनियों पर गलत तरीके से अपनी बैलेंसशीट तक प्रस्तुत करने का भी आरोप है।
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार शासन के दबाव का चीनी मिलों की बिक्री में बेजा इस्तेमाल किया गया। असली कीमत के 10वें और 15वें हिस्से में इन्हें बेचा गया। कई चीनी मिलों में मौजूद चीनी और शीरे की कीमत भी चीनी मिलों की आंकी और बेची गई कीमत से अधिक थी। चीनी मिलों की भूमि के अलावा संयंत्र, मशीनरी, भवनों, चीनी गोदामों के साथ आवासीय परिसरों एवं अन्य अचल संपत्तियों के मूल्यांकन में बड़े पैमान पर मनमानी की गई। कीमत के निर्धारण में विना वजह 25 प्रतिशत की छूट प्रदान की गई।
भूमि के राजस्व रेट को भी अनदेखा किया गया। इस कारण स्टांप ड्यूटी में भी सरकार को काफी क्षति उठानी पड़ी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 12 अप्रैल को सीबीआई को 21 चीनी मिलों की बिक्री और इसमें इस्तेमाल की गई फर्जी कंपनियों और दस्तावेजों की जांच के लिए सौंपा था।
मायावती सरकार के पूर्व मंत्री और उनके करीबी सहयोगी रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने आरोप लगाया था कि चीनी मिलों को उस समय की मुख्यमंत्री मायावती और बीएसपी के महासचिव सतीश मिश्रा के निर्देशों पर बेचा गया था। हालांकि मायावती ने दावा किया था कि चीनी मिलों के लिए बिक्री का आदेश सिद्दीकी ने जारी किए थे। नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बाद में बीएसपी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।