मोदी राज में कितना डरपोक हो गया है एनडीटीवी, इसे अब अपने एडिटर्स पर ही भरोसा नहीं!

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एनडीटीवी कभी साहसी मीडिया हाउस हुआ करता था. लेकिन जबसे प्रणय राय कांग्रेसी मंत्रियों के साथ मिलकर काला धन को सफेद करने के धंधे में पड़ गए और उनकी सारी पोल एक आईआरएस अफसर संजय कुमार श्रीवास्तव ने खोल दी तो उन्हें अब फूंक फूंक कर कदम रखना पड़ रहा है. सूत्र बताते हैं कि एनडीटीवी के ढेर सारे काला कारनामों की फाइलें पीएम नरेंद्र मोदी की मेज पर महीनों से पड़ी हुई हैं. एनडीटीवी के बड़े-बड़े पत्रकार अरुण जेटली से लाबिंग करवा रहे हैं कि उन फाइलों को साइलेंट मोड में डाल दिया जाए, कोई एक्शन न रिकमेंड किया जाए.

मीडिया फ्रेंडली अरुण जेटली भी एनडीटीवी वालों की बात से सहमत होते हुए पीएम मोदी से घुमा फिराकर बातें कर रहे हैं. नतीजा क्या होगा, यह तो नहीं पता क्योंकि पीएम मोदी ने अभी हां या ना नहीं कहा है, बस फाइल रोके हुए हैं, ऐसा सूत्र बताते हैं. पर एनडीटीवी के मालिकों की इतने में ही सांस अंटकी हुई है. वे दुविधा और भयों में जीते हुए इतने डिप्रेस्ड हो गए हैं कि कुछ भी नया रिस्क, नया चैलेंज नहीं लेना चाहते. यहां तक कि अपने संपादकों के आर्टकिल्स के आखिर में डिस्क्लेमर डाल देते हैं कि इन विचारों से एनडीटीवी का कोई लेना देना नहीं है. ऐसे में पूछना पड़ेगा कि हे भाई एनडीटीवी, आपका किन विचारों से लेना देना है?

बिलकुल उपर सुधी रंजन सेन द्वारा लिखे गए आर्टकिल के शुरुआती हिस्से का स्क्रीनशाट है और बिलकुल नीचे डिस्क्लेमर का स्क्रीनशाट है जिसे आर्टकिल के अंत में लिखा गया है. सुधी रंजन सेन एनडीटीवी में सेक्युरिटी और स्ट्रेटजिक अफेयर्स के एडिटर हैं. उनके साथ कैमरामैन भी था. ये लोग कश्मीर गए थे. वहां जो आंखों देखा, उसे लिखा. लेकिन एनडीटीवी इतना सशंकित है कि कहीं इस आर्टकिल से मोदी जी नाराज न हो जाएं, इसलिए उसने लास्ट में डिस्क्लेमर डाल दिया कि इस आर्टकिल में कही गई बातों, तथ्यों का एनडीटीवी से कोई लेना देना नहीं है, यह लेखक के अपने निजी विचार हैं. धन्य हो एनडीटीवी, धन्य हैं आप मिस्टर प्रणय राय. लगता है बुढ़ौती में गड़बड़ा गए हैं.



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