Sanjay kumar singh-
स्मृति ईरानी के ही बहाने, पत्रकारों की नौकरी पर तो बात हो जाती! छोटे शहरों में काम करने वाले तमाम रिपोर्टर किसी भी संस्थान की नौकरी में नहीं होते हैं। एकाध अपवाद निकल आये तो अलग बात है वरना नियम यही है। सब काम करते हैं, खबरें भेजते हैं, जो छपती (या उपयोग की जाती हैं) उनके पैसे मिलते हैं। किसी को कुछ राशि न्यूनतम मिलती है, किसी को वो भी नहीं। किसी की खबरें नियमित छपतीं हैं, किसी की खास। पर वेतन किसी को नहीं मिलता है। और नियुक्ति पत्र तो मुख्यालय से बाहर (महानगरों को छोड़कर) शायद किसी के पास हो। किसी के पास प्रतिनिधि होने की चिट्ठी होगी किसी के पास विज्ञापन लेने की।
मालिकों को इससे फायदा है कि पैसे कम लगते हैं. पत्रकारों को फायदा है कि अयोग्य होते हुए भी माइक-कार्ड मिल जाता है। ना कोई पक्की नौकरी मांगता है ना मिलती है। ट्रांसफर नहीं होता है, सो अलग। इसलिए चल रहा है और उसमें ये सब सामान्य है तथा बहुत बड़े खेल का हिस्सा। निश्चत रूप से वह पत्रकार अपने संस्थान का वेतनभोगी नियमित कर्मचारी नहीं होगा वरना नियुक्ति पत्र ट्वीट करने में कितनी देर लगती। फिर भी मंत्री ऐसे लोगों पर अपनी ताकत दिखायें – यह और शर्मनाक है। पर यही सच है।
हालांकि, मीडिया संस्थान को चाहिए था (क्योंकि वह लगभग मुफ्त में काम कर रहा था) मंत्री से कहता कि वह हमारा कर्मचारी तो नहीं है, मुफ्त में खबरें भेजता है, हम उसे छापते रहेंगे। विज्ञापन नहीं होगे, तब भी खबर वही देगा। आपका क्या है, आज हैं कल क्या रहेंगी। वह तो यही स्ट्रिंगर रहेगा, जीवन भर। पर यह भी नहीं होता है। और सब मंत्री स्मृति ईरानी का विरोध कर रहे हैं। लाला सुधीर अग्रवाल का विरोध कब करोगे, भाई लोगों?
Manoj Singh
June 14, 2023 at 2:45 pm
Sir Aapne Kitne kam sabdo me Maliko ka aaina dikha diya ki wo salary bhi nahi dete offrole rakhte. aur kisi bhi vippati me aapke sath nahi hote.
रवीन्द्र नाथ कौशिक
June 16, 2023 at 12:34 pm
बिल्कुल सही।