रजत शर्मा, रोहित सरदाना, सुधीर चौधरी, अर्णब गोस्वामी, गौरव सावंत ने उस ‘एकपक्षीय’ मीडिया को ‘बहु-पक्षीय’ बनाया!

Abhinav Shankar : आज जब मोदी सरकार के तीन साल पूरे हुए हैं तो इन तीन सालों में हुए बदलावों पर स्वाभाविक रूप से पूरे देश में चर्चाओं का एक दौर चला है। जाहिर है कई विषयों पर चर्चा होगी। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सामरिक, रणनीतिक। मैं आज इन विषयों पर बात नहीं करना चाहता। इसके कई कारण हैं। पहला तो ये कि मैं अक्सर इन क्षेत्रों में हो रहे बदलावों पर ब्लॉग वगैरह पर लिखता रहा हूँ। दूसरा, आज इन चीजों पर पहले ही टनों स्याही बहाई जा चुकी होगी और तीसरा जिस विषय पर में बात करना चाहता हूं वो आज शर्तिया नहीं हुई होगी या हुई भी होगी तो उस परिप्रेक्ष्य में नहीं हुई होंगी जिस परिपेक्ष्य में होनी चाहिए।

न्यूज़ चैनलों को अपने नाम के आगे ‘नरेंद्र’ लगा लेना चाहिए…

Syed Salman Simrihwin : आजकल जिन नेताओं पर कैमरा सबसे ज़्यादा मेहरबान है..वे हैं नरेंद्र मोदी, नरेंद्र योगी, नरेंद शाह और नरेंद्र भागवत..कुछ नरेंद्र भाई छूट गए होंगे माफ कीजियेगा..वैसे नाम के आगे नरेंद्र इसलिए क्योंकि नरेंद्र मेरे आदरणीय हैं..और आदरणीय को इज़्ज़त देना मेरा कर्तव्य..अब मेरी तरह न्यूज़ चैनलों को भी अपने कर्तव्यों का निर्वहण कर लेना चाहिए..और अपने नामों के आगे नरेंद्र लगा लेना चाहिए.. मसलन नरेंद्र एबीपी न्यूज़, नरेंद्र इंडिया टीवी न्यूज़, नरेंद्र ज़ी न्यूज़, नरेंद्र इंडिया न्यूज, नरेंद्र फलाना न्यूज़ और नरेंद्र ढिमका न्यूज़ वगैरा वगैरा..मज़ाक पसंद नहीं आया?

मोदी सरकार ने गिराई गाज : 269556 पत्र-पत्रिकाओं के टाइटिल निरस्त, 804 अखबार डीएवीपी विज्ञापन सूची से बाहर

नरेंद्र मोदी सरकार की सख्ती की गाज छोटे अखबारों और पत्रिकाओं पर पड़ी है. इससे दूर दराज की आवाज उठाने वाली पत्र-पत्रिकाओं का संचालन ठप पड़ गया है, साथ ही इससे जुड़े लाखों लोग बेरोजगार भी हो गए हैं. ऐसे दौर में जब बड़े मीडिया घराने पूरी तरह कारपोरेट के चंगुल में आ चुके हैं और असल मुद्दों को दरकिनार कर नकली खबरों को हाईलाइट करने में लगे हैं, मोदी सरकार उन छोटे अखबारों और पत्रिकाओं की गर्दन दबोचने में लगी है जो अपने साहस के बल पर असली खबरों को प्रकाशित कर भंडाफोड़ किया करते थे. हालांकि दूसरा पक्ष यह है कि उन हजारों लोगों की अकल ठिकाने आ गई है जो अखबारों पत्रिकाओं की आड़ में सिर्फ और सिर्फ सरकारी विज्ञापन हासिल करने की जुगत में लगे रहते थे और उनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं हुआ करता था. वो अखबार पत्रिका के जरिए ब्लैकमेलिंग और उगाही के धंधे में लिप्त थे.

मोदी की चुनावी हवा बनाने में मदद करने वालों के बीच 10,000 करोड़ रुपए बंटेगा!

Anil Singh :  10,000 करोड़ की वेंचर पूंजी असल में है किसके लिए? बजट आने के बाद से ही एक सवाल मन को मथे जा रहा है तो सोचा कि आप सभी मित्रों से साझा कर लूं। बजट में नए उद्यमियों या स्टार्ट अप को वेंचर कैपिटल उपलब्ध कराने के लिए 10,000 करोड़ रुपए का फंड बनाया गया है। लेकिन मुंबई में फाइनेंस की दुनिया में शुरू से ही चर्चा है कि यह धन मोदी की चुनावी हवा बनाने में मदद करनेवाले लोगों के बीच बांटने के लिए है।

बेचारे हिसार वाले ‘मीडिया मीठू’… वे अब भी सहला सेंक रहे हैं अपना-अपना अगवाड़ा-पिछवाड़ा…

Yashwant Singh : पहले वो पुलिस के पक्ष में बोलते दिखाते रहे क्योंकि पुलिस ने उन्हें पुचकारा था, अपने घेरे में रखते हुए आगे बढ़ाकर बबवा को बुरा बुरा कहलवाया दिखाया था… जब पुलिस को लगा कि भक्तों-समर्थकों को लतिया धकिया मार पीट तोड़ कर अंदर घुसने और बबवा को पकड़ कर आपरेशन अंजाम तक पहुंचाने का वक्त आ गया है तो सबसे पहले पुचकार के मारे तोते की तरह पुचुर पुचुर बोल दिखा रहे ‘मीडिया मीठूओं’ को लतियाना लठियाना भगाना शुरू किया ताकि उनके आगे के लतियाने लठियाने भगाने के सघन कार्यक्रम के दृश्य-सीन कैमरे में कैद न किए जा सकें… ये सब प्री-प्लान स्ट्रेटजी थी. सत्ताधारी राजनीतिज्ञों से एप्रूव्ड.