वैद्य आनंद पांडेय-
तक्र(मट्ठा):- तक्र लघु (पचने में हल्का), स्वाद में कषाय(कसैला) और अम्ल )खट्टा), जठराग्नि दीपक (पाचन क्षमता को बढ़ाने वाला), कफवात शामक होता है । तक्र पाँच प्रकार के बताये गए हैं-
1)घोल-बिना जल मिलाये मलाई सहित दही को मथा जाए तो उसे घोल कहते हैं, घोल में यदि शक्कर मिला हुआ हो तो वात पित्त नाशक और थकान को मिटाने वाला होता है।
2)मथित-यदि दही की मलाई को अलग करके बिना जल के ही दही को मथा जाए तो उसे मथित कहते हैं। यह पित्तनाशक होता है।
3)तक्र-जिस दही में चौथाई जल मिलाकर मथा जाए उसे तक्र कहते हैं। यह मल को बांधने वाला, उष्ण वीर्य(तासीर में गर्म), तृप्ति कारक, वात नाशक होता है।यह पेट के रोगियों के लिए हितकर होता है ,कुछ लोगों को कभी पेट साफ नहीं होता और कभी पतली दस्त होने लगती है ऐसे लोगों के लिए तक्र अमृत तुल्य है।
4)उदश्वित-जिस दही में आधा जल और आधा पानी मिलाकर मथा जाए उसे उदश्वित कहते हैं। यह कफकारक, बल वर्धक, अत्यंत आम(आँव)नाशक होता है।
5)छच्छिका-जिस दही में से पहले मथकर मक्खन निकाल लिया जाए पुनः उसी में अधिक मात्रा में जल डालकर मथा जाए उसे छच्छिका कहते हैं। यह शीतल,लघु(पचने में हल्का),पित्त एवं थकान तथा प्यास को शांत करने वाला होता है,यदि इसमे सेंधा नमक मिला लिया जाए तो ये अग्निदीपक होता है।
◆घी निकाला हुआ तक्र रोगियों के लिए हितकर और हल्का होता है और घी सहित तक्र गाढ़ा, गुरु(पचने में भारी), वीर्य वर्धक और कफजनक होता है।
◆वात की अधिकता में (गैस बनने पर) खट्टा तक्र सेंधा नमक मिलाकर लेना चाहिए, पित्त की अधिकता में मीठा तक्र हितकारी होता है, कफ की अधिकता में सोंठ,काली मिर्च, पिप्पली(पीपर) एवं यवक्षार(जौखार) मिला हुआ तक्र हितकारी होता है।
◆हींग, जीरा, सेंधा नमक से युक्त घोल अत्यंत वात शामक, अर्श(बवासीर) तथा अतिसार(पतली दस्त) को दूर करने वाला, भोजन के प्रति रुचि
कारक, पुष्टि कारक, बल दायक तथा पेट के निचले हिस्से में होने वाले दर्द में हितकारी होता है।
◆बिना पकाया तक्र पेट मे स्थित कफ को नष्ट करता है तथा कण्ठ में कफ करता है इसलिए पकाये हुए तक्र का प्रयोग जुकाम, दमा, खाँसी में प्रयोग में लेवें।
◆शीतकाल में तथा पाचन शक्ति की कमी की स्थिति में , वात रोग, अरुचि, तथा नाड़ियों के अवरोध में तक्र अमृत तुल्य है।
◆लार गिरना, विषम ज्वर(बार बार आने जाने वाले बुखार) , पाण्डु रोग(खून की कमी), मोटापा, मूत्र का बन्द होना, भगंदर, प्रमेह, पतली दस्त, प्लीहा रोग, श्वेत कुठ, सूजन, तथा कृमि रोगों को नष्ट करने वाला होता है।
तक्र सेवन निषेध-क्षय रोग, ग्रीष्म ऋतु, दुर्बल व्यक्ति तथा मूर्छा, भ्रम(चक्कर आना), जलन, रक्त पित्त(रक्त स्राव) में तक्र सेवन निषेध होता है।
वैद्य आनन्द पाण्डेय
गंगा आयुर्वेदिक चिकित्सालय व पंचकर्म चिकित्सा केंद्र
सारनाथ, वाराणसी