फिलहाल नमस्ते..! माखनलाल राष्ट्रीय संचार एवं पत्रकारिता विवि. के रीवा परिसर के प्राध्यापक और प्रभारी के दायित्व का नाता फिलहाल अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। अनुबंध इतने दिनों तक के लिए ही था। शुभ सूचना यह कि रीवा परिसर में इस वर्ष से एमए पत्रकारिता की कक्षाएं भी शुरू होंगी, जिसमें कोई भी स्नातक एडमिशन ले सकता है। यद्यपि बीएएमसी (स्नातक) को विवि. के नए प्रशासन ने जीरो इयर घोषित कर दिया है..यानी कि फर्स्ट इयर में शून्य एडमिशन।
दुखद सूचना यह कि रीवा में विश्वविद्यालय के भव्य परिसर को 18 महीने के भीतर बनकर लोकार्पित होना था उसका निर्माण कार्य भी अनिश्चित काल के लिए रोक दिया गया। दुर्योग ही है, ‘ऊपर’ के निर्देश पर निर्माण एजेंसी हाउसिंग बोर्ड ने 8 जुलाई को काम बंद करने का आदेश दिया, पिछले वर्ष इसीदिन आधारशिला रखी गई थी। ढ़ाँचागत निर्माण तीन चौथाई तक हो चुका है। जमीन क्रय समेत अब तक लगभग 35 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।
पत्रकारिता और जनसंचार का एक उत्कृष्ट संस्थान रीवा में हो इसकी साध तभी से थी जब मैं जबलपुर विवि. से 1983 में पहले बैच का पत्रकारिता स्नातक होकर निकला, और बीएचयू स्नातकोत्तर करने गया। क्योंकि मेरा मानना है कि प्रशिक्षण संस्थान व्यक्ति को निश्चित ही कौशल और वृत्तिगत संस्कार देते हैं।
रीवा में पत्रकारिता-जनसंचार के उत्कृष्ट संस्थान की परिकल्पना को साकार करने का काम श्रीराजेन्द्र शुक्ल ने किया जब उनके पास जनसंपर्क विभाग था। संभाग भर के पत्रकार साथियों को याद होगा कि 30 मई 2015 को राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर रीवा के सेलीब्रेशन होटल में एक समारोह में जनसंपर्क मंत्री होने के नाते श्री शुक्ल ने पत्रकारों की इस अभिलाषा को पूरा करने का संकल्प लिया था।
रीवा परिसर हेतु प्रशासन ने प्राइमेस्ट लोकेशन की जमीन विवि. को उपलब्ध कराई। प्रथम चरण हेतु माखनलालविवि. की सामान्य महासभा ने 60 करोड़ स्वीकृत कर इस हेतु राशि अलग से आरक्षित रखी थी। दूसरे चरण में 40 करोड़ का प्रावधान है। उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए यशस्वी संपादक व तत्कालीन कुलपति श्री जगदीश उपासने ने कहा था- लगभग 100 करोड़ रु. की लागत से निर्माणाधीन पत्रकारिता एवं जनसंचार का यह संस्थान बनने के बाद अध्यापन व संसाधनों की दृष्टि से प्रदेश में सर्वश्रेष्ठ होगा।
रीवा कभी प्रदेश का सबसे बड़ा शैक्षणिक केंद्र था..भोपाल से भी आगे। अस्सी के दशक से इसपर ग्रहण लगना शुरू हुआ, आज कहीं गिनती में ही नहीं। हमारे बच्चे पढ़ने के लिए भोपाल-इंदौर-दिल्ली में एड़ियाँ रगड़ते हैं। कोई बीए, बीएससी-बीकॉम करना है उसके लिए भी मुश्किल। यहां के सबसे पुराने कालेज में 18 हजार बच्चे जो इस जमाने में भी धधकते टीनशेड में पढ़ते हैं। बच्चियों के कालेज की भी यही दशा। माखनलाल विवि. रीवा परिसर समय पर बन जाए तो स्नातक-स्नातकोत्तर के लिए बेहतर विकल्प होगा क्योंकि जनसंचार के साथ यहां भी सामान्य स्नातक कोर्सेस चलते हैं।
बहरहाल आशा की जानी चाहिए कि निकट भविष्य में माखनलाल विवि. का रीवा परिसर ठीक वैसा ही बनेगा जैसा कि उसके माडल का इलुस्ट्रेशन दिख रहा है। राजनीतिक बाधाएं क्षणिक होती हैं, व्यापक लोकहित की अवज्ञा का साहस नराधम ही कर सकते हैं।
शिल्पी प्लाजा में संचालित परिसर को साथियों ने दिन-रात एक करके खड़ा किया। नौकरी को नौकरी नहीं जुनून माना। स्नातक की पढ़ाई करते हुए हमारे कई छात्रों ने मीडिया में काम शुरू किया। वे टीवी, अखबार, पोर्टल में अभी से बेहतर कर रहे हैं। कला संस्कृति के क्षेत्र में भी अपनी सफलता के झंड़े गाड़े। इन सभी का भविष्य उज्ज्वल है।
इस चतुर्मास में हमारे पूज्य गुरुदेव हनुमानजी ने पुण्य अवसर उपलब्ध कराया है। कई पुस्तकों के रुके प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाएंगे, जो लिखा उसे सहेजेंगे, जंगल घूमेंगे, दस किलो पढ़ेगे- दस ग्राम लिखेंगे। भोपाल-इंदौर-दिल्ली जहां जितने दिन रहने का मन हुआ रहेंगे। कुछ और अखबारों में स्तंभ लेखन का दायरा बढ़ायेंगे.. बागडोर गुरुदेव के हाथों है..।
वरिष्ठ पत्रकार, प्राध्यापक और चिंतक जयराम शुक्ला की एफबी वॉल से.