मुझे नहीं पता कि आप न्यूज चैनलों में होने वाली एक बड़ी आहट को पढ़ पा रहे है या नहीं। ‘न्यूज़ किलर एडिटर एसोसिएशन’ (अजीत अंजुम, विनोद कापड़ी, सतीश के सिंह, आशुतोष, मिलिंद खांडेकर आदि का गैंग) अपने अंत की ओर बढ़ रही है। इस बात की आहट न्यूज़ 24 चैनल के एक नये फैसले में झलकती है। न्यूज़ 24 ने इंडिया टीवी के प्रखर श्रीवास्तव को अपना नया आउटपुट हेड बनाने का फैसला लिया है। अगर आप ध्यान से देखें तो पिछले एक साल में ये चौथी बार हो रहा है जब किसी मेन स्ट्रीम के चैनल ने नए युवा लोगों पर भरोसा किया है। पिछले एक साल के अंदर आजतक ने मनीष कुमार, ज़ी न्यूज ने रोहित सरदाना, आईबीएन 7 ने आर सी शुक्ला और अब न्यूज़ 24 ने प्रखर श्रीवास्तव को आउटपुट हेड बनाया है।
वहीं इनमें से दो चैनलों ने अपने हेड भी युवा बनाए हैं, न्यूज़ 24 ने दीप उपाध्याय और आईबीएन 7 ने सुमित अवस्थी। यानि साफ है कि चैनल के मालिक भी अब इस ‘न्यूज़ किलर एडिटर एसोसिएशन’ से छुटकारा पाना चाहते हैं। नई पीढ़ी के टीवी प्रोफेशनल्स अब तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और चैनल मालिक भी अब नये लोगों पर भरोसा जता रहे हैं। जहां तक ‘न्यूज़ किलर एडिटर एसोसिएशन’ की बात है तो विनोद कापडी पहले ही मार्केट से आउट होने के बाद फिल्म बनाने के धंधे में लग गए हैं, आशुतोष आप की राजनीति करने में लगे हैं, सतीश के सिंह की सत्ता अब लाइव इंडिया जैसे छोटे से चैनल तक सिमट कर रह गई है, एनके सिंह के पास तो नौकरी के भी लाले हैं, बस बचे हैं तो अजीत अंजुम। लेकिन ‘न्यूज़ किलर एडिटर एसोसिएशन’ के इस असली खिलाड़ी के बचे खुचे दिन ही बाकी हैं। जिस तरह से इन्होने इंडिया टीवी में लाखों रुपये देकर लोगों की भर्तियां की है उसके बाद चैनल के मालिक रजत शर्मा इनसे परफॉरमेंस की उम्मीद करेंगे जो अजीत अंजुम के लिए बहुत कठिन है।
ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अजीत अंजुम के पास इंडिया टीवी में सिर्फ छ महीने का समय है। और अगर अजीत अंजुम बाहर हो जाते हैं तो न्यूज़ चैनलों में खबर की हत्या करने वाले इस ‘न्यूज़ किलर एडिटर एसोसिएशन’ (अजीत अंजुम, विनोद कापड़ी, सतीश के सिंह, आशुतोष, मिलिंद खांडेकर आदि का गिरोह) का अंत तय है। जब इनका समय था तो इन लोगों ने ना सिर्फ ख़बरों की हत्या की बल्कि अपनी जगह बचाने के लिए मालिकों को धोखा देकर अपने-अपने चैनल के सीक्रेट भी एक दूसरे को लीक किए। यहां तक कि कोई इनके पास नौकरी के लिए इंटरव्यू देने आता था तो ये दूसरे चैनल के अपने एडिटर दोस्त को बता देते थे। अपनी जगह बचाने के लिए इन्होने कभी नये लोगों को आगे नहीं बढ़ने दिया। पर लगता है कि इनका समय गुज़र चुका है। आजतक के सुप्रिय प्रसाद इसलिए बचे हैं कि वो कभी इस चौकड़ी का हिस्सा नहीं रहे।
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
नारायण
May 21, 2015 at 11:33 am
अच्छी बात है। परिवर्तन बेहतरी के लिए हो तो और अच्छा है। पुराने लोग जाते हैं नए आते हैं ये कोई नई बात नहीं हैं। दुखद होता है परिवर्तन सिर्फ परिवर्तन के लिए होना। दिक्कत ये हैं कि टेलीविजन पत्रकाररिता में जो नई पौध आ रही है वो पत्रकारिता के लिहाज से कितनी परिपक्व है ये समझ से परे हैं। ये जो नाम आपने लिए किलर पत्रकाररिता के पुरोधाओं के ये उन्हीं के तो सपूत हैं फिर अलग कैसे हुए। समझ के स्तर पर ये और बड़े ढोल हैं। कोई संघी है तो कोई विचारशून्य। मित्र आप जो भी हों लेकिन भारत में टेलीविजन पत्रकारिता का स्तर बेहद घटिया और बाजारू है। और मुझे ये कहने में जरा भी संकोच नहीं कि आप जिस पीढी को लेकर आशा लगाए बैठे हैं वो इन्हीं का घटिया और सस्ता संस्करण हैं।