सुभाष सिंह सुमन-
मंदिर का अर्थशास्त्र… 2024 वाला ये साल अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं लग रहा है. कोविड के समय लड़खड़ाने के बाद अभी तक दुनिया की अर्थव्यवस्था कमर सीधी कर थोड़ी दूर भी नहीं चल पाई है. बाद में कुछ-कुछ ब्रेक के बाद नए-नए कांड-कारनामे होते रहे हैं और मामला बिगड़ता रहा है. 2023 कट गया. भारत के लिए तो बहुत बढ़िया से कटा. किसी भी ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी के लिए 6 पर्सेंट ग्रोथ रेट बहुत बढ़िया मानी जाती है. भारत लगभग 7 निकाल ले गया है. 2024 में दिक्कत होगी. ग्लोबल विलेज, इंटीग्रेटेड इकोनॉमीज… बहुत दिनों तक अछूते बचे रह नहीं सकते हैं. अच्छी बात ये है कि साल की शुरूआत सुंदर हो रही है. अयोध्या में मंदिर के रूप में पहले महीने ही बहुत शानदार डेवलपमेंट है.
श्री राम जन्मभूमि मंदिर के महत्वों के कई आयाम हैं. प्रतीकात्मक, धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक…सब. इन सबसे बढ़कर आर्थिक महत्व है. कैसे… ये समझने के लिए प्राचीन भारत की सैर पर चलना पड़ेगा. प्राचीन भारत को कम शब्दों में ऐसे समझ सकते हैं कि आर्थिक लिहाज से अभी जो हैसियत अमेरिका की है, वह उस जमाने में भारत की थी. प्राचीन भारत की उस मजबूत आर्थिक स्थिति की बुनियाद टिकी थी मंदिरों पर. मंदिर लोगों को सिखा-पढ़ा रहे थे. मंदिर बैंक का काम कर रहे थे. मंदिर निराश्रितों को आश्रय दे रहे थे. मंदिर भूखों को भरपेट भोजन दे रहे थे और मंदिर खाली हाथों को काम भी दे रहे थे. इसे विस्तार से समझने का मन हो तो तक्षशिला से विक्रमशिला और नालंदा के प्राचीन विश्वविद्यालयों तक के प्रशासन के बारे में पढ़ सकते हैं. गुप्तों से पहले शुंगों, उससे पहले मौर्यों, उससे पहले नंदों, उससे पहले हर्यकों और उससे पहले के जनपदों… सब मंदिरों को स्वायत्त भूस्वामी बनाते थे. जहां तक का प्रमाण मिल पाता है, यही मिलता है कि तत्कालीन शासकों ने मंदिरों को आस-पास के इलाकों का प्रशासन सौंपा. उससे फायदा हुआ कि राज्य के खजाने के समानांतर कई खजानों का सृजन हुआ. जब-जब विपत्ति आई, ये समानांतर खजाने खुलते रहे. राज्य या साम्राज्य नाम की बड़ी इकाई में इन मंदिरों की मदद से सेल्फ-सफिशिएंट लोकल इकोनॉमिक इकाइयां तैयार हो जाती थीं.
भारतीय अर्थव्यवस्था का पतन होना शुरू हुआ, जब मंदिर ढाहे जाने लगे, जलाए जाने लगे. हजारों मंदिर तोड़े गए और तक्षशिला से लेकर नालंदा तक ध्वस्त किए गए, इसके सबूतों की कोई कमी नहीं है. इसके आर्थिक पहलुओं पर काम बहुत कम हुआ है. छिटपुट और टुकड़ों में तो काम मिलता है, लेकिन समग्र रूप से मुझे नहीं मिला है अब तक. रोहित टिक्कु, आनंद श्रीवास्तव और श्रिया अय्यर ने इस पर काम किया है. अच्छी बात है कि तीन में से दो बाहर प्रोफेसर हैं, वर्ना मुझे शॉक करने वाली हैरानी हुई होती. इन तीनों ने पूरे भारत में मंदिर तोड़े जाने पर अर्थव्यवस्था के एंगल से एक बढ़िया पेपर लिखा है. कैंब्रिज ने पब्लिश किया है. ये भी मानते हैं कि जैसे-जैसे मंदिर तोड़े जाते रहे, भारत की अर्थव्यवस्था विकलांग होती चली गई.
मध्य भारत के इतिहास में हरिहर और बुक्का दो भाई मिलते हैं. किसी से तुलना नहीं करेंगे, लेकिन मुझे मध्य भारत के इतिहास के सबसे प्रभावी लोग यही दोनों लगते हैं. भारत में अंधकार का युग शुरू होने के बाद बीच में एक विजयनगर साम्राज्य आया, जिसने बहुत कुछ बचा लिया. दक्षिण का लगभग पूरा इलाका सदियों तक विजयनगर ने सुरक्षित रखा. यह मेरा व्यक्तिगत निष्कर्ष है कि अभी उत्तर की तुलना में दक्षिण में संस्कृति का ज्यादा अंश विजयनगर के कारण ही बचा हुआ है. विजयनगर की सबसे बड़ी ताकत थी उसकी जबरदस्त अर्थव्यवस्था. हरिहर-बुक्का ने कुछ अलग नहीं किया था. उन्होंने बस मंदिरों की प्रतिष्ठा पुनर्स्थापित की थी. टिक्कु-श्रीवास्तव-श्रिया की तिकड़ी भी ऐसा ही मानती है.
अब अभी की बात देखिए. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा अभी हुई नहीं है और मंदिर का काम तो बहुत सारा बचा हुआ है, लेकिन लोगों में उत्साह गजब का है. 2021 में जिस अयोध्या में सवा तीन लाख लोग पहुंचे थे, उस अयोध्या में 2022 में 2.40 करोड़ लोग पहुंच गए. इस साल 20 करोड़ से ज्यादा लोग पहुंच सकते हैं. एफिल टावर को ओपनिंग के बाद से अब तक 30 करोड़ विजिटर मिले हैं. टाइम्स स्क्वेयर, न्यूयॉर्क सेंट्रल पार्क, चीन की दीवार… इन सब को साल भर में 4-5 करोड़ विजिटर मिलते हैं. इसके सामने 20-25 करोड़ को रखकर देखिए, फिर मंदिर का अर्थशास्त्र समझ सकते हैं.
एक मंदिर से कैसा इकोनॉमिक चेन रिएक्शन होगा, वो सोचिए. 20-25 करोड़ लोग जाएंगे, तो कुछ हो सकता है पैदल जाएं. बाकी लोग ट्रेन, प्लेन, बस, अपनी गाड़ी से ही जाएंगे. अपनी गाड़ी से जाएंगे तो रास्ते में पेट्रोल भराएंगे, नहीं तो किराया भरेंगे. कुछ भी करेंगे, कई लोगों की कमाई कराएंगे. सब उपवास पर रहेंगे नहीं, मतलब नाश्ता-भोजन करेंगे. चाय पिएंगे. जूस गटकेंगे. ठहरने के लिए होटल-धर्मशाला जाएंगे. कुल मिलाकर बात ये है कि एक साथ कई मोर्चे पर उपभोग बढ़ेगा. जिस शहर की आबादी कुछ लाख है, वहां जब करोड़ों की फ्लोटिंग आबादी आएगी, तो उनके साथ आएगा बेशुमार बिजनेस. सबसे गरीब 20-25 करोड़ लोगों के हिसाब से कंजम्पशन कैलकुलेट करेंगे तो उसका जीडीपी पर फैक्टोरियल इम्पैक्ट डबल डिजिट बेसिस पॉइंट में मिलेगा. इस कैलकुलेशन के आधार पर आराम से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि श्री राम जन्मभूमि मंदिर जैसे 5-7 सेंटर मिलकर जीडीपी ग्रोथ में अभी की स्थिति में भी इतना योगदान दे सकते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था को ग्लोबल फैक्टर्स से इंसुलेशन मिल जाए. मतलब ये मंदिर बड़े आराम से 1-2 पर्सेंट तक ग्रोथ रेट की व्यवस्था कर सकते हैं. इस साल भारत की वृद्धि दर को 6 फीसदी तक ले जाने में सबसे पहले तो मंदिर और बाद में लोकसभा चुनाव का बड़ा योगदान रहने वाला है.
(ये मेरे लिए बहक जाने वाला टॉपिक है. इतिहास और अर्थशास्त्र दोनों का डेडली कॉम्बो. इस पर सैकड़ों पन्ने लिखते चले जा सकते हैं. इस कारण कहीं-कहीं खिंचा हुआ लग सकता है. मंदिर आदि को तोड़े जाने की बात पर किसी भी इतिहासकार को उठाकर पढ़ लीजिएगा तो सबूत मिल जाएगा- इरफान हबीब, सतीश चंद्रा को भी- तो इस पर बहस नहीं करना है. तस्वीरें बिंज एआई की बनाई हुई हैं, हम कुछ नहीं किए, सिर्फ प्रॉम्प्ट दिए हैं. मंदिर से अर्थव्यवस्था को किस तरह फायदा हो रहा है, इस पर एक स्टोरी किए हैं, नीचे खोज सकते हैं.)
रणधीर राणा
January 10, 2024 at 10:32 am
सुभाष सिंह सुमन जी,
“मंदिर का अर्थशास्त्र “पढ़कर आपके अर्थशास्त्र से जुड़ी समझ पर तरस आती है। आपने नालंदा और तक्षशिला को जबरन अपने लेख में घुसेड़ दिया जो कही से भी मंदिर के अर्थशास्त्र में फिट नही बैठता है। इतिहास और अर्थशास्त्र का आपने अपने लेख में अच्छे से मां-बहन कर दिया है।
एकबार निष्पक्ष भाव से इतिहास और अर्थशास्त्र को फिर से पढ़िए, फिर संदर्भ के साथ लेख लिखिए।
आपका लेख व्हाट्सएप विश्वविद्यालय से प्रेरित है जिसका सच्चाई से दूर दूर तक वास्ता नही है।
एडिटर से निवेदन है, भड़ास 4 मीडिया पर ऐसे सतही और बनाबटी बातों को स्थान न दें।