Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

मोदी का भाषण प्रश्नों के उत्तर नहीं देता, बस उनके वोट बैंक का टाइम पास करवाता है!

धर्मवीर-

प्रधानमंत्री जी का भाषण सुना । पहले राज्यसभा और अब लोकसभा । दोनों सदनों में मोदी जी खूब बोले ।लेकिन बोले बिलकुल उसी तर्ज़ पर जिस तर्ज़ पर आर्ट्स के स्टूडेंट्स परीक्षा में कापी भरते हैं । प्रश्न क्या था और उत्तर क्या था इससे मतलब नहीं बल्कि अंक इस बात पर मिलने होते थे कि आख़िर आपने कितनी कापियाँ भरी हैं ।

Advertisement. Scroll to continue reading.

PM साहब भी बिलकुल इसी अन्दाज़ में आए और बोले । देश में किसान आंदोलन चल रहा है और पूरा देश आजकल इसी आंदोलन के बारे में चर्चा कर रहा है सो ज़ाहिर सी बात है कि PM साहब के भाषण में सबसे ज़्यादा कृषि क़ानूनों पर ही बात होनी थी । हुई भी लेकिन क्या इन भाषणों मे तथ्य भी थे या केवल हमेशा की तरह रूटीन टाइम पास भाषण ही थे ..?

तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में किसान सड़कों पर हैं लेकिन प्रधानमंत्री जी ने इनमें से दो क़ानूनों के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा । एक क़ानून है कोंट्रैक्ट फ़ार्मिंग से सम्बंधित और दूसरा क़ानून है किसी व्यक्ति या कम्पनी को किसी भी वस्तु के असीमित भंडारण करने का अधिकार देने का क़ानून । इन दोनों क़ानूनों पर प्रधानमंत्री जी ने किसान अथवा आम जनता की किसी आशंका का समाधान नहीं किया । इस पर से उन्होंने यह भी बोल डाला कि तीनों क़ानून वैकल्पिक हैं अनिवार्य नहीं । असीमित भंडारण की सुविधा के कारण ज़रूरी वस्तुओं के दाम बढ़ते हैं तो क्या उस स्थिति में आम उपभोक्ता के पास कुछ भी वैकल्पिक बचेगा ..? नहीं । हाँ एक विकल्प ज़रूर है कि अगर कोई गरीब परिवार व्यापारियों के द्वारा निश्चित की गई क़ीमत पर अनाज़ – सब्ज़ी ना ख़रीद सके तो ना ख़रीदे और बिना खाए पीए भूखों मर जाए । क्या प्रधानमंत्री जी इसी विकल्प की बात कर रहे थे ..? शायद नहीं । तो फ़िर और क्या वैकल्पिक हुआ ..? आख़िर दो घंटे लम्बे भाषणों में प्रधानमंत्री जी एक भी बार इस पर क्यूँ नहीं बोले कि आख़िर बड़े व्यापारियों को असीमित मात्रा में अन्न और सब्ज़ी के भंडारण का अधिकार दे देने से आम किसान का कैसे भला होगा और एक आम उपभोक्ता को वह इस क़ानून के लागू होने के कारण होने वाली मँहगाई और भुखमरी से कैसे बचाएँगे ..?

Advertisement. Scroll to continue reading.

कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग से सम्बंधित क़ानून पर भी PM साहब एक भी शब्द नहीं बोले । कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग करना या ना करना वैकल्पिक तो है लेकिन अगर कोई इस तरह की कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग करने का निर्णय एक बार कर लेता है तो ऐसे किसान के पास फ़िर कितने विकल्प बचते हैं उनकी चर्चा PM साहब क्यूँ नहीं करते ..? क्या एक आम किसान के पास उसके साथ चीटिंग होने की स्थिति में सरकारी प्रभाव से मुक्त मानी जाने वाली अदालत जाने का विकल्प मौजूद है ..? मात्र SDM – DM तक जा पाने का विकल्प होना वैकल्पिक माना जाएगा या मजबूरी ..? अगर बड़ी कम्पनी कांट्रैक्ट करने पश्चात् किसान की फसल की क्वॉलिटी ख़राब बताकर उसकी फसल को ख़रीदने से मना कर देती है तो उस किसान के पास कम्पनी के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने का कोई विकल्प है क्या ..? कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग की स्थिति में तो सारे विकल्प ही कम्पनी के पास हैं किसान के पास नहीं । काश PM साहब के वैकल्पिक शब्द के अंदर उतने ही विकल्प होते जितने विकल्प इस शब्द में सुनाई पड़ते हैं तो फ़िर कहना ही क्या था ।

अब आते हैं तीसरे क़ानून पर । प्रधानमंत्री जी ने MSP के बारे में कहा कि MSP थी , है और रहेग़ी । लेकिन वह यह तो बताना ही भूल गए कि यह MSP मिलेगी कितने किसानों को और क्या MSP की दर सरकारी मंडी के बाहर खुलने वाली निज़ी मंडियों में भी मिलेगी । एक बात उन्होंने बड़े पते की कही कि दरअसल नए क़ानून छोटे किसानों का भला करेंगे इसलिए बड़े किसान इनका विरोध कर रहे हैं । चलिए आपकी तसल्ली के लिए हमने भी मान लिया कि यह क़ानून छोटे किसान का भला करेंगे लेकिन यह तो बता दीजिए कि यह चमत्कार होगा कैसे ..? क्या दो हेक्टेयर से कम ज़मीन वाला किसान अपने दस – बीस क्विंटल माल को लेकर नए क़ानूनों का लाभ उठाते हुए अपनी फसल आगरा से सीधे चंडीगढ़ या हैदराबाद बेचने जाएगा ..? यह तो बिलकुल असम्भव सी बात है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

तो क्या मोदी जी यह कहना चाहते हैं कि पहले बड़ा व्यापारी किसान से उसकी फसल खेत पर से ख़रीदेगा और कई सारे छोटे किसानों की फसल को ख़रीदकर एक बड़ी गाड़ी करके उसको दूर के शहर में बेचेगा । लेकिन फ़िर इससे छोटे किसान का क्या लाभ हुआ ..? सरकारी मंडी और क़ानूनन MSP ना होने की स्थिति में तो बड़ा व्यापारी उस किसान से मुँहमाँगी क़ीमत पर फसल ख़रीदेगा क्यूँकि छोटे किसान पर तो कोई और विकल्प ही नहीं बचेगा । वैसे यह व्यवस्था तो आज भी बिहार जैसे राज्यों में चल रही है और बिहार के किसान की इतनी बुरी हालत है कि वहाँ का किसान खेती करना तो छोड़ ही दीजिए बल्कि मज़दूरी करने के लिए भी पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में जाने को मजबूर है । खुले बाज़ार की जो व्यवस्था बिहार जैसे राज्य में किसानों को बर्बाद कर गई वही व्यवस्था बाक़ी के राज्यों में किसान को किस तरह से आबाद करेगी ? बेहतर होता प्रधानमंत्री जी इस विषय पर थोड़ा प्रकाश डालते बजाय छोटे किसान और बड़े किसान का नाम लेकर किसानों को आपस में लड़वाने का प्रयास करने के ।

अब आते हैं सरकारी मंडियों के जारी रहने के प्रश्न पर । निज़ी मंडी खुलने के पश्चात् सरकारी मंडी केवल एक ही शर्त पर जारी रह सकती है । वह शर्त है कि निज़ी मंडियों पर भी वही टैक्स लगाए जाएँ जो सरकारी मंडी में माल बेचने पर लगाए जाएँगे और साथ ही केंद्र सरकार उन राज्यों को वित्तीय सहायता दे जो कि सरकारी मंडी के सिस्टम को चलाना चाहते हैं क्यूँकि बिना पैसे के कोई मंडी नहीं चल सकती । अगर सरकारी मंडी में टैक्स लगेगा और निज़ी मंडी में कोई टैक्स नहीं लगेगा तो कोई किसान सरकारी मंडी में अपनी फसल बेचने नहीं जाएगा और दो – तीन वर्ष के अंदर ही पूरा मंडी सिस्टम ध्वस्त हो जाएगा । और एक बार सरकारी मंडी ख़त्म हुईं तो फ़िर नयी क़ानूनी व्यवस्था वैकल्पिक नहीं बल्कि अनिवार्य हो जाएगी …। मोदी जी ऐसा थोड़े ही चाहते होंगे ..?

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक Dharam Veer का अपना YouTube चैनल है, DharamVeerLive नाम से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement