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सियासत

18 जुलाई काला दिन : भारत के क्रूरतम शासक बन गए मोदी!

गिरीश मालवीय-

भारत के इतिहास में आज का दिन 18 जुलाई एक काले दिन के रुप में याद किया जाएगा जब आम गरीब आदमी के उपयोग में आने वाले नॉन ब्रांडेड उत्पादों जेसे आटा चावल, दूध दही जैसी वस्तुओ पर टैक्स लगाया जा रहा है।

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आजादी के बाद ऐसा पहली बार है, जब बिना ब्रांड वाले खाद्य पदार्थों को जीएसटी के तहत लाया जा रहा है।

लोग ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं कि मामला क्या है दरअसल अभी तक खाद्यान्न में दो श्रेणियां थीं, ब्रांडेड और नॉन ब्रांडेड। पैकेट बंद ब्रांडेड खाद्यान्न जैसे आटा, मैदा, सूजी, दाल, चावल, गेहूं, पनीर, शहद आदि पर पांच फीसदी जीएसटी देय था। अब इस कड़ी में बदलाव हुआ है। अब नॉन ब्रांडेड पर भी जीएसटी लगेगा।

ब्रांडेड का अर्थ था कि जिस नाम का लेबल लगा है वह ट्रेडमार्क में रजिस्टर्ड है लेकिन अब रजिस्टर्ड ट्रेडमार्क की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया है यदि कोई खाद्यान्न पेकिंग में है और उस पर किसी भी तरह की पहचान का लेबल है तो उस पर सीधे पांच फीसदी जीएसटी देय होगा।अभी तक केवल पंजीकृत ब्रांडों पर ही 5% जीएसटी लगता था।

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अब सब पर जीएसटी लगेगा

अब नियम में प्रयोग किए गए शब्द प्री पैकेज्ड एवं लेबल्ड को लीगल मैट्रोलॉजी कानून की धारा दो के अनुसार माना जाएगा।
इसमें प्री पैकेज्ड वह है जिसमें पैकेज सील्ड हो या अनसील्ड, दोनों ही प्री पैकेज्ड माने जाएंगे, यदि वह निर्धारित मात्रा में पैक किए गए हों।

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यहां लेबल्ड का अर्थ है किसी पैकेज पर लिखित, अंकित, स्टांप, प्रिंटेड या ग्राफिक मार्का लगा हो। खास बात यह है कि जीएसटी परिषद की घोषणा में पैकिंग के साथ रिटेल शब्द जोड़ा गया था। जबकि हाल के नोटिफिकेशन में लीगल मैट्रोलॉजी नियमावली पर जोर दिया गया है। इसके नियम छह एवं 24 में रिटेल व होलसेल दोनों प्रकार के पैकेज पर लेबल लगाने (स्व घोषणा) की अनिवार्यता है।

व्यापारियों में यह भी भ्रांति फैली है है कि केवल 25 किलोग्राम से कम की पैकिंग में खाद्य सामग्री के विक्रय पर ही जीएसटी लगेगा परंतु जीएसटी अधिनियम के अंतर्गत जारी नोटिफिकेशन से यह स्पष्ट है की सभी प्रकार के पैकेज्ड एवं लेबल्ड खाद्य सामग्रियों पर 5 प्रतिशत की दर से जीएसटी 18 जुलाई 2022 से लागू हो गया है अधिसूचना में जिस शब्दावली का उपयोग किया है उसमें प्री-पैकेज्ड एवं लेबल्ड शब्द ही दिए गए हैं। ऐसे में इंडस्ट्रियल व इंस्टिट्यूशनल सप्लाय को छोड़कर अन्य सभी ग्राहकों को किसी भी वजन की पैकिंग में बेचे गए प्री-पैकेज्ड एवं लेबल्ड फूड ग्रेन्स पर अब 5% की दर से जीएसटी लागू होगा।

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यानि कोई भी खाद्य उत्पाद जो किसी भी फूड प्रोसेसिंग यूनिट, फैक्ट्री, फ्लोर मिल में प्रोसेस हुआ हो उस पर जीएसटी देय होगा।

खुले रूप में बिकने वाले पनीर, शहद, दही, लस्सी, बटर मिल्क, सूखे दाल-दलहन, सूखी अदरक, केसर, सूखी हल्दी, अजवाइन, कड़ीपत्ता व अन्य मसाले, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, रागी व सभी प्रकार के अनाज, राई, जौ, चावल, जई (ओटस), कुटू, मिलेट, केनरी बीज, धान्य आटा, मक्का आटा, राई आटा, सूजी, दलिया, आलू का आटा, सभी प्रकार का गुड़, फूला हुआ चावल अब जीएसटी के दायरे में आ गए हैं।

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इससे महंगाई और भी बढ़ना तय है 18 जुलाई का आज का दिन एक काला दिन है।


तमाम उपभोक्ता वस्तुओं पर जीएसटी लगाकर सरकार कुछ दिनों में रिकॉर्ड कलेक्शन के आंकड़े जारी करके अर्थव्यवस्था में सुधार का दावा भी करेगी । ग़रीब आबादी को तो लाभार्थी बनाकर सरकार मुफ़्त अनाज भी बांट रही है लेकिन मध्यवर्गीय जनता क्या करे? दिवंगत अरुण जेटली ने बतौर वित्तमंत्री बजट पेश करने के बाद मध्यवर्ग की निराशा पर टका सा जवाब दिया था- मिडिल क्लास अपना देखे। यह सरकार शुरू से ही घनघोर मध्यवर्ग विरोधी सरकार है। जबकि इसके सांप्रदायिक और समाज विभाजक एजेंडे को सबसे ज्यादा मिडिल क्लास ही आगे बढ़ा रहा है। बस ठोको ताली। बने रहो सरकार की पालकी के कहार।

अमिताभ श्रीवास्तव

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मुकेश असीम-

आटा दाल दही मीट मछली तेल सब पर टैक्स लग गया। कुछ लोग विपक्ष को ढूंढ रहे हैं! पर यह टैक्स अकेले बीजेपी ने नहीं लगाया है। एक भी गैर बीजेपी शासित राज्य इससे असहमत नहीं था, फैसला पूर्ण सहमति से हुआ है। बल्कि आज तक जीएसटी काउंसिल में एक ही प्रस्ताव पर पूर्ण सहमति नहीं बन पाई है। वह था लॉटरी पर टैक्स का मुद्दा। इसके अलावा आज तक हर फैसला केंद्र व राज्यों के बीच पूर्ण सहमति से हुआ है।

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इसलिए अगर कोई विपक्षी नेता/दल इसके खिलाफ बोल रहा है तो वो सिर्फ जनता को मूर्ख बनाने के लिए। जीएसटी कानून बुनियादी तौर पर ही जनता विरोधी और पूंजीवादी जनतंत्र व उसके संविधान के कायदों के भी विपरीत है। पहले सभी टैक्स लगाने के प्रस्ताव संसद/विधानसभा में रखे जाते थे, कहने के लिए तो जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि उस पर बहस करते थे।

बजट पेश होने के वक्त ये टैक्स प्रस्ताव सार्वजनिक होते थे, कभी कभी अधिक विरोध होने पर सरकार को पीछे भी हटना पडता था।

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अब संसद/विधानसभा में खुले प्रस्ताव व बहस के बजाय इसे बंद कमरे की बैठक में सब दल आपसी सौदेबाजी से तय कर लेते हैं। फिर नोटिफिकेशन जारी कर लागू कर देते हैं। इस काम में दक्षिण, मध्य, वाम व बेपेंदी के लोटे वाले सभी चुनावी राजनीतिक दल जनता के खिलाफ पूंजीपति वर्ग के पक्ष में एकजुट होकर काम करते हैं।

देश में फासिस्ट सत्ता ऐसे ही इतनी आसानी से कामयाब नहीं हुई है, उसमें बहुतों ने योगदान दिया है, ‘विपक्ष’ ने भी।

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