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सुख-दुख

मीडिया का अग्निपथ, मिलिट्री का अग्निपथ… फ़र्क़ समझिए!

नागेंद्र प्रताप-

अग्निपथ… अग्निपथ… अग्निपथ…? हमारे जो मित्र, खासकर मीडिया वाले मित्र सेना में भर्ती के नाम पर “अग्निपथ” की तारीफ करते नहीं अघा रहे, उसे कारपोरेट और अखबारों/मीडिया हाउस के कांट्रेक्ट सिस्टम से जोड़कर देख रहे या सफल बता रहे, उन्हें सिर्फ ये याद दिलाना है कि –

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1- अखबारों/मीडिया हाउस में कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम का मतलब यह नहीं था/है कि तीन या चार साल के बाद नौकरी समाप्त। वहां कॉन्ट्रैक्ट रिनीवल होते हैं और कितने ही, बल्कि ज्यादातर लोग दसियों साल से एक ही संस्थान में काम कर रहे हैं। छोटे से लेकर बड़े पदों तक।

2- उन्हें पता है कि अच्छा काम करेंगे तो कॉन्ट्रैक्ट न सिर्फ उसी संस्थान में रिन्यू होगा बल्कि दूसरे संस्थान में भी संभावना बनी रहेगी। ऐसे सैकड़ों नहीं, अब तो हजारों उदाहरण हमारे आसपास मौजूद हैं।

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3- वहां पीएफ/ग्रेच्युटी के तमाम फायदे अपनी तमाम कमियों/ऐब के साथ मौजूद हैं। इस कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम की तमाम खामियां हैं लेकिन फिलहाल वह यहां मुद्दा नहीं।

4- आप ये बातें करते वक़्त यह सोच भी कैसे लेते हैं कि चार साल की नौकरी के लिए कोई सहर्ष कैसे तैयार हो जाएगा या किसी को हो जाना चाहिए। तब जब उस चार साल बाद उसे कोई भविष्य न दिख रहा हो!

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अब ‘अग्निपथ’ के कॉन्ट्रैक्ट की बात-

1- यह कोई मीडिया हाउस, खबरिया चैनल या अखबार का मामला नहीं है। यह सेना औऱ देश की सेवा/ सुरक्षा का मामला है। यहां जॉब सिक्युरिटी और परिवार की जिम्मेदारी अहम सवाल है जिसके बिना ‘सेवा की भावना’ की उम्मीद करना बेकार की बात है।

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2- यहां कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू नहीं हो रहा बल्कि 4 साल पूरा होते ही 75 फीसदी की नौकरी चले जाना यानी इतने लोगों का बेरोजगार होना सुनिश्चित कर दिया गया है। बाकी 25 फीसदी को भी परफार्मेंस यानी योग्यता के आधार पर आगे देखा जाएगा, यानी तय वहां भी नहीं है।

3- बड़े दावे किए जा रहे हैं कि इन्हें कारपोरेट हाउसों में, निजी/सार्वजनिक संस्थानों में सुरक्षा गार्ड की नौकरी आसानी से मिल जाएगी लेकिन यह कोई नहीं बता रहा कि इतने लोग हर साल निश्वित बेरोजगारी के शिकार तो होंगे लेकिन इस अनुपात में उन्हें नौकरी किस तरह मिलने जा रही है। अगर मिली भी तो उनका वेतन या मानदेय क्या होगा? और यह भी कि कारपोरेट मालिकों के साथ ऐसा कोई अनुबंध होने जा रहा है क्या? लगे हाथ यह भी पता कर लिया जाए कि अभी जो पूर्व सैनिक तमाम जगहों पर सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर रहे हैं उन्हें वेतन कितना मिलता है?

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4- इन हाई स्कूल पास को 4 साल बाद आप बिना पढ़ाई इंटर पास का सर्टिफिकेट तो दे देंगे लेकिन उससे इनका कोई भला नहीं होने जा रहा, यह आप भी जानते हैं! इस बिना पर तो इन्हें अगली नौकरी नहीं ही मिलने वाली!

5- 17 से 21 की जिस खुरदुरी उम्र में आप इन्हें सेना में सेवा का सब्जबाग दिखा रहे हैं, वहां से 25 या 26 की उम्र में मुक्त होने के बाद ये नई नौकरी की तलाश में जुटेंगे और फिर ओवरएज हो जाएंगे! ‘इंटर सर्टिफिकेट’ वाले ये युवक किसी और काम की तो सोच भी न पाएंगे क्योंकि इस नौकरी ने उनकी पढ़ाई पहले ही ब्लॉक कर दी होगी!

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6- सबसे बड़ा खतरा ये कि 4 साल बाद नौकरी जाने की सुनिश्चितता इन्हें सेना में रहते हुए भी भविष्य के प्रति असुरक्षा बोध का शिकार बनाए रखेगी और इस हालत में ये शायद ही एक जवान की तरह समर्पण की सोच भी पाएंगे। इन्हें कम से कम 10 से 15 साल सेवा की आश्वस्ति हो तभी यह कमिटमेंट और सेवा भाव न सिर्फ जागृत होगा बल्कि जड़ें जमाएगा।

7- सबसे बड़ी बात 4 साल के जिस पीरियड की बात अग्निपथ में है, उसमें आधा वक़्त तो उसकी ट्रेनिंग में ही निकल जायेगा और जब तक 4 साल पूरे होंगे तब तक वह ‘हथियार चलाने में निपुढ़ एक बेरोजगार युवा’ ही बन पाएगा, और कुछ नहीं।

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बाकी समझने के लिए बहुत कुछ है। मेरा सिर्फ इतना कहना है कि कम से कम सेना को इस कॉन्ट्रेक्ट सिस्टम से बख्श दीजिये। वहां जो जवान जाते हैं वे राष्ट्र की, हम सबकी शान हैं। उन्हें आश्वस्त करना, उनके भविष्य को सुनिश्चित करना हम सब की जिम्मेदारी है।

सच कहूं तो मुझे सरकार से ज्यादा मीडिया के अपने साथियों पर गुस्सा आता है, जो सरकार के हर काम को जायज ठहराने का ठेका लेकर बैठ गए हैं! जबकि उनके पास सरकार की आंख-कान बनने की भी जिम्मेदारी थी… खैर, आंख-कान तो हम कब का बन्द कर चुके हैं!

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फिलहाल इस मामले पर जल्दबाजी में कुछ कहने से पहले सेना के उन छोटे-बड़े अफसरों की बात ही सुन लीजिए जो इसे बहुत गम्भीरता से ले रहे हैं।

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