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सियासत

मोदी जी, कड़वे फैसले ही लेने हैं तो अंबानी की गैस की कीमत चार से दो रूपये कर दीजिए

इसे मोदी सरकार की ब्लैकमेलिंग कहेंगे या फिर संवेदनहीनता। सरकार बनने के एक माह के भीतर रेल किराये में भारी बढ़ोत्तरी करके सरकार ने साफ कर दिया है कि किसके अच्छे दिन आने वाले हैं? आम आदमी हैरान भी है और परेशान भी। उसे सपने में भी अंदाजा नहीं था कि उसके साथ इतनी जल्दी इतना बड़ा धोखा हो सकता है। जिन सपनों के साथ उसने सरकार को चुना था वो सपने बिखर गये हैं। अब बस डर सामने है कि उसे और कितने बुरे दिनों का सामना करना पड़ेगा?

<p>इसे मोदी सरकार की ब्लैकमेलिंग कहेंगे या फिर संवेदनहीनता। सरकार बनने के एक माह के भीतर रेल किराये में भारी बढ़ोत्तरी करके सरकार ने साफ कर दिया है कि किसके अच्छे दिन आने वाले हैं? आम आदमी हैरान भी है और परेशान भी। उसे सपने में भी अंदाजा नहीं था कि उसके साथ इतनी जल्दी इतना बड़ा धोखा हो सकता है। जिन सपनों के साथ उसने सरकार को चुना था वो सपने बिखर गये हैं। अब बस डर सामने है कि उसे और कितने बुरे दिनों का सामना करना पड़ेगा?</p>

इसे मोदी सरकार की ब्लैकमेलिंग कहेंगे या फिर संवेदनहीनता। सरकार बनने के एक माह के भीतर रेल किराये में भारी बढ़ोत्तरी करके सरकार ने साफ कर दिया है कि किसके अच्छे दिन आने वाले हैं? आम आदमी हैरान भी है और परेशान भी। उसे सपने में भी अंदाजा नहीं था कि उसके साथ इतनी जल्दी इतना बड़ा धोखा हो सकता है। जिन सपनों के साथ उसने सरकार को चुना था वो सपने बिखर गये हैं। अब बस डर सामने है कि उसे और कितने बुरे दिनों का सामना करना पड़ेगा?

मोदी जी की सरकार का कहना है कि पिछली सरकार खजाना खाली कर गयी है। यह राजनीति में जमा-जमाया मुहावरा है। जब भी कोई सरकार सत्ता में आती है तो यही रटा-रटाया डायलॉग बोलती है कि खजाना खाली है। लोगों को कम से कम मोदी सरकार से तो यह उम्मीदें नहीं थीं। उसके पीछे कारण भी था। लोग नरेन्द्र मोदी के भाषणों पर उनकी बातों पर भरोसा कर रहे थे। उन्हें लग रहा था कि मोदी जो कहेंगे वो करके दिखा देंगे। ऐसे में उनको लग रहा था कि देश को एक बेहतर नेतृत्व मिल जायेगा जो उनकी समस्याओं का समाधान कर सकेगा।

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नरेन्द्र मोदी ने अपनी हर चुनावी सभा में बढ़ती हुई मंहगाई को मुद्दा बनाया था। यह सही भी था। लोग बढ़ती हुई मंहगाई से आजिज़ आ गये थे। मंहगाई के चलते उनका जीवन दूभर हो गया था। मोदी ने आम आदमी के इस दर्द को जबरदस्त तरीके से अपने साथ जोड़ा। उन्हें एहसास कराया कि आम आदमी का दर्द उनका दर्द है। देश के आम आदमी को लगा कि मोदी जी उन जैसे ही हैं।

यही नहीं मोदी जी ने खुद को आम आदमी के साथ जोड़ने के लिए उनकी गरीबी का मुद्दा भी उठाया। बताया कि वह भी चाय वाले ही थे। उनकी मां बर्तन साफ करती थी। इसी नाते उन्हें गरीबी का दर्द पता है। देश का जनमानस राजसी घराने के लोगों और उनकी गरीब विरोधी नीति से ऊब चुका था। यही कारण था कि उसने एक ऐसे नेता का चयन करने में देरी नहीं लगायी जो कभी उनके जैसा ही गरीब था।

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मगर सरकार बनने के एक महीना भी पूरा नहीं हुआ था कि मोदी जी इन गरीबों को भूल गये। उन्होंने कहा कि कुछ कड़वे फैसले लेने होंगे। उन्होंने कहा कि इससे उनके अपने लोग भी नाराज होंगे पर साथ ही कहा कि वह उन्हें मना लेंगे। देश का जनमानस समझ गया कि उसके साथ धोखा हो गया। कड़वे फैसले के नाम पर उसके ऊपर ही मंहगाई की मार पड़ने वाली है।

हुआ भी यही। रेल भाड़े में जबरदस्त वृद्धि कर दी गयी। कहा गया कि इसका फैसला तो पिछली सरकार ने ही ले लिया था। उन्होंने तो बस इसे लागू किया है। सवाल यह है कि अगर पिछली सरकार ने कोई गलत फैसला लिया भी तो मौजूदा सरकार उस फैसले को लागू क्यों कर रही है। पिछले दस सालों में रेल किराये में बढ़ोतरी नहीं हुई थी। आखिर यूपीए की सरकार दस सालों से कम से कम आम आदमी के लिए रेल का सफर तो मंहगा नहीं कर रही थी। फिर एक महीने में ही ऐसा क्या हुआ जो मोदी सरकार को यह भार आम आदमी पर डालना पड़ रहा है। रेल भाड़ा बढ़ाना ही था तो केवल एसी में यात्रा कर रहे लोगों का बढ़ाना चाहिए था। यह वो लोग हैं जिन पर थोड़ा बोझा बढ़ भी जाता तो वह सहन कर लेते। मगर सामान्य श्रेणी में देश का आम आदमी जानवरों की तरह एक के ऊपर एक लद कर सफर करता है। उस पर साढ़े चौदह प्रतिशत किराये का बोझ उसकी हालत खराब कर देगा। मगर यह बात मोदी सरकार को समझ नहीं आ रही।

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कुछ और कड़े फैसले लिये जाने की सरकार बात कर रही है। मतलब गैस का सिलेंडर और पेट्रोल तथा डीजल में और बढ़ोतरी हो सकती है। सवाल यह है कि आखिर मोदी सरकार भी यूपीए-2 के बाद यूपीए-3 बन जायेगी तो लोग क्या करेंगे। अब तो उनके हाथ में भी कुछ नहीं बचा। आने वाले पांच साल क्या वह खुद को सिर्फ लुटते हुए देखेंगे। इसके अलावा उनके पास विकल्प भी नहीं हैं।

इस देश के आम जन मानस पर अपने तथा अपने परिवार का खर्चा चलाने के उपाय नहीं है। इस देश की अस्सी फीसदी जनता के पास दो वक्त के खाने का इंतजाम नहीं है। जब उसके बच्चे बीमार पड़ते हैं तो अस्पताल की दवाइयों का खर्चा उठा पाना उसके बस की बात नहीं है। ऐसे सभी लोगों में नयी सरकार बनने पर सपना जगा था। उन्हें लगा था कि दिल्ली में हुकूमत बदल गयी है तो सब कुछ बदल जायेगा।

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यह इस देश का दुर्भाग्य ही है कि आजादी के इतने साल बाद भी इस देश के आम आदमी के सामने जिंदगी जीने का संकट बना हुआ है। उसके सामने सबसे बड़ी लड़ाई यही है कि वह इस व्यवस्था के चलते जिंदगी कैसे गुजर बसर करे। उसके बच्चे उसके सामने चिंताओं का बोझ बन जाते हैं। ऐसे में अगर उसको सिर्फ यह एहसास हो जाये कि उसके बच्चों को दो वक्त की रोटी मिल जायेगी और बीमार पडऩे पर उनकी दवा का इंतजाम हो जायेगा तो यह उसके लिए बेहद राहत भरी बात होती है। इन हालातों के लिए बेशक अब तक सबसे ज्यादा समय तक हुकूमत कर रही कांग्रेस जिम्मेदार है मगर मोदी जी दूसरी कांग्रेस बनने की कोशिश क्यों कर रहे हैं?

सवाल यह भी है कि आखिर कांग्रेस इतने कड़वे फैसले दस सालों से क्यों नहीं ले रही थी। वो जब भी पेट्रोल डीजल या रेल भाड़े में बढ़ोत्तरी की चर्चा भी करती तो विपक्ष में बैठे भाजपा के यही नेता जमीन-आसमान एक कर देते। अब जब सत्ता उन्हें मिल गयी तो उनमे इतना बदलाव क्यों? क्या सत्ता मिलते ही सारे मतलब बदल जाते हैं?

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मोदी जी, एक बात इस देश का आम आदमी पूछना चाहता है। आपके कड़वे फैसले सिर्फ गरीब आम आदमी के लिए ही क्यों? उसके स्कूटर, मोटर साईकिल में डलने वाला पेट्रोल और घर में जलने वाला सिलेंडर ही मंहगा क्यों? मंहगाई की मार उस पर ही क्यों? अगर कुछ कड़वे फैसले लेने ही थे तो अंबानी की गैस की कीमत चार रूपये से दो रूपये कर देते। देश के लोग मान जाते कि आप ईमानदार हैं और आम आदमी के दर्द को महसूस करते हैं। मगर गरीब का सिलेंडर मंहगा करके उसकी जान निकाल कर अगर आप अंबानी को उसकी गैस के चार रूपये से आठ रूपये कर रहे हैं तो आप एक बहुत बड़ा गुनाह कर रहे हैं। इस देश के आम आदमी के दर्द को समझिये। उसे तबाह मत कीजिए वरना आपको भी मनमोहन सिंह बनते ज्यादा देर नहीं लगेगी।

 लेखक संजय शर्मा लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और वीकएंड टाइम्स के संपादक हैं.

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