Syed Salman Simrihwin : आजकल जिन नेताओं पर कैमरा सबसे ज़्यादा मेहरबान है..वे हैं नरेंद्र मोदी, नरेंद्र योगी, नरेंद शाह और नरेंद्र भागवत..कुछ नरेंद्र भाई छूट गए होंगे माफ कीजियेगा..वैसे नाम के आगे नरेंद्र इसलिए क्योंकि नरेंद्र मेरे आदरणीय हैं..और आदरणीय को इज़्ज़त देना मेरा कर्तव्य..अब मेरी तरह न्यूज़ चैनलों को भी अपने कर्तव्यों का निर्वहण कर लेना चाहिए..और अपने नामों के आगे नरेंद्र लगा लेना चाहिए.. मसलन नरेंद्र एबीपी न्यूज़, नरेंद्र इंडिया टीवी न्यूज़, नरेंद्र ज़ी न्यूज़, नरेंद्र इंडिया न्यूज, नरेंद्र फलाना न्यूज़ और नरेंद्र ढिमका न्यूज़ वगैरा वगैरा..मज़ाक पसंद नहीं आया?
जब चैनलों के 12-12 घंटे नॉनस्टॉप मज़ाक को आप हर रोज़ सहज स्वीकार कर लेते हैं..तो मेरे चंद सेकेंड का मज़ाक झेल लेने से कौन सा तूफान मच जाएगा ? आप गंभीर हो गए? मत होइए..चैनल भी गंभीर कहां है..गंभीरता को पाताललोक में फेंक दिया गया है..भारत अब देश नहीं ब्रांड बन चुका है..जिसे पहचान दी है ‘राम मंदिर’ और बाबरी मस्जिद के मुद्दे ने, ट्रिपल तलाक ओर हलाला पर होने वाली बहस ने, बगदादी के भूत ने, मुल्ले-मौलवियों के फतवे ने, अज़ान के नाम पर होने वाली गुंडागर्दी के खिलाफ सोनू निगम के ट्वीट ने, 10 लाख का इनाम देने की घोषणा करने वाले बंगाली मौलाना ने..जेएनयू और रामजस जैसे विश्वविद्यालयों में हमारे आपके टैक्स पर पलने वाले देशद्रोहियों ने..राष्ट्रवाद और देशभक्ति पर छिड़ी बहस ने..वंदे मातरम ओर भारत माता की जय के जयकारे ने, बीफ बैन और गोरक्षक की गुडागर्दी ने, एंटीस्कॉयड रोमियो के अजब-गजब रंग ने, बूचड़खानों पर चले बुलडोजर ने, कश्मीर के आतंकी पत्थरबाजों ने, और सेना पर सियासत करने वाले कन्हैया ओर उमर जैसे लोगों ने..
ट्रांसफर टेक्नीनिक का इस्तेमाल चरम पर है..धार्मिक कथाओं ने चुटकुले का स्थान ले लिया है..और उन चुटकुलों से राजनीतिक एजेंडा तय किया जा रहा है..भारत की तरह अब पीएम मोदी भी ब्रांड बन चुके हैं..भारत की राजनीति में पहली बार किसी प्रधानमंत्री का किसी ब्रांड में रूपांतरण हुआ है..ब्रांड की अच्छी मार्केटिंग के लिए ब्रांड प्रॉमोशन के तर्कों का पालन ज़रूरी है..इन तर्कों की धूरी है जुगनू जैसी चमक और वफादारी..और टीवी को वफादारी पसंद है..
टीवी में जो बहस चल रही है..उसमें सत्य पर नहीं, दृश्य पर ज़ोर है… दृश्य सही है या गलत, ये सवाल महत्वहीन हो गया है… इसलिए भारी मन से जिन नेताओं को कैमरे में कैद किया जाता है वो भी महत्वहीन हो चुके हैं..युवाओं के रोजगार के मुद्दे महत्वहीन हो गए हैं, विकास महत्वहीन हो चुका है..महंगाई महत्वहीन हो चुकी है..किसान महत्वहीन हो चुका है..विदेशनीति महत्वहीन हो चुकी है..गरीबी और गरीब महत्वहीन हो चुके हैं..शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली, बेरोजगारी जैसी बुनियादी ज़रूरतें महत्वहीन हो चुकी हैं..आप भी महत्वहीन हो चुके हैं..सब कुछ महत्वहीन हो चुका है..सिर्फ ‘मैं’ महत्वपूर्ण रह गया हूं.. क्योंकि मैं एक ब्रांड बन चुका हूं।
कई न्यूज चैनलों में काम कर चुके Syed Salman Simrihwin की एफबी वॉल से.